फिल्‍म समीक्षा : शोर

मुंबई की सेंट्रल लाइन के सपने शोरमुंबई की सेंट्रल लाइन के सपने

-अजय ब्रह्मात्‍मज

राज निदिमोरू और कृष्णा डीके की शोर छोटे स्केल पर बनी सारगर्भित फिल्म है। बाद में एकता कपूर के जुड़ जाने से फिल्म थोड़ी बड़ी दिखने लगी है। अगर इस फिल्म को एक बड़े निर्माता की फिल्म के तौर पर देखेंगे तो निराशा होगी। राज और कृष्णा की कोशिश के तौर पर इसका आनंद उठा सकते हैं।

*हर फिल्म का अपना मिजाज और स्वरूप होता है। अगर दर्शकों के बीच पहुंचने तक वह आरंभिक सोच और योजना के मुताबिक पहुंचे तो दर्शक भी उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं। इधर एक नया ट्रेंड चल रहा है कि फिल्म बनती किसी और नजरिए से है और उसकी मार्केटिंग का रवैया कुछ और होता है। शोर ऐसे ही दो इरादों के बीच फंसी फिल्म है।

*शोर में तीन कहानियां हैं। एक कहानी में विदेश से आया एक उद्यमी मुंबई में आकर कुछ करना चाहता है। दूसरी कहानी में मुंबई की सेंट्रल लाइन के उपनगर के तीन उठाईगीर हैं, जो कुछ कर गुजरने की लालसा में रिस्क लेते हैं। तीसरी कहानी एक युवा क्रिकेटर की है। तीनों कहानियों के किरदारों का साबका अपराध जगत से होता है। अपराधियों के संसर्ग में आने से उनकी सोच में तब्दीली आती है। परिस्थितियां उन्हें बदल देती हैं।

*हिंदी के आम दर्शकों के लिए विदेश से आए उद्यमी (सेंधिल राममूर्ति) की कहानी अबूझ होगी, क्योंकि वह किरदार मुख्य रूप से अमेरिकी लहजे में अंग्रेजी बोलता है। घटनाओं और प्रसंगों से कहानी का पता चल जाता है, लेकिन संवादों को समझने की कठिनाई रहेगी। दूसरी में तीन दोस्तों की कहानी रोचक है। यही केंद्रीय कहानी है। लेखक-निर्देशक ने इस कहानी पर अधिक मेहनत की है। क्रिकेटर की कहानी छिटकती हुई चलती है।

*तुषार कपूर अपनी छवि से अलग भूमिका में जंचते हैं। उन्हें सरल और सामान्य किरदारों के चुनाव पर ध्यान देना चाहिए। निखिल द्विवेदी फिर से साबित करते हैं कि उन्हें स्पेस और कैरेक्टर मिले तो वे अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल कर सकते हैं। पितोबास हाइपर है। इन दिनों हाइपर अभिनय को बेहतर एक्टिंग मान लेने का फैशन है। दरअसल, ऐसे एक्टर फिल्म में अलग नजर आते हैं। क्रिकेटर की भूमिका निभा रहे एक्टर ने सहज अभिनय किया है। उसकी प्रेमिका बनी अदाकारा ने भी सुंदर काम किया है।

*शोर का शोर अधिक है। मशहूर फिल्म निर्देशकऔर चंद समीक्षक फिल्म की रिलीज के पहले से इसे बेहतर फिल्म बता रहे हैं। फिल्म के प्रचार का यह तरीका शहरी दर्शकों को सीमित स्तर पर प्रभावित करता है। आम दर्शक सही निर्णायक हैं। वे फिल्में सूंघ लेते हैं।

रेटिंग- **1/2 ढाई स्टार


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