दम मारने की फुर्सत नहीं-अभिषेक बच्चन

-अजय ब्रह्मात्मज

अभिषेक बच्चन की फिल्म गेम रिलीज हो चुकी है और बमुश्किल दो सप्ताह के भीतर दम मारो दम दर्शकों के बीच होगी। किसी भी अभिनेता की फिल्मों के लिए यह मुश्किल स्थिति होती है, क्योंकि माना जाता है कि दो फिल्मों की रिलीज के बीच सुरक्षित अंतर रहना चाहिए। यह भी एक संयोग है कि उनकी पहली फिल्म गेम व‌र्ल्ड कप के फाइनल के एक दिन पहले रिलीज हुई और दूसरी दम मारो दम आईपीएल के मध्य रिलीज हो रही है।

दर्शकों और ट्रेड पंडितों के बीच ऐसे संयोगों को लेकर भले ही चर्चा चल रही है, लेकिन अभिषेक बच्चन इनसे बेफिक्र हैं। वे स्पष्ट करते हैं, ''मैंने गेम के निर्माता रितेश से कहा था कि ऐसे वक्त फिल्म रिलीज न करें, लेकिन उन्होंने अपनी मजबूरी बताई। दूसरी फिल्म दम मारो दम 22 अप्रैल को रिलीज हो रही है। फिल्मों की रिलीज पर हमारा वश नहीं होता। फिल्म की डबिंग के बाद हमारा डिसीजन कोई मानी नहीं रखता।''

गेम के प्रति दर्शकों की प्रतिक्रिया को स्वीकार करते हुए अभिषेक बच्चन कहते हैं, ''सभी फिल्मों में हमारी मेहनत एक जैसी होती है। कुछ फिल्में दर्शकों को पसंद नहीं आतीं।'' वे बात बदल कर रोहन सिप्पी की फिल्म दम मारो दम की चर्चा शुरू कर देते हैं, ''रोहन ने नए अंदाज में फिल्म बनाई है। दम मारो दम एक्शन थ्रिलर है। मैं इसमें एसीपी विष्णु कामत की भूमिका निभा रहा हूं। गोवा के चीफ मिनिस्टर एसीपी कामत को बुलाकर एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हैं। उनका निर्देश है कि दो हफ्तों के अंदर गोवा की गंद साफ हो जानी चाहिए। इसके लिए उन्होंने हर तरह की छूट दी है, लेकिन इसके साथ ही शर्त रखी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे ही मेरे सस्पेंशन लेटर पर साइन करेंगे। अब एसीपी कामत को दो हफ्तों के अंदर इस मिशन को अंजाम देना है।''

अपनी अगली व्यस्तताओं के बारे में अभिषेक खुलासा करते हैं, ''अभी अब्बास मस्तान की फिल्म प्लेयर्स की शूटिंग चल रही है। उसके तुरंत बाद मैं रोहित शेट्टी की फिल्म बोल बचन शुरू करूंगा। इसमें अजय देवगन के साथ काम करने का मौका मिल रहा है। मैं आपके माध्यम से बताना चाहता हूं कि फिल्म का नाम 'बोल बच्चन' नहीं, 'बोल बचन' है। लोगों ने मेरे सरनेम को पता नहीं कैसे फिल्म में डाल दिया। वास्तव में बोल बचन मुंबई में प्रचलित एक मुहावरा है।''

