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किरदार में डूब कर मिलती है कामयाबी : विद्या

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सशक्त अभिनेत्रियों की फेहरिस्त में विद्या बालन अग्रिम कतार में आती हैं। उनकी हालिया फिल्म ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ बॉक्स ऑफिस चमक बिखेर नहीं सकी, मगर वे जल्द ‘बॉबी जासूस’ से वापसी करने की तैयारी में हैं। उनके करियर को रवानगी प्रदान करने में ‘कहानी’ और ‘द डर्टी पिक्चर’ की अहम भूमिका रही है। अदाकारी को लेकर उनका अप्रोच जरा हटके है। वे साझा कर रही हैं अपनी कार्यप्रणाली     मैं किरदार की आत्मा में उतरने के लिए आमतौर पर स्क्रिप्ट को बड़े ध्यान से सुनती और पढ़ती हूं। मैं किरदार की अपनी पृष्ठभूमि तैयार करती हूं। अक्सर किरदार से प्यार करने लग जाती हूं और फिर उसे पोट्रे करती हूं। उस लिहाज से मेरे करियर में ‘कहानी’ सबसे चुनौतीपूर्ण फिल्म रही है। विद्या बागची को मुझे कैसे पेश करना है, वह मेरी समझ में परे था। सुजॉय घोष ने भी मुझे पूरी स्क्रिप्ट नहीं सुनाई थी। उन्होंने मुझे बस उसकी एक लाइन सुनाई। उसके आगे विद्या बागची के किरदार की कहानी बस कहानी थी। उसका एक फायदा यह हुआ कि मैं विद्या बागची के चेहरे पर असमंजस भाव लगातार कायम रख सकी। मैं उसे परफॉरमेंस नहीं कहूंगी। मैंने उस किरदार को जिया। उसे नि

फिल्‍म समीक्षा : एक विलेन

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एंग्री यंग मैन की वापसी   -अजय ब्रमात्‍मज    गणपति और दुर्गा पूजा के समय मंडपों में सज्जाकार रंगीन रोशनी, हवा और पन्नियों से लहकती आग का भ्रम पैदा करते हैं। दूर से देखें या तस्वीर उतारें तो लगता है कि आग लहक रही है। कभी पास जाकर देखें तो उस आग में दहक नहीं होती है। आग का मूल गुण है दहक। मोहित सूरी की चर्चित फिल्म में यही दहक गायब है। फिल्म के विज्ञापन और नियोजित प्रचार से एक बेहतरीन थ्रिलर-इमोशनल फिल्म की उम्मीद बनी थी। इस विधा की दूसरी फिल्मों की अपेक्षा 'एक विलेन' में रोमांच और इमोशन ज्यादा है। नई प्रतिभाओं की अभिनय ऊर्जा भी है। रितेश देशमुख बदले अंदाज में प्रभावित करते हैं। संगीत मधुर और भावपूर्ण है। इन सबके बावजूद जो कमी महसूस होती है, वह यही दहक है। फिल्म आखिरी प्रभाव में बेअसर हो जाती है। नियमित रूप से विदेशी फिल्में देखने वालों का 'एक विलेन' में कोरियाई फिल्म 'आई सॉ द डेविलÓ की झलक देख सकते हैं। निस्संदेह 'एक विलेन' का आइडिया वहीं से लिया गया है। उसमें प्रेम और भावना की छौंक लगाने के साथ संगीत का पुट मिला दिया गया है। जैसे कि हम

