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दरअसल:देसी दर्शकों से बेपरवाह फिल्म इंडस्ट्री

-अजय ब्रह्मात्मज मल्टीप्लेक्स मालिकों और निर्माता-वितरकों के बीच फिलहाल कोई समझौता होता नहीं दिख रहा है। अपवाद के तौर पर 8 बाई 10 तस्वीर रिलीज हुई, क्योंकि उसकी रिलीज तारीख पूर्वनिश्चित थी और उसके निर्माता ने फिल्म के प्रचार में काफी पैसे खर्च किए थे। पिछले दिनों जब निर्माता और वितरकों की तरफ से आमिर और शाहरुख खान मीडिया से मिलने आए थे, तब यही तर्क दिया गया था। उस समय न तो किसी ने पूछा और न ही किसी ने अपनी तरफ से बताया कि आ देखें जरा क्यों मल्टीप्लेक्स में नहीं पहुंच सकी! एक आशंका जरूर व्यक्त की गई कि अगर शाहरुख, आमिर, यश चोपड़ा या यूटीवी की फिल्म अभी रिलीज पर रहती, तो क्या तब भी इतना ही सख्त रवैया होता? इस आशंका में ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की दोहरी नीति का सच छिपा है। आमिर खान ने चलते-फिरते अंदाज में बताया कि लाभांश शेयरिंग का मामला गजनी के समय ही तूल पकड़ चुका था, लेकिन तब उन्होंने इसे टाला। वे नहीं चाहते थे कि कोई यह कहे कि आमिर अपनी फिल्म के लिए यह सब कर रहे हैं! दोनों पक्षों की ढील और जिद में तीन महीने गुजर गए। इन तीन महीनों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने हर तरह से दबाव बनाया, लेकि

बाजपेयी और सोनिया जी प्रिय हैं:शाहरुख़ खान

बाजपेयी जी बाजपेयी जी से मेरे पुराने संबंध हैं। उनकी बेटी नमिता से पुराना परिचय है। पहले हम दिल्ली लाकर फिल्में दिखाते थे तो उनके लिए विशेष शो रखते थे। उन्हें फिल्मों का बहुत शौक है। कई बार पता चल जाता था कि उन्हें फिल्म अच्छी नहीं लगी। फिर भी वे कहते थे बेटा, बहुत अच्छा है। एक बार मिले तो बोले कि बहुत दिनों से तुम्हारी कोई फिल्म नहीं देखी। पिछले दिनों उनकी तबियत खराब हुई थी तो मैं चिंतित था। मैंने नमिता से पूछा कि बाप जी कैसे हैं। हम उन्हें बाप जी कहते हैं। मेरी तबियत खुद खराब थी, इसलिए मिलने नहीं जा सका। फिर भी मैं नमिता से हालचाल लेता रहा। वे बहुत स्वीट व्यक्ति हैं। मैं छोटा था तो मेरे पिताजी मुझे आईएनए मार्केट ले जाते थे कि अटल बिहारी बाजपेयी जी की स्पीच सुनो। बहुत खूबसूरत बोलते हैं वे। उनका हिंदी पर अधिकार है। मैं उनको और इंदिरा जी को सुन कर बड़ा हुआ हूं। मेरे पिता जी कांग्रेस में थे। मेरी मां कांग्रेस में थीं। गांधी परिवार को मैं बचपन से जानता हूं। राबर्ट से भी मेरा पुराना परिचय है। हमने कभी पालिटिकल बात नहीं की। वे हमारे घर आते हैं। हम भी उनसे मिलने जाते हैं। राजनीति से रिश्ता रा

