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चांस लेना मेरी आदत है-प्रियंका चोपड़ा

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-अजय ब्रह्मात्मज     खिलाड़ी का जीवट, कलाकार की ऊर्जा और सीखने के लिए आतुर प्रियंका चोपड़ा अपनी जिंदगी और करिअर के उस मुकाम पर हैं, जहां से ली गई छलांग उड़ान साबित हो सकती है। बचपन में कभी उनका सपना था कि वह एरोनॉटिकल इंजीनियर बनें ताकि हवा से बातें कर सकें और आकाश में रहें। आज वह सचमुच सफलता के आकाश में कुलांचे मार रही हैं। कभी मुंबई तो कभी लास एंजेल्स ़ ़ ़ उन्होंने भारत और अमेरिका की दूरी को कदमों में समेट लिया है। वह फिल्मों में व्यस्त हैं। साथ ही गायकी के लिए पर्याप्त समय निकाल ले रही हैं। पिछले दिनों अमेरिका के टेम्पा शहर में आयोजित आईफा अवार्ड समारोह में उनकी सक्रियता दंग कर रही थी। सुबह से शाम तक विभिन्न इवेंट में सदा मुस्कराती और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करती प्रियंका चोपड़ा के पांवों में ज्यों स्प्रिंग लग गए थे। 15वें आईफा अवार्ड समारोह की सफलता का श्रेय प्रियंका चोपड़ा को भी मिलना चाहिए।     पिछले दस सालों में उन्होंने कामयाबी और कंफीडेंस की लंबी दूरी तय की है। सिर्फ 17 साल की उम्र में मिस इंडिया और मिस वल्र्ड बनने के साथ बरेली की इस नादान लडक़ी की जिंदगी बदल ग

किस्‍मत पर कम हुआ यकीन-तिग्‍मांशु धूलिया

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-अजय ब्रह्मात्मज     निर्देशक तिग्मांशु धूलिया इन दिनों एक्टिंग कर रहे हैं। ‘बुलेट राजा’ के बाद उनकी कोई फिल्म फ्लोर पर नहीं गई है। खाली समय में वे एक्टिंग के ऑफर स्वीकार कर रहे हैं। यहां तक कि अपनी आगामी फिल्म ‘यारा’ में भी वे इरफान के साथ नजर आएंगे। पिछले दिनों उनसे इस अभिनय प्रसंग पर बातें हुई। -अभिनय में आप की सक्रियता बढ़ गई है इन दिनों। कोई खास वजह? 0 ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के बाद लोगों का ध्यान गया कि मैं एक्टिंग भी कर सकता हूं। अभी तक इसे करिअर बनाने का इरादा नहीं है। शुरू में दोस्तों के ऑफर या यों कहें कि डिमांड  ठुकरा नहीं सका। फिलहाल निखिल आडवाणी की फिल्म ‘हीरो’ में शम्मी कपूर वाली भूमिका निभा रहा हूं। अनुराग कश्यप निर्देशित धारावाहिक में भी दिखूंगा, जिसमें अमिताभ बच्चन हैं। उसमें अमित जी ईमानदार बिजनेसमैन बने हैं। मैं उस धारावाहिक में होम मिनिस्टर बना हूं। भ्रष्ट राजनीतिज्ञ हूं। अभी जून से आरंभी हो रही अपनी  ‘यारा’ में छोटी भूमिका निभा रहा हूं। -एक्टिंग की तरफ रुझान कैसे हुआ? 0 मुझे एक्टिंग के ऑफर मिलते रहे हैं। मुझे करना नहीं था। हंसल मेहता की ‘शाहिद’ में सुनील वोहरा

देश को उम्मीद दी है नरेन्द्र मोदी ने-आमिर खान

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-अजय ब्रह्मात्मज अपने कामकाज के बीच आमिर खान ने चुनाव परिणामों में रुचि दिखाई। उन्होंने आज दोपहर में आ रहे परिणामों को टीवी पर देखा और नरेन्द्र मोदी को मिले स्पष्ट बहुमत पर खुशी जतायी। उन्होंने बातचीत में यह उम्मीद जाहिर की कि नरेन्द्र मोदी अपने वादों को पूरा करेंगे और पूरे देश को प्रगति की राह पर ले चलेंगे। - मोदी के नेतृत्व में भाजपा को मिले स्पष्ट बहुमत पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? 0 नरेन्द्र मोदी ने देश को एक उम्मीद दी है। चुनाव प्रचार के दौरान पिछले कुछ महीनों में उन्होंने मतदाताओं उम्मीदें जगा दी हैं। प्रगति और विकास का उन्होंने नारा दिया है। नौकरियां देने का वादा है। आर्थिक प्रगति का वादा है। उनके ये वादे मतदाताओं को अच्छे लगे। युवकों, मजदूरों और व्यापारियों के मन में उन्होंने भारत की एक तस्वीर बसाई है। मतदाताओं को उनकी खींची यह तस्वीर अच्छी लगी। ये सारे वायदे बहुत अच्छे हैं। भ्रष्टाचार मिटाने और खुशहाली लाने के वादे पर लोगों ने भरोसा दिखाया है। उन्हें स्पष्ट बहुमत मिला है। वे फैसले ले सकते हैं। - इस बार मतदान का प्रतिशत बढ़ा।  चुनाव आयोग के ब्रांड ऐंबेसडर के तौर पर वोट देने

