इमरान खान से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

रियलिस्टिक और नैचुरल है जाने तू ....- इमरान खान

क्या आप पहली रिलीज के लिए तैयार हैं?
मुझे नहीं लगता कि ऐसे तैयार होना आसान है, हम ये नहीं सोचते हैं कि आगे जाकर क्या होगा। हमने कोशिश की है कि अच्छी फिल्म बन सके, मैंने ईमानदारी से काम किया है ....आगे क्या होगा किसी को पता नहीं।
लेकिन कुछ तो तैयारी रही होगी। बाहर इतना कम्पिटीशन है। आप पहुंचेंगे, बहुत सारे लोग पहले से ही मैदान में खड़े हैं?
कम्पिटीशन के बारे में आपको सोचना नहीं चाहिए। आपको अपना काम करना है। अगर मैं बैठ कर सोचूंगा कि बाकी एक्टर क्या कर रहे हैं, कैसी फिल्में कर रहे हैं। ये कॉमेडी फिल्म कर रहा है, ये रोमांटिक फिल्म कर रहा है तो मैं अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाऊंगा। मुझे अपना काम करना है, मुझे अपना काम देखना है। मुझे सोचना है कि मुझे कैसी फिल्में अच्छी लगती हैं। मुझे कैसी स्क्रिप्ट पसंद हैं। और ये काम मैं कितने अच्छे तरीके से कर सकता हूं। कभी किसी को देख जलना नहीं चाहिए, इंस्पायर होना चाहिए। किसी और को देखकर अपना काम नहीं करना चाहिए। मेरे खयाल में कम्पिटीशन के बारे में सोचना नहीं चाहिए।
कैसे फैसला लिया कि जाने तू या जाने ना ही करनी है पहले?
यही फिल्म आई मेरे पास। मुझे एक्टर नहीं बनना था। मुझे रायटर-डायरेक्टर बनना था। मैं फिल्म स्कूल भी गया था। मैंने ट्रेनिंग ली है। मैंने सोचा था कि मैं वापस आकर डायरेक्टर बनूंगा। मैंने रायटिंग और डायरेक्शन का कोर्स किया था। मैंने सोचा था कि मैं यहां आकर डायरेक्टर बनूंगा। रायटर बनूंगा। और मैं यही काम कर रहा था। मैंने एकाध स्क्रिप्ट लिखी थी। मैं लोगों से मिल रहा था। टेलीविजन में भी कोशिश कर रहा था कि शायद कोई टेलीविजन शो में रायटर-डायरेक्टर बनूं। असिस्टेंट बन जाऊं या ऐसा कुछ करूं। बीच में अचानक से मेरी मुलाकात अब्बास टायरवाला से हुई। मुझे वे बहुत पसंद आए। उन्होंने मुझे जाने तू या जाने ना की कहानी सुनाई। मुझे कहानी बहुत पसंद आई। और अब्बास ने कहा कि मैं इस कहानी के लिए बिल्कुल सही हूं। उन्होंने कहा कि पहली मुलाकात से मुझे लग गया था कि यू आर द राइट पर्सन ़ ़ मुझे भी कहानी बहुत अच्छी लगी। मैंने इतना सोचा भी नहीं कि मैं ऐसे लांच हो जाऊंगा, मैं हीरो बनूंगा। मैं ये करूंगा। मैं वो करूंगा। मुझे लगा कि एक फिल्म आई है, मुझे फिल्म पसंद है तो मैं कर लेता हूं। आगे जाकर अगर कोई फिल्में ना मिले तो भी ठीक है।
फिल्म के लिए आपको अब्बास ने राजी किया या आपको इस फिल्म में क्या बात अच्छी लगी, जिसकी वजह से आपने तुरंत हां कह दिया?