शास्त्री और इंदिरा जी जैसा नेतृत्व चाहिए: अजय देवगन

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लीजेंड आफ भगत सिंह, गंगाजल और अपहरण जैसी राजनीतिक फिल्में कर चुके अजय देवगन स्वयं को देश का जागरूक नागरिक मानते हैं, लेकिन रोजमर्रा की राजनीति में उनकी खास रुचि नहीं है। वे कहते हैं, ''मैं अभिनेता हूं। मेरा मुख्य कार्य अभिनय है। राजनीति के दाव-पेंच मैं अधिक नहीं समझता। अपने पेशे और सार्वजनिक जीवन में रहने के कारण विभिन्न पार्टियों के नेताओं से मेरे संपर्क और संबंध हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैं उनकी इज्जत करता हूं। राजनीति के गलियारे में टहलना मुझे पसंद नहीं है। अभी तक मैं किसी पार्टी विशेष के प्रचार अभियान में शामिल नहीं हुआ हूं। हां, अगर फिल्म बिरादरी से कोई चुनाव लड़ता है और वह मुझे बुलाता है तो मैं जा सकता हूं। वहां मैं व्यक्तिगत रिश्ते को महत्व दूंगा। मेरी राय में फिल्म बिरादरी के सदस्य राजनीति में जाने पर औरों की तुलना में देश की सेवा ज्यादा बेहतर और ईमानदार तरीके से कर सकते हैं। सुनील दत्त जी का उदाहरण हमारे सामने हैं।'' भारत का सम्मान रखा शास्त्री जी ने आदर्श नेताओं के बारे में पूछने पर अजय देवगन जिन दो नेताओं के नाम लेते हैं, वे दोनों देश के प्रधानमंत्र

अपराधी को नेता न चुनें: आमिर खान

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जरूरी है कि हम सभी वोट दें। अपनी बात करूं तो मैं बच्चों के साथ छुट्टियों पर जा रहा हूं, लेकिन मैं मुंबई की वोटिंग के दिन आऊंगा। अपना वोट डालूंगा और फिर बच्चों के पास लौट जाऊंगा। मैं इतना महत्व दे रहा हूं वोटिंग को। मेरे खयाल में आप भी इसका महत्व और जरूरत समझेंगे। जरूरी है उम्मीदवार को जानना वोट देना तो सबसे जरूरी है, लेकिन उसके साथ ही जरूरी है कि हम अपने चुनाव क्षेत्र में खड़े सभी उम्मीदवारों के बारे में तफसील से जानें। आप को मालूम होगा कि हर उम्मीदवार अपना फार्म भरते समय सारी जानकारियां देता है। ये जानकारियां आप समाचार पत्रों या अन्य माध्यमों से हासिल कर सकते हैं। मैं एडीआर संस्था के एक अभियान में शामिल हूं। हम सभी की कोशिश है कि देश का हर मतदाता अपने चुनाव क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों के बारे में जानने के बाद ही अपने वोट के बारे में फैसला करे। मेरी पसंद थे सुनील दत्त अपनी बात कहूं तो मैं आंख मूंद कर सुनील दत्त साहब को वोट दे देता था। मैंने कभी किसी और उम्मीदवार के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं की। वोट देने का मेरा वह तरीका ठीक नहीं था। यह अलग बात है कि मेरी पसंद सुनील दत्त साहब थे। क

फ़िल्म समीक्षा:दशावतार

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एक नहीं, दस कमल हासन अगर आप कमल हासन के प्रशंसक हैं तो भी इस फिल्म को देखने जाने से पहले एक बार सोच लें। कमल हासन आत्ममुग्ध अभिनेता हैं। कुछ समय पहले तक उनकी इसी आत्ममुग्धता के कारण हमने कई प्रयोगात्मक और रोचक फिल्में देखीं। लेकिन इधर उनकी और दर्शकों की टयूनिंग नहीं बन पा रही है। वह आज भी प्रयोग कर रहे हैं। ताजा उदाहरण दशावतार है। हालांकि तमिल और हिंदी में बनी फिल्म के निर्देशक रवि कुमार है, लेकिन यह फिल्म कमल हासन का क्रिएटिव विलास है। यह अमेरिका में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक गोविंद सोमाया की कहानी है। गोविंद सिंथेटिक जैविक हथियार बनाने की प्रयोगशाला में काम करता है। एक छोटी घटना में हम उस जैविक हथियार का प्रभाव एक बंदर पर देखते हैं। गोविंद उस जैविक हथियार को सुरक्षित हाथों में पहुंचाना चाहता है। संयोग से बैक्टीरिया जिस डिब्बे में बंद हैं वह भारत चला जाता है। गोविंद उसकी खोज में भारत आता है। यहां से नायक और खलनायक की बचने-पकड़ने के रोमांचक दृश्य शुरू होते हैं। इन दृश्यों में जो दूसरे किरदार आते हैं, उनमें से नौ भूमिकाएं कमल हासन ने ही निभाई है। एक सहज जिज्ञासा होती है कि अगर इन्हें

