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फ‌र्स्ट लुक और प्रोमो

-अजय ब्रह्मात्‍मज फर्स्‍ट लुक और प्रोमो....आजकल इसे एक इवेंट का रूप दे दिया जाता है। निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों का फ‌र्स्ट लुक जारी करने के लिए किसी होटल या थिएटर में मीडिया को आमंत्रित करते हैं और फिर विभिन्न माध्यमों से फिल्म की चर्चा आरंभ होती है। छिटपुट रूप से ऐसी कोशिशें काफी सालों से की जा रही थीं, लेकिन आमिर खान ने गजनी की रिलीज के पहले इसका प्रोमो मीडिया के साथ शेयर किया था। साथ ही अपने विशेष लुक को देश के प्रमुख अखबारों के जरिए दर्शकों तक पहुंचाया था। तब से यह जोरदार तरीके से इंडिपेंडेंट इवेंट के तौर पर प्रचलित हुआ। फ‌र्स्ट लुक जारी करने का इवेंट अब कई स्तरों और रूपों में शुरू हो चुका है। कुछ निर्माता-निर्देशक सोशल मीडिया नेटवर्क का उपयोग कर रहे हैं। फ‌र्स्ट लुक प्रकट होते ही यह वायरस की तरह फैलता है। इसी से दर्शकों की पहली जिज्ञासा बनती है। याद करें तो पहले पत्र-पत्रिकाओं में तस्वीरें और थिएटर में ट्रेलर चलते थे। पत्र-पत्रिकाओं में निर्देशक और फिल्म के प्रमुख स्टार्स के इंटरव्यू के साथ छपी तस्वीरों से दर्शकों का कयास आरंभ होता है। यहीं से संबंधित फिल्म के दर्शक बनने शुरू

भोजपुरी सिनेमा में बदलाव की आहट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज भोजपुरी फिल्मों की गति और स्थिति के बारे में हम सभी जानते हैं। इसी साल फरवरी में स्वर्णिम भोजपुरी समारोह हुआ। इसमें पिछले पचास सालों के इतिहास की झलक देखते समय सभी ने ताजा स्थिति पर शर्मिदगी महसूस की। अपनी क्षमता और लोकप्रियता के बावजूद भोजपुरी सिनेमा फूहड़ता के मकड़जाल में फंसा हुआ है। अच्छी बात यह है कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों का एक बड़ा वर्ग है। बुरी बात यह है कि भोजपुरी सिनेमा में अच्छी संवेदनशील फिल्में नहीं बन रही हैं। निर्माता और भोजपुरी के पॉपुलर स्टार जाने-अनजाने अपनी सीमाओं में चक्कर लगा रहे हैं। वे निश्चित मुनाफे से ही संतुष्ट हो जाते हैं। वे प्रयोग के लिए तैयार नहीं हैं और मान कर चल रहे हैं कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक स्वस्थ सिनेमा पसंद नहीं करेंगे। भोजपुरी सिनेमा के निर्माताओं से हुई बातचीत और पॉपुलर स्टार्स की मानसिकता को अगर मैं गलत नहीं समझ रहा तो वे भोजपुरी सिनेमा में आए हालिया उभार के भटकाव को सही दिशा मान रहे हैं। मैंने पॉपुलर स्टार्स को कहते सुना है कि अगर हम सीरियस और स्वस्थ होंगे तो भोजपुरी का आम दर्शक हमें फेंक देगा। सौंदर्य की स्थूलता और दिखाव

देव आनंद :मौत ने तोड़ दी एक हरी टहनी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज किताबों,पत्रिकाओं,फिल्मों और विचारों से भरे दफ्तर के कमरे में बिना नागा हर दिन देव आनंद आते थे। अपना फोन खुद उठाना और खास अंदाज में हलो के साथ स्वागत करना ़ ़ ़मूड न हो तो कह देते थे देव साहब अभी नहीं हैं। बाद में फोन कर लें। अगर आप उनकी आवाज पहचानते हों तो उनके इस इंकार से नाराज नहीं हो सकते थे,क्योंकि वे जब बातें करते थे तो बेहिचक लंबी बातें करते थे। पिछले कुछ सालों से उन्होंने मिलना-जुलना कम कर दिया था। अपनी फिल्मों की रिलीज के समय वे सभी को बुलाते थे। पत्रकारों को वे नाम से याद रखते थे और उनके संबोधन में एक आत्मीयता रहती थी। बातचीत के दरम्यान वे कई दफा हथेली थाम लेते थे। उनकी पतली जीर्ण होती उंगलियों और नर्म हथेली में गर्मजोशी रहती थी। वे अपनी सक्रियता और संलग्नता की ऊर्जा से प्रभावित करते थे। इस उम्र में भी उनमें एक जादुई सम्मोहन था। देव आनंद ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद से प्रेरित होकर फिल्मों में कदम रखा। आरंभ में उनका संपर्क इप्टा के सक्रिय रंगकर्मियों से रहा। नवकेतन की पहली ही फिल्म अफसर की असफलता से उन्हें हिंदी फिल्मों में मनोरंजन की महत्ता को समझ लिया। बाद म