बहुत यूथफूल कहानी है। बहुत ईमानदार फिल्म है। मैंने ऐसी बहुत फिल्में देखी हैं, जहां रायटर, डायरेक्टर और एक्टर ने कोशिश की कि वे आज के यूथ को दिखाएं कि आजकल के नौजवान कैसे हैं। उनमें से ज्यादातर ठीक से दिखा नहीं पाए। शायद वे ठीक से समझ नहीं पाए कि आज की यूथ कैसी है, उनकी सोच कैसी है, उनकी लाइफ कैसी है। अब्बास खुद बहुत यंग हैं। मुझे लगा कि फिल्म में जो इमोशन हैं, जो सिचुएशन हैं, जो कैरेक्टर हैं, वे सब रियल है। मैं तुरंत इस कहानी से जुड़ गया। मुझे लगा कि कोई ऐसी फिल्म बना रहा है, जो पॉपुलर कमर्शियल हिंदी फिल्म है, लेकिन इतनी रियलिस्टक भी है। मुझे लगा किमुझे इसका हिस्सा होना पड़ेगा। आय वांट टू।
जैसे आप बता रहे थे कि आप डायरेक्टर बनना चाहते थे और उसकी ट्रेनिंग भी ली थी आपने और जब ये एक्टिंग का ऑफर आया तो आपने हां कर दी। आपने क्यों सोचा कि चलो एक्टिंग कर लेते हैं?
क्योंकि मुझे एक्टिंग का भी बहुत शौक है। मुझे फिल्मों का बहुत शौक है। चाहे वो रायटिंग हो या डायरेक्शन या कैमरा वर्क ....एडीटिंग भी मुझे बहुत पसंद है। मुझे गानों का बहुत शौक है। म्यूजिक बहुत सुनता हूं।
आपकी पढ़ाई-लिखाई कहां हुई है?
मेरी स्कूलिंग काफी जगहों पर हुई है। पहले मुंबई में हुई थी। मैं बॉम्बे स्कॉट्सि में था फोर्थ स्टैंडर्ड तक। उसके बाद मैं ऊटी चला गया। मैं ऊटी में बोर्डिग स्कूल में था आठवीं कक्षा तक। 9वीं और 10वीं में मैं बंगलूर में था। उसके बाद 11वीं और 12वीं मैंने अमेरिका में की। उसके बाद फिल्म स्कूल गया।
फिल्म स्कूल जाने का इरादा क्यों? आपने फिल्म स्कूल ही क्यों चुना?
मैं फिल्मों में काम करना चाहता था। मुझे फिल्मों का बहुत शौक था। मैंने थोड़ा-बहुत सोचा कि कुछ और करूं। कुछ पसंद नहीं आया। जब पंद्रह-सोलह साल का था, मुझे मालूम था कि मुझे फिल्मों में कुछ करना है। वो क्या है, ठीक से मुझे मालूम नहीं था। सोचते-सोचते मैं डायरेक्शन पर आ गया। मैं बचपन से लिखता रहा हूं। मैं छोटी-मोटी फिल्में भी बनाता था। मुझे मालूम था कि मुझे डायरेक्शन का शौक है, रायटिंग का शौक है। उस समय के एक्टरों को देख कर मुझे नहीं लगता था कि मैं ये कर सकता हूं। मैं अपने आप को उस स्टाइल में नहीं देख पाता था। मैंने सोचा नहीं था कि मैं एक्टर बनूंगा। जब ये स्क्रिप्ट आई, इसमें जो हीरो का कैरेक्टर है, वो एक सीधा-सादा नार्मल लड़का है। उसकी बॉडी नहीं है, वो डांस नहीं कर सकता। वो फाइट नहीं करता। सीधे शब्दों में कहें तो ब्वॉय नेक्स्ट डोर है। इसलिए मुझे लगा कि मैं कर सकता हूं। यह रियलिस्टिक और नेचुरल कैरेक्टर है, इसे मैं निभा सकता हूं।
आपको पहली बार यह कब एहसास हुआ कि आप फिल्म फैमिली से हैं और आपकी फैमिली के लोग एक्टर हैं, डायरेक्टर या नाना जी हैं वो फिल्म वाले हैं।
मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया, क्योंकि हमारी फैमिली फिल्मी नहीं है। मतलब हम फिल्मी पार्टियों में नहीं जाते थे। मैं कभी दूसरे एक्टर, डायरेक्टर या प्रोडयूसर के बच्चों के साथ नहीं खेलता था। कभी उनसे मिला भी नहीं हूं। मेरे जो स्कूल के दोस्त थे, मैं उनके साथ खेलता था। हमारी जो फैमिली फ्रेंड हैं वो फिल्मों में काम नहीं करते हैं। मुझे मालूम था कि मेरी फैमिली के लोग फिल्मों में काम करते हैं। क्योंकि मैं सेट पर जा चुका था, एडीटिंग, शूटिंग देख चुका था, लेकिन वो जो फिल्मी-फिल्मी जिसको कहते हैं, वो मैंने कभी देखा नहीं था। और आज तक मैंने नहीं देखा है। हमारी सोच ऐसी नहीं है।
पहली बार कब किसी सेट पर गए थे आप?