दरअसल : टीवी में मिलती है ट्रेनिंग

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-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों सक्रिय अधिकांश फिल्म निर्देशकों के काम को पलट कर देखें तो पाएंगे कि उन्होंने किसी न किसी टीवी शो से शुरुआत की। अभी जो नाम याद आ रहे हैं, उनमें साजिद खान, हंसल मेहता,इम्तियाज अली, अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, अनुराग बसु, श्रीराम राघवन, ईशान त्रिवेदी, अनुभव कश्यप, अश्विनी धीर, चंद्रप्रकाश द्विवेदी आदि ने पहले टीवी के लिए शो या धारावाहिक निर्देशित किए। बाद में उन्होंने फिल्मों में हाथ आजमाया और सफल रहे।     इन सभी ने दूरदर्शन और उसके बाद के दौर में सैटेलाइट टीवी के प्रसार के समय इस क्षेत्र में प्रवेश किया। यह वह दौर था, जब फिल्मों के निर्देशक टीवी शो को अपेक्षाकृत छोटा काम समझते थे। आज भी इस समझ में अधिक बदलाव नहीं आया है। एक बार टीवी की दुनिया से फिल्मों में प्रवेश करने के बाद निर्देशक टीवी की तरफ नहीं लौटते। दोनों अनुराग (बसु और कश्यप) अपवाद हो सकते हैं। इन दोनों ने फिल्मों में कामयाबी हासिल करने के बाद भी टीवी को हेय दृष्टि से नहीं देखा। अनुराग कश्यप का ‘युद्ध’ धारावाहिक जल्द ही प्रसारित होगा।     21वीं सदी के सिनेमा में आए बदलाव में इन निर्देशकों ने उत

चमकने लगे हैं नए सितारे

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों में कुछ सितारे ध्रुवतारे की तरह टिक गए हैं। दशकों से कामयाब इन सितारों की चमक फीकी नहीं पड़ रही है। दर्शक भी इन्हें पसंद करते हैं। वे इनकी फिल्मों के लिए उतावले होते हैं। खानत्रयी (आमिर, सलमान और शाहरुख) का जादू अभी तक बरकरार है। इस साल के आरंभ में सलमान खान की ‘जय हो’ आ चुकी है। हालांकि इस फिल्म ने अच्छा कारोबार नहीं किया, फिर भी कलेक्शन 100 करोड़ से अधिक रहा। 2014 की दूसरी छमाही में आमिर, सलमान और शाहरुख का जलवा दिखेगा। ईद, दीवाली और क्रिसमस के मौके पर आ रही इनकी फिल्में देश के सभी सिनेमाघरों में त्योहार का माहौल बनाएंगी।     इस बीच पिछले छह महीनों में या यूं कहें कि 2014 की पहली छमाही में कुछ नए सितारों ने अपनी चमक दिखाई है। हिंदी फिल्मों में नवोदित सितारों की ऐसी चमक लंबे समय के बाद नोटिस की जा ही है। ये सभी सितारे अपनी दूसरी-तीसरी फिल्मों से बाजार, इंडस्ट्री और दर्शकों को भरोसा दे रहे हैं कि वे अपनी सामथ्र्य से दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए तैयार हैं। इन सितारों की फिल्मों का बिजनेस संतोषजनक है। वे पुराने लोकप्रिय सितारों की परंपरा आगे बढ़ान

2014 की दूसरी छमाही की 10 उम्‍मीदें

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों के सारे दिग्गज और पापुलर सितारों की फिल्में अगली छमाही में रिलीज होगी। जुलाई से दिसंबर के छह महीनों में हर महीना और हर त्योहार किसी न किसी सितारे के नाम सुरक्षित हो चुका है। पिछले कुछ सालों से यह ट्रेड सा बनता जा रहा है कि पापुलर स्टार अपनी फिल्में साल के उत्तरार्द्ध में लेकर आते हैं। ईद पर सलमान खान, दीवाली पर शाहरुख खान और क्रिसमस पर आमिर खान ने अपनी फिल्मों की रिलीज सुनिश्चित कर ली है। इनकी फिल्मों के एक हफ्ते पहले से एक हफ्ते बाद तक कोई भी फिल्म टक्कर में नहीं आती। वैसे इस बार रिलीज की तारीखों की मारामारी से कुछ फिल्में आगे-पीछे रिलीज होंगी। खानत्रयी के अलावा अक्षय कुमार, अजय देवगन, रितिक रोशन और सैफ अली खान की भी फिल्में रहेंगी। इनके अलावा नए सितारे रणवीर सिंह और रणबीर कपूर भी जोर आजमाईश करेंगे। रणबीर कपूर की तो फिल्में अगली छमाही में रिलीज होंगी। 1. पीके - राजकुमार हिरानी की ‘पीके’ पर सभी की निगाहें टिकी हैं। ‘3 इडियट’ की जबरदस्त कामयाबी के राजकुमार हिरानी फिर से आमिर खान के साथ आ रहे हैं। आमिर का परफेक्शन और हिरानी का डायरेक्शन एक बार फिर ब

