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दरअसल : पहली छमाही के संकेत
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-अजय ब्रह्मात्मज 2014 की पहली छमाही ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को उम्मीद और खुशी दी है। हिट और फ्लाप से परे जाकर देखें तो कुछ नए संकेत मिलते हैं। नए चेहरों की जोरदार दस्तक और दर्शकों के दिलखोल स्वागत ने जाहिर कर दिया है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री नई चुनौतियों के लिए तैयार है। नए विषयों की फिल्में पसंद की जा रही हैं। एक उल्लेखनीय बदलाव यह आया है कि पोस्टर पर अभिनेत्रियां दिख रही हैं। यह धारणा टूटी है कि बगैर हीरो की फिल्मों को दर्शकों का अच्छा रेस्पांस नहीं मिलता। पहली छमाही में अभिनेत्रियों की मुख्य भूमिका की कुछ फिल्मों ने साबित कर दिया है कि अगर फिल्मों को सही ढंग से पेश किया जाए तो दर्शक उन्हें लपकने को तैयार हैं। अगर कोताही हुई तो दर्शक दुत्कार भी देते हैं। ‘क्वीन’ और ‘रिवाल्वर रानी’ के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। अभिनेत्रियों की स्वीकृति में आए उभार और उनकी फिल्मों की बात करें तो पहली छमाही में माधरी दीक्षित और हुमा कुरेशी की ‘डेढ़ इश्किया’ और माधुरी दीक्षित की ‘गुलाब गैंग’ है। कमोबेश दोनों फिल्मों को दर्शकों का बहुत अच्छा रेस्पांस नहीं मिला। कहीं कुछ गड़बड़ हो गई। फिर
अपनी लुक के लिए मैं क्यों शर्मिंदगी महसूस करूं ? -हुमा कुरेशी
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(हुमा कुरेशी ने यह लेख इंडियन एक्सप्रेस के लिए शनिवार,26 जुलाई को लिखा थ। मुझे अच्छा और जरूरी लगा तो उनके जन्मदिन 28 जुलाई के तोहफे के रूप में मैंने इस का अनुवाद कर दिया।) मेरी हमेशा से तमन्ना थी कि अभिेनेत्री बनूंगी,लेकिन इसे स्वीकार करने के लिए हिम्मत की जरूरत पड़ी। खुद को समझाने के लिए भी।हां,मैं मध्यवर्गीय मुसलमान परिवर की लड़की थी,एक हद तक रुढि़वादी। पढ़ाई-लिखाई में हेड गर्ल टाइप। मैं पारंपरिक 'बॉलीवुड हीरोइन' मैटेरियल नहीं थी। औरत के रूप में जन्म लेने के अनेक नुकसान हैं...भले ही आप कहीं पैदा हो या जैसी भी परवरिश मिले। इंदिरा नूई,शेरल सैंडबर्ग और करोड़ों महिलाएं इस तथ्य से सहमत होंगी। निस्संदेह लड़की होने की वजह से हमरा पहला खिलौना बार्बी होती है। ग्लोबलसाइजेशन की यह विडंबना है कि हमारे खेलों का भी मानकीकरण हो गया है। पांच साल की उम्र में मिला वह खिलौना हमारे शारीरिक सौंदर्य और अपीयरेंस का आजीवन मानदंड बन जाता है।(मैं दक्षिण दिल्ली की लड़की के तौर पर यह कह रही हूं।) संक्षेप में परफेक्शन। परफेक्शन का पैमाना बन जाता है। दुनिया ने मेरे अंदर
फिल्म समीक्षा : किक