जब मैं तीन-चार साल का था। कयामत से कयामत तक की शूटिंग पर गया था। मैंने उसमें एक छोटा रोल भी किया था। मैंने आमिर मामू का बचपन का रोल किया। उसमें शायद एक-दो शॉटस हैं। जो जीता वही सिकंदर में थोड़ा बड़ा रोल है। फिर से आमिर मामू का बचपन। उसके लिए मैंने शायद पांच-छह दिनों की शूटिंग की थी। बचपन से मैं सेट पर जाता रहा हूं, लेकिन मैंने हमेशा उसे ऐसे देखा कि ये काम है। ये नहीं कि ये कुछ ग्लैमरस है या यहां स्टार हैं। मुझे बस ये नजर आया कि ये काम है। लोग सबेरे उठते हैं, नहा कर काम पर जाते हैं, वो शॉट डायरेक्ट करते हैं, कोई एक्टिंग कर रहा है, कोई कैमरा चला रहा है। कोई अपना शॉट देख रहा है, काम कर के शाम को वापस घर लौट आते हैं। हम भी ऐसे ही काम करते हैं।
इस फिल्म के बारे में और कुछ बताएं। एक्टर बनने की क्या चुनौतियां हैं। उनके लिए किस तरह की तैयारी करनी पड़ी?
हमने काफी तैयारी की है। अब्बास हमेशा चाहते थे कि कैरेक्टर बहुत नैचुरल लगे और हर कैरेक्टर के बीच की रिलेशनशिप असली लगे। फिल्म देखते समय लोग ऐसा न लगे कि हीरो के दोस्त और हीरोइन की सहेलियां हैं। लोगों को लगना चाहिए कि ये छह-सात लड़के-लड़कियां हैं। ये दोस्त हैं। हमने वर्कशॉप किए। हम लोग सात-आठ दिनों के लिए पंचगनी गए थे। हमने स्क्रिप्ट रीडिंग की। हमने डांस प्रैक्टिस किया। एक्टिंग केलिए भी वर्कशॉप किया अब्बास के साथ। अब्बास ने जोर दिया कि हम खुद कुछ सोचें कैरेक्टर के बारे में। हम खुद कैरेक्टर को डेवलप करें। वो कहते थे कि सीन कैसे करेंगे आप? आप बैठे रहेंगे, खड़े रहेंगे, आप क्या करेंगे। आप सोचो। उन्होंने हमें कभी डायरेक्शन नहीं दिया। बहुत आजादी दी कि आपको जैसे करना है, आपको जो सही लगे, आप वैसे करें और आपको जो नेचुरल लगे। उन्होंने कहा कि मुझे एक्टिंग-एक्टिंग बिल्कुल नहीं दिखनी है। एकदम रियलिस्टिक होना चाहिए। हमारी सोच है कि हिंदी फिल्मों के हीरो को हीरो होना चाहिए। ये जो कैरेक्टर है, ये हीरो हीरो नहीं लग रहा है। इतना सीधा-सादा नार्मल सा लड़का है। मेरा सोच थी कि मुझे अच्छे कपड़े पहनने चाहिए, मेरा अच्छा हेयर स्टाइल होना चाहिए। अब्बास उन सभी बातों के लिए मना कर रहे थे। शुरूआत में मुझे थोड़ा अजीब लगा कि शायद डायरेक्टर पागल हो गया है।
लेकिन इमरान और फिल्म के किरदार जय सिंह राठौड़ में फर्क तो रहा होगा?