फिल्‍म समीक्षा : द एक्‍सपोज

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सातवें दशक की चकाचौंध  -अजय ब्रह्मात्‍मज  हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सातवां दशक। अभी एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन का पदार्पण नहीं हुआ था। फिल्म स्टार, फिल्में, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर का अलग ढर्रा था। चमकदार और रंगीन होने के साथ हिंदी सिनेमा में चकाचौंध अभी आई ही थी। हीरोइनें साड़ी छोड़कर विदेशी परिधानों में दिखने लगी थीं। ऐसे ही परिवेश की कहानी है 'द एक्सपोज'। हिमेश रेशमिया उर्फ रवि कुमार को केंद्र में रख कर बनाई गई इस फिल्म के सारे किरदार सप्तर्षि की तरह हैं। ध्रुवतारा या स्टार एक ही हैं हिमेश रेशमिया। लेखक और निर्देशक का पूरा ध्यान हिमेश रेशमिया पर टिका है। उनकी वेशभूषा, चाल-ढाल, संवाद अदायगी, लुक और अंदाज को हर तरह से सजाने-संवारने की सफल कोशिश की गई है। फिल्म की दोनों हीरोइनों जारा और चांदनी की खूबसूरत और मादक अंदाज में पेश किया गया है। चूंकि माहौल ही फिल्म इंडस्ट्री की रौनक का है, इसलिए वे सभी फिल्म की कहानी में उपयुक्त लगते हैं। फिल्म में निर्माता-निर्देशक के तौर पर आए किरदारों को ठोस चरित्र दिए गए हैं। इनके अलावा बाकी किरदारों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दि

दरअसल : दरकिनार होती करीना कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज     सफल फिल्मों का हिस्सा होने के बावजूद करीना कपूर सफलता की हकदार नहीं हो सकीं। उन्हें याद करते समय उनकी असफल फिल्में पहले याद आ जाती हैं। वह ‘3 इडियट’, ‘गोलमाल 3’, ‘बॉडीगार्ड’ और ‘रा ़ वन’ की हीरोइन थीं, लेकिन इन फिल्मों की सफलता का श्रेय आमिर खान, अजय देवगन, सलमान खान और शाहरुख खान को ही मिलता रहेगा। करीना कपूर को फिलवक्त हम ‘हीरोइन’, ‘एक मैं और एक तू’, ‘सत्याग्रह’ और ‘गोरी तेरे गप्यार में’ जैसी असफल फिल्मों के साथ जोड़ कर देख रहे हैं। देखते ही देखते सेंटर स्टेज से करीना कपूर दरकिनार हो गई हैं। लगता है चर्चा और फिल्मों से गायब हो रही करीना कपूर का ध्यान कहीं और है।     ‘जब वी मेट’ की तत्काल सफलता के बाद ‘टशन’ में सैफ अली खान से हुई उनकी मुलाकात करिअर को नया मोड़ दे गई। इस मोड़ से आगे का रास्ता ढलान का दिख रहा है। सैफ से दोस्ती और शादी के इस दौर में करीना कपूर ने फिल्मों पर फोकस नहीं किया। करिअर के प्रति करीना आरंभ से लापरवाह रही हैं। इस दौर में उनकी लापरवाही और बढ़ गई। समकालीन अभिनेत्रियों में अधिक सक्षम, योग्य, गुणी और भावप्रवीण होने के बावजूद उन्होंने कभी म

दरअसल : अमेरिका में आईफा

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-अजय ब्रह्मात्मज         पूरी दुनिया में मनोरंजन जगत से जुड़े लोगों ने पिछले दिनों दो तस्वीरों को बड़े गौर से देखा। एक तस्वीर मैं जॉन टै्रवोल्टा हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के साथ ठुमके लगा रहे थे। दूसरी तस्वीर में केविन स्पेसी दीपिका पादुकोण के साथ लुंगी डांस कर रहे थे। दोनों ही घटनाएं अप्रत्याशित थीं। तारीफ करनी होगी कि जॉन ट्रैवोल्टा और केविन स्पेसी ने बगैर किसी ना-नुकूर के दोनों वक्त मंच पर पूरे जोश के साथ नृत्यों में हिस्सा लिया। उनकी ये तस्वीरें मीडिया में विभिन्न माध्यमों से फ्लैश हुईं। सहसा यकीन नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है,लेकिन ऐसा हुआ। पिछले दिनों अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट के टेम्पा शहर में 15वां आईफा अवार्ड समारोह आयोजित किया गया था। हालीवुड के दोनों नामवर कलाकार उसी समारोह के खास अतिथि थे।         आईफा हिंदी फिल्मों के अवार्ड और समारोह का अनोखा आयोजन है। यह साल में एक बार दुनिया के किसी भी देश के प्रमुख शहर में आयोजित होता है। स्थानीय प्रशासन और नागरिकों की मदद से संपन्न आईफा अवार्ड समारोहों में मुख्य रूप से विदेशों में बसे हिंदी फिल्मों के प्रेमी अपने