फिल्‍म समीक्षा : द डर्टी पिक्‍चर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज गांव से भागकर मद्रास आई रेशमा की ख्वाहिश है कि वह भी फिल्मों में काम करे। यह किसी भी सामान्य किशोरी की ख्वाहिश हो सकती है। फर्क यह है कि निरंतर छंटनी से रेशमा की समझ में आ जाता है कि उसमें कुछ खास बात होनी चाहिए। जल्दी ही उसे पता चल जाता है कि पुरुषों की इस दुनिया में कामयाब होने के लिए उसके पास एक अस्त्र है.. उसकी अपनी देह। इस एहसास के बाद वह हर शर्म तोड़ देती है। रेशमा से सिल्क बनने में उसे समय नहीं लगता। पुरुषों में अंतर्निहित तन और धन की लोलुपता को वह खूब समझती है। सफलता की सीढि़यां चढ़ती हुई फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा बन जाती है। निर्माता, निर्देशक, स्टार और दर्शक सभी की चहेती सिल्क अपनी कामयाबी के यथार्थ को भी समझती है। उसके अंदर कोई अपराध बोध नहीं है, लेकिन जब मां उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर देती है और उसका प्रेमी स्टार अचानक बीवी के आ टपकने पर उसे बाथरूम में भेज देता है तो उसे अपने दोयम दर्जे का भी एहसास होता है। सिल्क के बहाने द डर्टी पिक्चर फिल्म इंडस्ट्री के एक दौर के पाखंड को उजागर करती है। साथ ही डांसिंग गर्ल में मौजूद औरत के दर्द को भी जाहिर करती

कट्रीना से बहुत आगे है करीना

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-अजय ब्रह्मात्मज अभी भी खबर केवल यह आई है कि रोहित शेट्टी ने शाहरुख खान के साथ के लिए कट्रीना कैफ को अप्रोच किया है। शाहरुख खान लंबे समय से रोहित शेट्टी को घेर रहे थे कि वे उनके साथ एक फिल्म करें। पहले आइडिया था कि अजय देवगन के साथ अपनी कॉमेडी फिल्मों से मशहूर हुए रोहित शेट्टी उनके लिए एक कॉमेडी फिल्म बनाएंगे। किसी पुरानी मशहूर कॉमेडी फिल्म के रीमेक के बारे में सोचा जा रहा था। इसी बीच अजय देवगन के साथ आई उनकी सिंघम हिट हो गई तो शाहरुख खान ने तय किया कि वे अब रोहित के साथ ऐक्शन फिल्म ही करेंगे। एक्शन हो या कॉमेडी। फिलहाल खबर यह है कि इस फिल्म में कट्रीना कैफ भी होंगी और इस खबर केसाथ स्थापित किया जा रहा है कि कट्रीना अपने प्रतिद्वंद्वी करीना से आगे निकल रही हैं। सही है कि कट्रीना कैफ लगातार सफल फिल्मों का हिस्सा रही हैं। अपनी खूबसूरती के दम पर उन्होंने एक अलग किस्म का मुकाम हासिल कर लिया है, लेकिन अभिनय की बात करें तो अभी उन्हें प्रूव करना है। उनकी कोई भी फिल्म इस लिहाज से उल्लेखनीय नहीं है। अपनी सफल फिल्मों में वे नाचती-गाती गुडि़या से अधिक नहीं होतीं। निर्देशक भी उनकी सीमाओं से वाकिफ ह

हिन्दी फ़िल्म अध्ययन: 'माधुरी' का राष्ट्रीय राजमार्ग-रविकांत

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जानकी पुल से कट-पेस्‍ट.... इतिहासकार रविकांत सीएसडीएस में एसोसिएट फेलो हैं, ‘हिंदी पब्लिक स्फेयर’ का एक जाना-माना नाम जो एक-सी महारत से इतिहास, साहित्य, सिनेमा के विषयों पर लिखते-बोलते रहे हैं. उनका यह लेख प्रसिद्ध फिल्म-पत्रिका ‘माधुरी’ पर पर एकाग्र है, लेकिन उस पत्रिका के बहाने यह लेख सिनेमा के उस दौर को जिंदा कर देता है जब सिनेमा का कला की तरह समझा-बरता जाता था, महज बाज़ार के उत्पाद की तरह नहीं और सिनेमा की पत्रकारिता कुछ मूल्यों, कुछ मानकों के लिए की की जाती थी. ‘लोकमत समाचार’ के दीवाली विशेषांक, २०११ में जब यह लेख पढ़ा तो रविकांत जी से जानकी पुल की ओर से आग्रह किया और उन्होंने कृपापूर्वक यह लेख जानकी पुल के लिए दिया. जानकी पुल की ओर से उनका आभार. जानकी पुल के लिहाज़ से यह लेख थोड़ा लंबा है, लेकिन यादगार और संग्रहणीय. जो सिनेमा के रसिक हैं उनके लिए भी, शोधार्थियों के लिए तो है ही बहुतेरे लोगों को याद होगा कि टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह की फ़िल्म पत्रिका माधुरी हिन्दी में निकलने वाली अपने क़िस्म की अनूठी लोकप्रिय पत्रिका थी , जिसने इतना लंबा और स्वस्थ जीवन जिया। पिछली सदी के सातवें