जय सिंह राठौड़ का कैरेक्टर बिल्कुल मेरे जैसा है। मुझे लगा कि अब्बास ने मुझे देखकर ये कैरेक्टर बनाया है। जय के कुछ प्रिंसिपल है, वह गांधीवादी है। वह बहुत शांत है। अहिंसा में यकीन करता है। कम बात करता है, ज्यादा सोचता है और मैं भी ऐसे ही हूं।
लेकिन पर्दे पर उसे उतारने में दिक्कत तो हुई होगी?
नहीं, कोई दिक्कत नहीं हुई। क्योंकि वर्कशॉप के वजह से बहुत फायदा हुआ। दूसरा ये है कि उसकी पर्सनैलिटी से मेरी पर्सनैलिटी मिलती है। मैं उसे बहुत आसानी से समझ सकता था।
अच्छी बात है कि आपकी तरफ से कोई घबराहट जैसी चीज दिख नहीं रही है। फिर भी आप से उम्मीदें हैं और उन उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए आप कितने चिंतित हैं? दबाव तो महसूस कर रहे होंगे।
मैं ज्यादा सोचता नहीं हूं उसके बारे में। मुझे लगता है कि अगर आप इसके बारे में सोचेंगे तो आप इतना घबरा जाएंगे, इतना डर जाएंगे कि कुछ कर नहीं पाएंगे। मैं यह सोचता हूं कि मेरे सामने क्या काम है? आज मुझे क्या करना है? आज मुझे सेट पर जाकर तीन सीन पूरे करने हैं तो मेरी चिंता यह होगी कि मैं कितने अच्छे तरीकेसे उसे कर लूं। ईमानदारी से अपना काम करूं। अगर मेरा काम अच्छा नहीं लगे तो उसमें मैं कुछ कर नहीं सकता हूं। अगर मैं ये बैठकर सोचूं कि लोगों की ये उम्मीदें हैं तो मैं डर के मारे कुछ नहीं कर पाऊंगा।
कभी ऐसा हुआ कि अचानक रात में या कभी परेशान होकर आपने कहा कि मामू आप मुझे बताइए कि मुझे क्या करना चाहिए या अब्बास बताओ कि मुझे क्या करना है?
मैं मामू से काफी बार पूछ चुका हूं कि कभी-कभी मुझे लगा कि यह ठीक से नहीं जा रहा है। कुछ प्रोब्लम्स हैं। मुझ में यह कमी है। मैं यह ठीकसे नहीं कर पा रहा हूं या फिल्म में यह प्रोब्लम है। आमिर मामू ने मुझे समझाया ़ ़ ़ मेरा एक्सपीरियेंश कम हैं। जो वे देख सकते हैं, वो मैं नहीं देख सकता हूं। जब मुझे लग रहा है कि यह प्रोब्लम है। आमिर मामू कहते थे कि आप पूरी फिल्म को देखो। मैं एक छोटे से प्रोब्लम को लेकर फंस गया था कि इस सीन में मेरा कॉस्टयूम खराब है। आमिर मामू ने कहा कि पूरी फिल्म को देखो। फिल्म यहां शुरू होती है और आप अंत में अगर ऐसा कॉस्टयूम पहन रहे हैं या कोई दूसरा कास्टयूम पहन रहे है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर लोगों को फिल्म यहां तक पसंद आएगी, तो एक कमीज की वजह से लोग नाराज नहीं हो जाएंगे। उनको यह नहीं लगेगा कि फिल्म बकवास है। अगर लोगों को फिल्म यहां तक पसंद नहीं आई तो आपके शर्ट को देख कर इम्प्रेस नहीं हो जाएंगे। अगर उनको इम्प्रेस होना है, तो वो पूरी फिल्म से इम्प्रेस हो जाएंगे। ये उनका एक्सपीरियेंश है।
और क्या टिप्स दिए हैं आमिर ने आपको।
टिप्स काफी कम दिए हैं उन्होंने।
वो परफेक्शनिस्ट हैं तो कुछ न कुछ असर डाला होगा उन्होंने। देखो भाई काम जो होना चाहिए, वह बेहतर होना चाहिए। कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। दबाव बन जाता है। सही स्थिति क्या है?