अभिषेक के पास इतनी फिल्में हैं कि वे 2011 में पूरी तरह से व्यस्त रहेंगे। आम तौर पर माना जाता है कि अगर किसी स्टार की दो-तीन फिल्में फ्लाप हो तो नयी फिल्में मिलने में दिक्कत होने लगती है। इस लिहाज से अभिषेक अपवाद या खुशकिस्मत माने जा सकते हैं। इसका राज पूछने पर शरारती मुस्कान के साथ अभिषेक बताते हैं, ''मुझ पर फिल्म इंडस्ट्री का विश्वास बना हुआ है। वे मेरे टैलेंट के बारे में जानते हैं। बीच में फिल्में नहीं चलती हैं तो आप पत्रकार अपनी तरह से उसकी व्याख्या करते हुए मेरे फिल्मी कॅरियर का अंत बता देते हैं। सच तो यह है कि मुझे लगातार फिल्में मिल रही हैं। अलग-अलग जोनर की फिल्में करने का मौका मिल रहा है। मेरे पास दोस्ताना-2 और धूम-3 के अलावा राजकुमार संतोषी की लेडिज एंड जेंटलमैन भी है।''

दोस्ताना-2 की शूटिंग में हो रही देरी के लिए वे तरुण मनसुखानी को जिम्मेदार ठहराते हैं, ''मालूम नहीं तरुण कौन सी स्क्रिप्ट लिख रहे हैं। उनसे जब भी पूछो कि कब शुरू कर रहे हो तो एक ही जवाब मिलता है कि स्क्रिप्ट पूरी कर रहा हूं। हमें उनकी परफेक्ट स्क्रिप्ट का इंतजार है। यह अच्छी बात है कि शूटिंग के पहले स्क्रिप्ट से संतुष्ट हो लें। उनके सामने पहली दोस्ताना की चुनौती है।''

अभिषेक बताते हैं कि वे बड़े ही अधीर किस्म के अभिनेता हैं। आजकल के बड़े स्टारों की तरह वे साल में एक फिल्म कर के संतुष्ट नहीं रहना चाहते। उनके ही शब्दों मे, ''मैं अभी कॅरियर में उस मुकाम पर नहीं आया हूं कि साल में एक-दो फिल्म करके संतुष्ट हो लूं। मेरे पास पहले से फिल्में हैं। इसके बावजूद कोई अच्छी स्क्रिप्ट आती है तो मैं न नहीं कह पाता। अभी मेरी उम्र भी ऐसी है कि मैं लगातार काम करता रहूं। हो सकता है भविष्य में मैं भी आमिर खान की तरह साल-दो साल में एक फिल्म करूं।''

दूसरे अभिनेताओं की तरह अभिषेक बच्चन की अभी तक कोई खास छवि नहीं बनी है। वे स्वयं किसी एक इमेज में बंध कर नहीं रहना चाहते। यही वजह है कि वे हर तरह की फिल्में कर रहे हैं। अपनी फिल्मों के उदाहरण से वे बताते हैं, ''आपने मेरी पीरियड फिल्में देखी। इस महीने दो थ्रिलर फिल्में आयी हैं। उसके बाद कामेडी कर रहा हूं। मुझे लगता है कि आज के दर्शक अपने प्रिय स्टारों को किसी एक इमेज में देखना भी नहीं चाहते हैं। वे हम सभी से वैरायटी चाहते हैं। वे हमारी प्रतिभा के अनदेखे पहलुओं से परिचित होना चाहते हैं।''

दर्शकों की बदलती रुचि की बातें करते हुए अभिषेक मानते हैं कि भारतीय दर्शक आज भी इमोशनल ड्रामा देखना पसंद करते हैं। पिछले दिनों कामयाब हुई फिल्मों के नाम लेकर वे अपनी बात पर जोर देते हैं। अपने पिता अमिताभ बच्चन की तरह ही उनका तर्क होता है, ''भारतीय दर्शकों को मनोरंजन की पूरी थाली मिलनी चाहिए, जिसमें हर तरह के व्यंजन हो। स्वाद बदलने के लिए वे बीच विदेशी व्यंजन भी टेस्ट कर लेते हैं, लेकिन उन्हें पूरी संतुष्टि थाली में ही मिलती है!''

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भई अभिषेक अब तुम्हें चरित्रप्रधान फ़िल्मों पर ध्यान देना चाहिये

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