शक्तिपाद राजगुरू

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  -प्रकाश के रे  जीवन की अर्थहीनता मनुष्य को उसका अर्थ रचने के लिए विवश करती है . यह अर्थ - रचना लिखित हो सकती है , विचारों के रूप में हो सकती है , इसे फिल्म के रूप में भी अभिव्यक्त किया जा सकता है . महान फिल्मकार स्टेनली क्यूब्रिक के इस कथन को हम किसी लिखित या वाचिक अभिव्यक्ति को फिल्म का रूप देने या किसी फिल्म को कहने या लिखने की स्थिति में रख दें , जो जीवन के अर्थ रचने की प्रक्रिया जटिलतर हो जाती है . शायद ऐसी स्थितियों में ही देश और काल से परे कृतियों का सृजन होता होगा तथा ऐसी कृतियां स्वयं में एक अलग जीवन रच देती होंगी जिनके अर्थों की पुनर्चना की आवश्यकता होती होगी या जिनसे पूर्वरचित अर्थों को नये माने मिलते होंगे . ॠत्विक घटक की फिल्म मेघे ढाका तारा (1960) एक ऐसी ही रचना है . इस फिल्म की मूल कथा शक्तिपाद राजगुरू ने लिखी थी . इस महान बांग्ला साहित्यकार का 12 जून को  92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया . बंगाल के एक गांव में 1922 में जन्मे शक्तिपाद राजगुरू का पहला उपन्यास कोलकता में पढ़ाई करते हुए 1945 में प्रकाशित हुआ . उन्होंने अपने लंबे सृजनात्मक जीवन में सौ से अधिक उपन्य

किक का गाना जुम्‍मे की रात

हम जो कुछ नया करते हैं,वह पुराना ही होता है। अब किक का गाना 'जुममे की रात' ही देख लें। इस गाने का फील अमिताभ बच्‍चन पर फिल्‍माए लोकप्रिय गीत 'जुम्‍मा चुम्‍मा दे दे' जैसा ही है। अमिताभ बच्‍चन और सलमान खान अलग किस्‍म के डांसर और परफार्मर हैं। वह भिन्‍नता यहां दिखती है। सलमान खान अपने अंदाज में हैं। गौर करें तो वे अपनी नायिकाओं को रिझाते समय मदमस्‍त हो जाते हैं। जैक्‍लीन फर्नांडिस को सेक्‍सी रंग और ठसक ढंग से पेश किया गया है। हिमेश रेंश्‍मिया ने सलमान खान को पॉपुलर हो सकने वाले गाने की सौगात दी है। तो क्‍या आप भाई के साथ जुम्‍म्‍ो की रात बिताने के लिए तैयार हैं ?

फिल्‍म समीक्षा : हमशकल्‍स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज साजिद खान की 'हमशकल्स' वास्तव में हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर में बड़बोले 'कमअकल्स' के फूहड़ योगदान का ताजा नमूना है। इस फिल्म में पागलखाने के नियम तोडऩे की एक सजा के तौर पर साजिद खान की 'हिम्मतवाला' दिखायी गयी है। भविष्य में कहीं सचमुच 'हमशकल्स' दिखाने की तजवीज न कर दी जाए। साजिद खान जैसे घनघोर आत्मविश्वासी इसे फिर से अपनी भूल मान कर दर्शकों से माफी मांग सकते हैं, लेकिन उनकी यह चूक आम दर्शक के विवेक को आहत करती है। बचपना और बचकाना में फर्क है। फिल्मों की कॉमेडी में बचपना हो तो आनंद आता है। बचकाने ढंग से बनी फिल्म देखने पर आनंद जाता है। आनंद जाने से पीड़ा होती है। 'हमशकल्स' पीड़ादायक फिल्म है। साजिद खान ने प्रमुख किरदारों को तीन-तीन भूमिकाओं में रखा है। तीनों हमशकल्स ही नहीं, हमनाम्स भी हैं यानी उनके एक ही नाम हैं। इतना ही नहीं उनकी कॉमेडी भी हमशक्ली है। ये किरदार मौके-कुमौके हमआगोश होने से नहीं हिचकते। डायलॉगबाजी में वे हमआहंग (एक सी आवाजवाले) हैं। उनकी सनकी कामेडी के हमऔसाफ (एकगुण) से खिन्नता और झुंझलाहट बढ़त