सही सिचुएशन यह है कि उन्होंने बहुत सोच-समझ कर पिक्चर बनाई है। उन्होंने अब्बास से बहुत सवाल किए कि आप फिल्म कैसे बनाएंगे, क्या करना है? उन्होंने मुझ से भी अनेक सवाल किए। मुझे उनके लिए दुबारा ऑडिशन देना पड़ा। पहले मैंने ऑडिशन दिया था और अब्बास ने मुझे चुन लिया था। आमिर मामू को चेक करना था कि वाकई मैं काम कर पाऊंगा या नहीं। ये नहीं कि उन्होंने मुझे बस ऐसे ले लिया। उन्होंने काफी जोर दिया कि.... जब मैं काम कर रहा हूं तो मुझे अपने काम पर पूरा ध्यान देना है। दस-पंद्रह दिनों की शूटिंग के बाद मैं अब्बास केसाथ बदतमीजी कर रहा था। हम बहुत सारे यंग एक्टर थे। सब 20-21 साल के थे तो हम थोड़ी मस्ती कर रहे थे। एक दिन आमिर मामू ने मुझे पकड़ कर कहा कि, देखो इमरान जब तुम काम कर हो तो आपको सिर्फ काम का सोचना है। आपको अपने डायरेक्टर को पूरा सपोर्ट देना है। क्योंकि वह अपनी फिल्म बनाने की कोशिश कर रहा है। और बहुत बार होता है फिल्म इंडस्ट्री में कि डायरेक्टर को कोई सपोर्ट नहीं देता। स्टार उनको डेट नहीं देते हैं। प्रोडयूसर उनको कह रहा है कि पैसे कम खर्च करो, विदेश मत जाओ, यहीं शूट करो। आप सपोर्ट नहीं करेंगे तो उसे जिस तरीके से फिल्म बनानी चाहिए,वह फिल्म नहीं बना पाएगा। आपको हमेशा वहां रहना चाहिए। उनको कभी मत कहो कि छह बज गए मुझे घर जाना है। मुझे भूख लगी है, मुझे ये है, मुझे वो है ़ ़ ़ भूख तो उसे भी लगी है न? लेकिन वह फिल्म बना रहा है। आप भी फिल्म बनाने आए हैं। आपको सपोर्ट देना है। यह मत कहो कि कल रात को मैं सोया नहीं। डायरेक्टर भी नहीं सोया होगा। वह सेट पर शायद आप से पहले आया होगा। और आपके पैकअप के बाद भी वह यहां रहेंगा और कल के शूट प्लानिंग करेगा। उसके बाद मेरी समझ में आया कि आमिर मामू काम कैसे करते हैं और वे इस वजह और इस पोजिशन पर आज ऐसे ही नहीं पहुंचेहैं।
अब्बास की तरफ से क्या सावधानियां या टिप्स आपको दी गई?
अब्बास नए डायरेक्टर हैं। उन्होंने मुझे कोई टिप्स नहीं दिया। हमने जो कुछ भी काम किया, सब मिलकर किया। अब्बास और मैं आज भाई जैसे बन चुके हैं। हम दोनों ने इतनी तैयारी की है, कास्टिंग, लोकेशन, कास्टयूम .... जो कुछ भी है, मैंने अब्बास का साथ दिया। जो कुछ भी हम कर रहे थे, हमदोनों ने बैठकर, मिलकर सोचा। इसको कैसे करें? क्या करें? इस कैरेक्टर .... सिर्फ मेरा कैरेक्टर नहीं, बाकी कैरेक्टर उनकी कास्टिंग, कॉस्टयूम .... जो कुछ भी है। मैंने उनका बहुत साथ दिया।
मंसूर खान का क्या रोल था?