पुरानी बातचीत : हंसल मेहता

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  फिल्‍मों के इतिहास और फिल्‍मकारों के विकास के अध्‍ययन में रुचि रखने वाले चवन्‍नी के पाठकों के लिए हसंल मेहता का यह इंटरव्यू दिल पर मत ले यार के समय यह इंटरव्यू किया गया था। तब इतनी लंबी बातें कर लेना मुश्‍िकल नहीं था। अब न तो जवाब मिलते हैं और न सवाल सूझते हैं। पढ़ने के बाद फीडबैक अवश्‍य दें। यहां या मेल करें। chavannichap@gmail.com -      ' दिल पे मत ले यार ' का आयडिया कब आया ? 0      जब मैं ' जयते ' बना रहा था उस वक्त बहुत सारी कहानियां दिमाग में थीं. हमारे कुछ लेखक कई सारे विषयों पर सोच रहे थे कि किस तरह की फिल्म बनाई जा सकती है. मुझे आर वी पंडित ने कहा था कि मैं कहानी चुनूं , जो प्रासंगिक हो , ऐसी कहानी हो जो जिंदगी से जुड़ी हो. उस वक्त शहर की हालत गंभीर थी. खून-खराबा , गैंगवार जौसी चीजें अपने चरम पे थी. उसी वक्त एक आयडिया दिमाग में आया. और ' जयते ' की कहानी उभरकर आई. और ' जयते ' बना दिया. पर कहीं लगता था कि एक कहानी छूटी हुई है जो अच्छी है. एक समय ऐसा आया जब मैंने सोचा कि उसको लेकर टेलीविजन पर ही कुछ कर दिया जा

लैं‍गिक समानता पर प्रियंका चोपड़़ा

फिल्‍म समीक्षा : मंजुनाथ

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  लालच और उपभोक्तावाद के इस दौर में मंजुनाथ की ईमानदारी और निष्ठा पर अधिकांश व्यक्तियों की यही प्रतिक्रिया होगी, 'इडियट था साला'। क्या मंजुनाथ षणमुगम सचमुच इडियट था? क्या उसने अपनी जिद्द के साथ आ रही मौत की आहट नहीं सुनी होगी? ऐसी क्या बात थी कि वह ऑयल माफिया से टकरा गया? संदीप वर्मा की फिल्म 'मंजुनाथ' मंजुनाथ षणमुगम के बॉयोपिक में इन सवालों से सीधे नहीं टकराती। वह षणमुगम की सरल ईमानदारी को ज्यों का त्यों पेश कर देती है। उसे देखते हुए हमें मंजुनाथ के साहस का एहसास होता है। भ्रष्ट संसार पर गुस्सा आता है और खुद पर शर्म आती है। आखिर क्यों हम सभी ने 'चलता है' एटीट्यूड अपना लिया है? भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने और टकराने के बजाए हम क्यों खामोश और ठंडे पड़ जाते हैं? मंजुनाथ का व्यक्तित्व इस फिल्म के माध्यम सक हमारे जमीर को झकझोरता है। संदीप वर्मा ने मंजुनाथ की इस कहानी के लिए हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय चेहरों का सहारा नहीं लिया है। मंजुनाथ की शीर्षक भूमिका में सशो सतीश सारथी का चयन उल्लेखनीय है। सतीश सारथी के अभिनय और चरित्रांकन में

फिल्‍म समीक्षा : मस्‍तराम

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[अजय ब्रह्मात्मज]  अश्लील और कामुक साहित्य के लेखक के रूप में किंवदंती बन चुके मस्तराम को पहचानने और पूरी विडंबना के साथ उसे पेश करने की कोशिश है 'मस्तराम'। लेखक-निर्देशक अखिलेश जायसवाल ने इस फिल्म के जरिए भारतीय समाज में व्याप्त ढोंग को भी जाहिर किया है। भारतीय समाज में सेक्स अभी तक वर्जित विषय है। हम इस विषय पर किसी भी किस्म की चर्चा से परहेज करते हैं, जबकि समाज में निचले स्तर पर यह गुप्त रूप से लोकप्रिय मुद्दा है। देश का नियम-कानून समाज में अश्लील साहित्य की खरीद-बिक्री की अनुमति नहीं देता, लेकिन मस्तराम जैसे लेखकों की मांग और लोकप्रियता बताती है कि ऐसे साहित्य और सामग्रियों की जरूरत बनी रहती है। फिल्म का नायक राजाराम का छिपा रूप है मस्तराम। वह सामाजिक दबाव में खुल कर सामने नहीं आता। प्रकाशकों के दबाव में आकर वह मसालेदार लेखन से पैसे तो कमा लेता है, लेकिन वह अपना नाम नहीं जाहिर कर सकता। 'मन की विलोचना' नाम से लिखे उसके गंभीर उपन्यास के पाठक नहीं हैं। दरअसल 'मस्तराम' भारतीय समाज में प्रचलित पाखंड को उजागर करती है। लेखक-निर्देशक ने विषय के