हंसी की पुडिय़ा बांधता हूं मैं-साजिद खान

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘हिम्मतवाला’  की असफलता के बाद साजिद खान ने चुप्पी साध ली थी। अभी ‘हमशकल्स’ आ रही है। उन्होंने इस फिल्म के प्रचार के समय यह चुप्पी तोड़ी है। ‘हिम्मतवाला’ के समय किए गए दावों के पूरे न होने की शर्म तो उन्हें है, लेकिन वे यह कहने से भी नहीं हिचकते कि पिछली बार कुछ ज्यादा बोल गया था। - ‘हिम्मतवाला’ के समय के सारे दावे गलत निकले। पिछले दिनों आपने कहा कि उस समय मैं झूठ बोल गया था। 0 झूठ से ज्यादा वह मेरा बड़बोलापन था। कह सकते हैं कि वे बयान नासमझी में दिए गए थे। दरअसल मैं कुछ प्रुव करना चाह रहा था। तब ऐसा लग रहा था कि मेरी फिल्म अवश्य कमाल करेगी। अब लगता है कि ‘हिम्मतवाला’ का न चलना मेरे लिए अच्छा ही रहा। अगर फिल्म चल गई होती तो मैं संभाले नहीं संभलता। इस फिल्म से सबक मिला। यह सबक ही मेरी सफलता है। मैंने महसूस किया कि मैं हंसना-हंसाना भूल गया था। अच्छा ही हुआ कि असफलता का थप्पड़ पड़ा। अब मैं संभल गया हूं। - ऐसा क्यों हुआ था? 0 मैं लोगों का ध्यान खींचना चाहता था। एक नया काम कर रहा था। मेरी इच्छा थी कि लोगों की उम्मीदें बढ़ें। वैसे भी दर्शकों की अपेक्षाए

दरअसल : तारीफों की टर्र-टर्र

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-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों कई फिल्मों की रिलीज के समय अचानक सोशल मीडिया नेटवर्क पर फिल्मी हस्तियों की सिफारिशें आरंभ हो जाती हैं। बरसाती मेढकों की तरह प्रशंसक टरटराने लगते हैं। फेसबुक और ट्विटर पर इनकी टर्र-टर्र ऐसी गूंजती है कि हर तरफ तारीफ बरसने लगती है। छोटी फिल्मों के लिए यह अच्छी बात होती है। माहौल बन जाता है। इस माहौल में दर्शक मिल जाते हैं। हाल ही में ‘फिल्मिस्तान’  और ‘द वल्र्ड बिफोर हर’ इसके उदाहरण रहे।     ‘फिल्मिस्तान’ 2012 की फिल्म है। उस साल यह अनेक फेस्टिवल में दिखाई गई। 2012 के लिए इसे 2013 में पुरस्कार भी मिला, लेकिन वितरकों के अभाव में ‘फिल्मिस्तान’ समय पर रिलीज नहीं हो सकी। भला हो श्याम श्रॉफ और उनकी श्रृंगार फिल्म्स का। उन्हें फिल्म अच्छी लगी तो वितरण का रास्ता आसान हो गया। फिर यूटीवी का भी समर्थन मिल गया। ‘फिल्मिस्तान’ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की प्रमुख हस्तियों को दिखाई गई। सभी ने तारीफ के पुल बांधे। शाबिर हाशमी और इनामुल हक के साथ तस्वीरें खिचवाई गईं। बताया गया कि यह श्रेष्ठ सिनेमा है। इस श्रेष्ठ सिनेमा को एक साल से ज्यादा समय तक गुमनाम क्यों रहना पड़ा? देखें तो