मंसूर मामू का प्रोडयूसर का रोल था। वे रोज सेट पर आते थे और उनको ये देखना था कि फिल्म सही तरीके से बन रही है या नहीं? पैसे सही तरीके से खर्च हो रहे हैं या नहीं? हमारे बजट, लोकेशन और क्रिएटिव इनपुट का ध्यान रखना था। अब्बास को देखना था कि वे अपना काम कैसे कर रहे हैं? मैं कैसे परफोर्म कर रहा हूं। वे एक ब्रिज थे। प्रोडयूसर और डायरेक्टर के बीच। आमिर मामू प्रोडयूसर थे और अब्बास डायरेक्र... उन दोनों के बीच मंसूर मामू खड़े थे। अब्बास को कहते थे कि अब्बास पैसा च्यादा खर्च हो रहा है, आपको दो दिन में कम्पिलीट करना है, तीन दिन में नहीं। लेकिन अगर उनको लगता कि हमें वाकई तीन दिन चाहिए और अगर हम दो दिन में करेंगे तो सही नहीं जाएगा तो आमिर मामू को समझाते थे। अब्बास नीड मोर टाइम, आप उनको सपोर्ट करें।
कह सकते हैं कि मंसूर की फिल्में सफल रही हैं। काफी अनुभवी हैं वे। उस हिसाब से हो सकता है कुछ सीन भी बताते हों वे कि इस ढंग से करो या इसको ऐसा भी किया जा सकता है।
नहीं, बिल्कुल नहीं। क्योंकि अब्बास का काम करने का जो तरीका है वो मंसूर मामू से काफी मिलता है। उनकी स्टोरी टेलिंग की स्टाइल लगभग एक जैसी है। कहानी अब्बास ने लिखी है। स्क्रीनप्ले और डायलॉग सब उन्होंने लिखे हैं। वे जानते हैं कि उनको क्या पोट्रे करना है। कभी-कभी अगर कोई दिक्कत थी तो मंसूर मामू उन्हें सलाह देते थे कि मैं जानता हूं अब्बास तुम ये करना चाह रहे हो, लेकिन ठीक से नहीं हो रहा है। तो ऐसे करो या वैसे करो। थोड़ा-बहुत टेक्नीकल नॉलेज भी था .. एडवाइज दे रहे थे अब्बास को ़ ़ ़ किस लेंस से किया जाए वाइड शॉट लें या क्लोज जाएं। जैसे कभी बता दिया कि इस शॉट पर अब्बास अगर क्लोजअप लेंगे तो उसका इमोशनल इम्पेक्ट ज्यादा आएगा।
अब इमरान तुम्हें क्या लगता है, हिंदी फिल्मों का एक्टर बनना कितना आसान है?
बहुत मुश्किल है। क्योंकि मेरी हिंदी बहुत-बहुत कमजोर थी और आज भी काफी कमजोर है। मैं बंबई में बड़ा नहीं हुआ हूं। मैं साउथ इंडिया में बड़ा हुआ और फिर अमेरिका चला गया। जब मैंने शुरू किया था तो मैं हिंदी बिल्कुल नहीं बोलता था। मुझे एक-दो लफ्ज आते थे बस । मैंने डिक्शन पर बहुत काम किया। ये काफी मुश्किल था। मैं उतना अच्छा डांस भी नहीं करता हूं। मुझे डांस करना पसंद नहीं है। मैंने उस पर भी बहुत काम किया।
शर्मीले स्वभाव के हैं आप।
हां, मैं बहुत शर्मीले स्वभाव का हूं। आज के हीरो बहुत अच्छे डांसर हैं। वे इतने शर्मीले नहीं हैं। उनको डांस करने का बहुत शौक है। जैसे आप रितिक रोशन को देखें या शाहिद कपूर कैसे नाचते हैं। उनको डांस का बहुत शौक है। मुझे इतना शौक नहीं है। मैं उनकी तरह डांस तो नहीं कर सकता हूं.... तो मैंने बहुत काम किया डांस पर। एक्शन भी बहुत सीखना पड़ा। काफी मुश्किल रहा है। लेकिन मजा भी बहुत आता है मुझे। क्योंकि बाद में जब आप कम्पिलीट प्रोडक्ट को देखते हैं, तो लगता है कि इतना कुछ किया है। इतना कुछ काम किया है और अब पिक्चर ठीक-ठाक लग रही है। मैं ये नहीं कह सकता हूं कि पिक्चर बहुत अच्छी लग रही है। क्योंकि मुझे सिर्फकमजोरियां नजर आती हैं पिक्चर की।
क्या ऐसा लगता है कि आप इस फैमिली से न होते तो फिल्मों में आना और ज्यादा मुश्किल होता?