दरअसल:पॉलिटिक्स और पॉपुलर कल्चर का रिश्ता

-अजय ब्रह्मात्मज एक मशहूर अभिनेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि अगर आप फिल्म स्टार हैं, तो अंडरव‌र्ल्ड और पॉलिटिक्स से नहीं बच सकते। माफिया डॉन और पॉलिटिशियन आपसे संपर्क करते हैं और संबंध बनाने की कोशिश करते हैं। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उनके साथ कैसे पेश आते हैं या कैसे इस्तेमाल होते हैं? अंडरव‌र्ल्ड और फिल्म स्टारों की नजदीकियों के बारे में हमेशा कुछ न कुछ लिखा जाता रहा है। उस संदर्भ में एक ही चीज महत्वपूर्ण है कि मुंबई दंगों के बाद अंडरव‌र्ल्ड से किसी प्रकार का संबंध राष्ट्रविरोधी माना गया। उसके पहले अंडरव‌र्ल्ड सरगनाओं की पार्टियों में जाने में किसी स्टार को परहेज नहीं होता था और न ही उनके संबंध पर कोई आपत्ति की जाती थी। रही बात पॉलिटिक्स की, तो फिल्मी हस्तियों और राजनीतिक पार्टियों के अधिकांश संबंध परस्पर लाभ से निर्देशित होते हैं। फिल्मी हस्तियों और उनकी राजनीतिक सक्रियता को तीन चरणों में देखा जा सकता है। हालांकि दक्षिण भारत की स्थिति अलग रही है। आजादी के बाद से राजनीतिक गलियारे में फिल्मी हस्तियों की पूछ बढ़ी। नेहरू फिल्म कलाकारों से मिलने में रुचि दिखाते थे। उसकी एक

मीडिया ने मुझे बिग बना दिया -अमिताभ बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्मज अपने बिग ब्लॉग की पहली वर्षगांठ (16 अप्रैल) पर अमिताभ बच्चन ने खास तौर से दैनिक जागरण से अपने मन की बातें बांटीं। आपने अपने ब्लॉग का नाम बिग बी क्यों पसंद किया? बिग बी, एंग्री यंग मैन, मिलेनियम स्टार जैसे विशेषणों को आप ज्यादा तरजीह नहीं देते। फिर बिग बी की पसंदगी की कोई खास वजह? मैंने यह नाम नहीं चुना है। बिग अड्डा सर्वर ने यह नाम रखा है। मुख्य पृष्ठ पर इसकी प्रस्तुति ऐसी है कि यह बिगब्लॉग डॉट कॉम पढ़ा जाता है। बिग और ब्लॉग को एक साथ हाइलाइट करें, तो बिग बी लॉग पढ़ते हैं। यह मेरा नहीं, उनका रचनात्मक फैसला है। उनकी अन्य गतिविधियों में भी बिग नाम आता है, जैसे बिग पिक्चर्स, बिग फिल्म आदि। यह महज संयोग ही है कि मेरे ब्लॉग की डिजाइन मीडिया रचित विशेषण से मिल गई। ऐसा नहीं है कि मैं इन विशेषणों में विश्वास करता हूं या उन्हें प्रोत्साहित और स्वीकार करता हूं! ब्लॉग लेखन क्या है आपके लिए? संक्षेप में, यह अनुभव आह्लादक रहा है। अपने प्रशंसकों और शुभेच्छुओं से जुड़ पाना उद्घाटन रहा। इस माध्यम ने बगैर किसी बिचौलिए के मुझे स्वतंत्र संबंध दिया है। इसमें मीडिया से होने वाली भ्रष्ट प्

स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड की होड़ में भारतीय फ़िल्म