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-अजय ब्रह्मात्मज कुछ फिल्में समीक्षाओं के परे होती हैं। सलमान खान की इधर की फिल्में उसी श्रेणी में आती हैं। सलमान खान की लोकप्रियता का यह आलम है कि अगर कल को कोई उनकी एक हफ्ते की गतिविधियों की चुस्त एडीटिंग कर फिल्म या डाक्यूमेंट्री बना दे तो भी उनके फैन उसे देखने जाएंगे। ब्रांड सलमान को ध्यान में रख कर बनाई गई फिल्मों में सारे उपादानों के केंद्र में वही रहते हैं। साजिद नाडियाडवाला ने इसी ब्रांड से जुड़ी कहानियों, किंवदंतियो और कार्यों को फिल्म की कहानी में गुंथा है। मूल तेलुगू में 'किक' देख चुके दर्शक बता सकेगे कि हिंदी की 'किक' कितनी भिन्न है। सलमान खान ने इस 'किक' को भव्यता जरूर दी है। फिल्म में हुआ खर्च हर दृश्य में टपकता है। देवी उच्छृंखल स्वभाव का लड़का है। इन दिनों हिंदी फिल्मों के ज्यादातर नायक उच्छृंखल ही होते हैं। अत्यंत प्रतिभाशाली देवी वही काम करता है, जिसमें उसे किक मिले। इस किक के लिए वह अपनी जान भी जोखिम में डाल सकता है। एक दोस्त की शादी के लिए वह हैरतअंगेज भागदौड़ करता है। इसी भागदौड़ में उसकी मुलाकात शायना से हो जाती है। शा
दरअसल : खान बनाम खान बनाम खान
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-अजय ब्रह्मात्मज ईद के मौके पर सलमान खान की ‘किक’ रिलीज होगी। पिछले कुछ सालों से सलमान खान की फिल्में ईद पर ही रिलीज हो रही हैं। दर्शकों के प्रेम और सराहना से उन्हें कामयाबी के रूप में ईदी मिल जाती है। अगले साल की ईद के लिए भी उनकी फिल्म घोषित हो चुकी है। ‘किक’ के निर्माता-निर्देशक साजिद नाडियाडवाला हैं। अपनी पहली फिल्म के निर्माण और प्रमोशन में वे किसी प्रकार की कमी नहीं रहने देना चाहते। इस साल की अभी तक की यह बहुप्रचारित फिल्म है। हालांकि इस बीच प्रेस फोटोग्राफरों से सलमान खान की अनबन हुई है। फिर भी ‘किक’ और सलमान खान में दर्शकों की मांग की वजह से मीडिया की रुचि कम नहीं हुई है। सलमान खान स्वयं आगे बढ़ कर सहयोग कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे ‘जय हो’ की गलती नहीं दोहराना चाहते। हालांकि ‘जय हो’ 100 करोड़ क्लब में आ गई थी,लेकिन वह सलमान खान की इमेज और हैसियत के हिसाब से बिजनेस के मामले में कमजोर फिल्म रही। सलमान खान की तरह ही शाहरुख खान और आमिर खान भी अपनी फिल्मों के प्रचार और विज्ञापन की तैयारी में जुटे हैं। शाहरूख खान की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ दीपावली के मौके पर आएगी और आमिर खा
ताजिंदगी 27 साल का रहूं मैं-सलमान खान
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-अजय ब्रह्मात्मज ऐसा कम होता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सीनियर बाद की पीढ़ी की खुले दिल से तारीफ नहीं करते। सलमान खान इस लिहाज से भिन्न हैं। वे अपनी फिल्मों में नई प्रतिभाओं को मौका देते और दिलवाते हैं। पिछली मुलाकात में उन्होंने शुरुआत ही नए और युवा स्टारों की तारीफ से की। फिल्मों की रिलीज के समय उनके अपार्टमेंट गैलेक्सी के पास स्थित महबूब स्टूडियो उनका दूसरा घर हो जाता है। एक अस्थायी कैंप बन जाता है। उनके सारे सहयोगी तत्पर मिलते हैं। यहीं वे मीडिया के लोगों से मिलते हैं। पिछले कुछ सालों से यही सिलसिला चल रहा है। ‘किक’ के लिए हुई इस मुलाकात में सलमान खान ने सबसे पहले