मुश्किल तो होता। मुझे यह भी नहीं मालूम कि अगर मैं इस फैमिली से नहीं होता तो क्या मुझे फिल्मों का इतना शौक होता? क्योंकि बचपन से मैंने सिर्फ फिल्में देखी हैं। ये देखा कि लोग शूटिंग कैसे करते हैं, एडीटिंग कैसे करते हैं। मुझे बचपन से शौक है।
हिंदी फिल्मों की क्या चीज आकर्षित करती है। चूंकि आप फिल्मों की पढ़ाई भी कर चुके हैं और फिल्म भी कर चुके हैं। हिंदी फिल्मों के साथ क्या खास बातें हैं जो आपको आकर्षित करती है। हिंदी फिल्में आपके लिए क्या है?
मुझे हिंदी फिल्मों का इमोशन बहुत अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि जो इंग्लिश फिल्में हैं या फ्रेंच या जर्मन जो भी हैं। उनमें इतना इमोशन नहीं है, जितना हमारी फिल्मों में है। एक तो हम जो गाने डालते हैं फिल्मों में, हर गाने का एक रीजन है। हम गाने को यहां क्यों डाल रहे हैं। जब हीरो को हीरोइन से प्यार हो जाता है, वो एक गाना गाता है। अपनी दिल का हाल बताने के लिए गीत गाता। अगर दोनों रूठ गए हैं तो एक उदास गीत होगा। इस तरह हमारी फिल्मों में इमोशन आते हैं। अगर आप कोई कोई इंग्लिश फिल्म देखें तो आपको शायद इतना रोना नहीं आएगा। वो कॉमेडी फिल्में अच्छी बना लेते हैं, लेकिन इमोशन है, जो ड्रामा है, जो रोना-धोना है। वो मुझे लगता है कि हम सबसे अच्छा करते हैं।
अब किस तरह से खुद को देख रहे हैं। किस तरह की फिल्में.... क्योंकि चार तारीख को हरमन भी आ रहे हैं।
ऐसे तो मैं हरमन को जानता नहीं हूं। पर्सनली नहीं जानता हूं। लेकिन मैंने पहले ही कहा कि मैं सोचता नहीं हूं कि और लोग क्या कर रहे हैं?
उनकी फिल्म काफी बड़ी फिल्म है। साइंस फिक्सन फिल्म है। अगर मैं ज्यादा सोचूं तो मैं ज्यादा उस पर ध्यान दूंगा, मेरा फोकस उधर चला जाएगा। मुझे अपनी फिल्म पर ध्यान देना है कि हमाके पो्रमोशन कैसे चल रहे हैं। लोगों को हमारा म्युजिक पसंद आ रहा है या नहीं, हमारा ट्रेलर पसंद आ रहा है या नहीं? मेरा फिल्म देखने का इरादा तो है, क्योंकि मुझे साइंस फिक्शन पसंद है। लेकिन मैं ये भी मानता हूं और ये मैं आमिर मामू से सीखा है, वो हमेशा कहते हैं कि अगर फिल्म अच्छी है तो आप उसे मार नहीं सकते हैं और अगर फिल्म खराब है तो आप उसे बचा नहीं सकते।
हरमन के लिए क्या मैसेज देंगे आप?
आपको मालूम है? मेरी एक फ्रेंड है, वो हरमन के साथ एक दूसरी फिल्म में काम कर चुकी है। वो असिस्टेंट थी। पता नहीं कहीं शूटिंग कर रहे थे, कुछ लोग मेरी फ्रेंड के साथ बदतमीजी कर रहे थे। उसने बताया कि उस सेट पर एक ही जेंटलमेन था, वो था हरमन। उसने आकर मेरे दोस्त को बचाया। जो लोग बदतमीजी कर थे,उनसे कहा कि यहां से निकल जाओ। मैं हरमन को थैक्यू कहना चाहूंगा कि उसने मेरे फ्रेंड का साथ दिया।
वैसे हरमन की कामयाबी के लिए आप क्या कहेंगे? कोई घबराहट है क्या?