पूना फिल्म इंस्टीटयूट के स्नातक देबाशीष मेढेकर की फिल्म स्वयंभू सेन फोरसीज हिज एंड छात्रों के ऑस्कर पुरस्कार की होड़ में है। इस साल स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड के लिए सबसे ज्यादा एंट्री मिली है। एकेडमी से मिली सूचना के मुताबिक इस अवार्ड के लिए अमेरिका के 103 कॉलेज और विश्वविद्यालयों से 559 फिल्में भेजी गई हैं। रेग्युलर पुरस्कारों की तरह इस कैटेगरी में भी विदेशी भाषा की एक फिल्म को पुरस्कार दिया जाता है। इस पुरस्कार के लिए 39 देशों से 57 प्रविष्टियां प्राप्त हुई हैं। भारत से पूना फिल्म इंस्टीट्यूट के स्नातक देबाशीष मेढेकर की फिल्म सूची में आ चुकी है। इस फिल्म में 26 जुलाई 2005 को मुंबई में आई बाढ़ के बीच बस की छत पर फंसे लोगों को एक व्यक्ति ऐसे फिल्ममेकर की रोचक कहानी सुनाता है, जिसने अपनी फिल्म के निर्माण के लिए स्टाक से लेकर कैमरा तक चुराया था। उल्लेखनीय है कि एकेडमी ने कॉलेज और विश्वविद्यालयों के सिनेमा के छात्रों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस पुरस्कार की शुरूआत की। भारत के विधु विनोद चोपड़ा इस पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।

हिन्दी टाकीज:सिनेमा ने मुझे बहुत आकर्षित किया-तनु शर्मा

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हिन्दी टाकीज-३२ तनु शर्मा ने यह पोस्ट अपने ब्लॉग महुआ पर लिखी थी.पिछले महीने २४ मार्च को आई यह पोस्ट चवन्नी को हिन्दी टाकीज सीरिज़ के लिए उपयुक्त लगी थी.चवन्नी ने उनसे अनुमति मांगी.तनु ने उदारता दिखाई और अनुमति दे दी। चवन्नी को उनकी तस्वीर चाहिए थी.संपर्क नहीं हो सका तो महुआ से ही यह तस्वीर ले ली.वहां तनु ने अपने बारे में लिखा है...अपने ख्वाबों को संवारती, अपने वजूद को तलाशती, अपने जन्म को सार्थक करने की कोशिश करती,मैं,सिर्फ मैं....... कल रात ब्रजेश्वर मदान सर ने एक मैसेज भेजा था....सिनेमा पर....(वही मदान सर जिन्हें सिनेमा पर लिखने के लिए पहले नेशनल एवॉर्ड से नवाज़ा गया )उसमें लिखा था....शेक्सपियर ने दुनिया को रंगमंच की तरह देखा....जहां हर आदमी अपना पार्ट अदा करके चला जाता है...सिनेमा तब नहीं था...जहां आदमी नहीं उसकी परछाईं होती है.....बाल्कनी...,रियर-स्टॉल....,ड्रैस सर्कल....या फ्रन्ट बैंच पर बैठा वो...परछाईयों में ढूंढता हैं...अपनी परछाईं....कहीं मिल जाए तो उसके साथ हंसता है...रोता है...सिनेमा की इस दुनिया में अपना जिस्म भी पराया होता है....फिल्म खत्म होने के बाद जब....ढूंढता है अप

दरअसल:नहीं दिखेंगी नई फिल्में

हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए अगले दो महीने मुश्किल में गुजरेंगे। कोई नई या बड़ी फिल्म रिलीज नहीं होगी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मल्टीप्लेक्स मालिकों और निर्माताओं के बीच लाभांश को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। अगर बात नहीं बनी, तो घोषणा के मुताबिक अप्रैल के अंत तक कोई नई फिल्म मल्टीप्लेक्स में नहीं लगेगी। फिलहाल 8बाई10 तस्वीर के बाद अक्षय कुमार की 29 मई को फिल्म कमबख्त इश्क का रिलीज होना तय है। खास बात यह है कि अभी से लेकर 29 मई के बीच कोई भी बड़ी फिल्म रिलीज नहीं हो रही है। ज्यादातर निर्माता आईपीएल की वजह से अपनी फिल्मों की रिलीज आगे बढ़ा चुके थे। हालांकि आईपीएल अब भारत की भूमि से निकल चुका है, फिर भी निर्माता इस दरम्यान अपनी फिल्में रिलीज नहीं कर रहे हैं। माना जा रहा है कि आईपीएल दुनिया में कहीं भी आयोजित हो, उसका सीधा प्रसारण भारत में होगा ही। पिछले साल का अनुभव बताता है कि दर्शक आईपीएल के सीजन में सिनेमाघरों का रुख नहीं करते। इसके अलावा, इस बार चुनाव भी है। अप्रैल के मध्य से चुनाव आरंभ होंगे और अलग-अलग तारीखों को विभिन्न प्रदेशों के मतदाता बॉक्स ऑफिस के बजाए पोलिंग बूथ पर नजर आ