अर्जुन कपूर ,आलिया भट्टऔर वरुण धवन समेत सभी नए टैलेंट की तारीफ की। उन्होंने अपने अनुभव से कहा कि वे खुले मिजाज के हैं। बातचीत और मेलजोल में किसी प्रकार का संकोच नहीं रखते। मैंने देखा है कि वे आपस में एक-दूसरे की खिंचाई भी करते हैं। खिल्ली उड़ाते हैं। मेरी पीढ़ी में केवल मैं हंसी-मजाक करता हूं। दूसरे तो सीरियस रहते हैं। अपनी पीढ़ी की बातें करते समय उन्होने जाहिर किया कि संजू यानी संजय दत्त के साथ उनकी ऐसी दोस्ती
फिल्म समीक्षा : हेट स्टोरी 2
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-अजय ब्रह्मात्मज यह पिछली फिल्म की सीक्वल नहीं है। वैसे यहां भी बदला है। फिल्म की हीरोइन इस मुहिम में निकलती हैं और कामयाब होती हैं। विशाल पांड्या की 'हेट स्टोरी 2' को 'जख्मी औरत' और 'खून भरी मांग' जैसी फिल्मों की विधा में रख सकते हैं। सोनिका अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेती है। विशाल पांड्या ने सुरवीन चावला और सुशांत सिंह को लेकर रोचक कहानी बुनी है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि अंत तक यह जिज्ञासा बनी रहती है कि वह मंदार से प्रतिशोध कैसे लेगी? सीक्वल और फ्रेंचाइजी में अभी तक यह परंपरा रही है कि उसकी कहानी, किरदार या कलाकार अगली फिल्मों में रहते हैं। 'हेट स्टोरी 2' में विशाल इस परंपरा से अलग जाते हैं। उन्होंने बिल्कुल नई कहानी और किरदार लिए हैं। उनके कलाकार भी नए हैं। इस बार सोनिका (सुरवीन चावला) किसी मजबूरी में मंदार (सुशांत सिंह) की चपेट में आ जाती है। भ्रष्ट, लोलुप और अत्याचारी मंदार उसे अपनी रखैल बना लेता है। वह उसकी निजी जिंदगी पर फन काढ़ कर बैठ जाता है। स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि सोनिका अ
फिल्म समीक्षा : पिज्जा
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- अजय ब्रह्मात्मज निर्माता बिजॉय नांबियार और निर्देशक अक्षय अक्किनेनी की फिल्म 'पिज्जा' तमिल में बन चुकी इसी नाम की फिल्म की रीमेक है। अक्षय अक्किनेनी ने हिंदी दर्शकों के लिहाज से स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव किए हैं। उन्होंने अपने कलाकारों अक्षय ओबरॉय और पार्वती ओमनाकुट्टन की खूबियों व सीमाओं को ध्यान में रखते हुए कथा बुनी है। 'पिज्जा' हॉरर फिल्म है, इसलिए हॉरर फिल्म के लिए जरूरी आत्मा, भूत-प्रेत, खून-खराबा सारे उपादानों का इस्तेमाल किया गया है। अक्षय की विशेषता कह सकते हैं कि वे इन उपादानों में रमते नहीं हैं। बस आवश्यकता भर उनका इस्तेमाल कर अपनी कहानी पर टिके रहते हैं। 'पिज्जा' डिलीवरी ब्वॉय कुणाल और उसकी प्रेमिका निकिता की प्रेम कहानी भी है। दोनों इस शहर में अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं। निकिता अपनी कल्पना से घोस्ट स्टोरी लिखा करती है। उसकी कल्पना एक समय पर इतनी विस्तृत और पेचीदा हो जाती है कि वह कुणाल के साथ खुद भी उसमें शामिल हो जाती है। इस हॉरर फिल्म में अक्षय ने जबरदस्त रहस्य रचा है। आखिरी दृश्य तक फिल्म बांधे रखती है और जब रहस्य खुलत