घबराहट तो नहीं है। मुझे ये भी लगता है कि हमारी इंडस्ट्री में नए टैलेंट का आना बहुत जरूरी है। नए एक्टर का, नए रायटर का, नए डायरेक्टर का। जो यंग और टैलेंटिड हो, हमें उसका सपोर्ट करना चाहिए। जितने नए एक्टर, डायरेक्टर और रायटर आएंगे, इस इंडस्ट्री का उतना ही भला होगा। मैं हरमन की कामयाबी चाहूंगा।
वो दिख रहा है कि पहली फिल्म के आने के पहले ही आप लोगों को फिल्में मिल गई हैं। दूसरी फिल्म पूरी हो चुकी है।
हां, दूसरी फिल्म पूरी हो चुकी है और तीसरी फिल्म की शूटिंग कर रहा हूं।
उसके बाद भी लगातार ऑफर आ रहे है। उस हिसाब आप समझ सकते हैं कि कितनी कमी है। इसक ा कितना फायदा उठा पा रहे हैं या किस तरह की फिल्में आप चुन रहे हैं?
किडनैप थ्रिलर है। ज्यादा कुछ कह नहीं सकता हूं उसके बारे में, क्योंकि उनके प्रोमोशन शुरू नहीं हुए। उसमें काफी सस्पेंस और ड्रामा है।
उसमें आप अकेले हैं?
नहीं, संजय दत्त हैं।
हीरोइन कौन है आपकी?
हीरोइन है मिनीषा लांबा।
दूसरी लक क्या है?
लक में अभी-अभी हीरोइन कास्ट हुई है। उसका नाम श्रुति हसन है। कमल हसन की बेटी। यह अष्टविनायक की फिल्म है। उसमें डैनी डेंजोगप्पा हैं, मिथुन चक्रवर्ती हैं और रवि किशन हैं।
कौन डायरेक्टर हैं?
सोहम।
अगले पांच सालों में इमरान खुद को कहां देख रहे हैं?
उसके बारे में सोचा नहीं है मैंने। जब कोई भी स्क्रिप्ट आती है मेरे पास। जब कोई भी प्रोजेक्ट आए, मैं हमेशा दर्शक की तरह सोचता हूं। मैं कहानी सुनता हूं और बैठकर सोचता हूं कि अगर मैंने टिकट खरीद कर यह फिल्म देखी तो मुझे पसंद आएगी या नहीं? यह नहीं सोचता हूं कॉमेडी फिल्म है या कुछ और? मैं बस सोचता हूं कि अगर मैंने टिकट खरीद कर यह पिक्चर देखी तो मेरा पैसा वसूल होगा या नहीं? अगर मुझे पसंद आया तो मैं कर लेता हूं। अगर मुझे पसंद नहीं आया तो मैं नहीं करता हूं। ज्यादा इंटेलेक्चुअल बन के कुछ फायदा नहीं है।
डायरेक्शन और रायटिंग क्या बैक बर्नर पर चला गया है?
डायरेक्शन तो फिलहाल बैक बर्नर पर चला गया है। थोड़ी-बहुत रायटिंग करता हूं, लेकिन अभी तक कुछ इतना पसंद नहीं आया है मुझे।
रायटिंग किस तरह की सिर्फ फिल्मों की रायटिंग करते हैं या क्रिएटिव रायटिंग भी करते हैं?
हां, फिल्मों की रायटिंग कर रहा हूं।
पोयम, शायरी या इस तरह के....
नहीं, मुझमें वह टैलेंट नहीं है।
प्रेम-मोहब्बत तो आपके उम्र में जरूरी है, उस फ्रंट पर क्या सोचते हैं?
मेरी गर्लफ्रेंड है। उसका नाम अवंतिका है, हम पिछले छह साल से साथ हैं। अभी आगे का कुछ सोचा नहीं है।
वह क्या करती हैं?
वह भी फिल्मों में काम करती हैं। वो प्रोडक्शन में काम करती हैं एक प्रोडक्शन कंपनी में। प्रोडयूसर हैं।

Comments

Sajeev said…
बढ़िया साक्षात्कार ....

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम