बांग्लादेश में हिंदी फिल्में

-अजय ब्रह्मात्‍मज

पिछले दिनों आई एक खबर को भारतीय मीडिया ने अधिक तूल नहीं दिया। चूंकि खबर बांग्लादेश से आई थी और बांग्लादेश भारतीय मीडिया के लिए बिकाऊ नहीं है, इसलिए इस खबर पर गौर नहीं किया गया। खबर भारतीय फिल्मों से संबंधित थी। 45 सालों के बाद बांग्लादेश में भारतीय फिल्मों पर लगी पाबंदी हटी है। वहां की एक संस्था ने 12 भारतीय फिल्में इंपोर्ट की है, जिनमें से 3 बांग्ला और 9 हिंदी फिल्में हैं। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी यह बड़ी खबर नहीं बन सकती थी, क्योंकि पश्चिमी देशों से हो रहे करोड़ों डॉलर के व्यापार के सामने बांग्लादेश में 12 फिल्मों के व्यवसाय का आंकड़ा कहां टिकता है।

चलिए थोड़ा पीछे लौटते हैं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर पाबंदी लगा दी गई थी। आक्रोश और विद्वेष में लिए गए इस फैसले की वास्तविकता हम समझ सकते हैं। दो साल पहले की पाकिस्तान यात्रा में वहां की फिल्म इंडस्ट्री के नुमाइंदों और फिल्म पत्रकारों से हुई बातचीत से मुझे यह स्पष्ट संकेत मिला था कि भारतीय फिल्मों खासकर हिंदी फिल्मों पर लगी पाबंदी का पाकिस्तान में प्रतिकूल असर पड़ा। वहां की फिल्म इंडस्ट्री कंपीटिशन के अभाव में धीरे-धीरे मर गई। हालांकि हिंदी फिल्में पाकिस्तान में देखी जाती रहीं, लेकिन वह वीडियो तक ही सीमित रहा। हिंदी फिल्मों का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं हो सकता था। उन्हें थिएटर में नहीं रिलीज किया जा सकता था। दशकों के बाद यह पाबंदी हटी भी तो अनेक प्रकार की शर्ते लाद दी गई। सुना है कि अब हिंदी फिल्में उसी दिन वहां भी रिलीज हो जाती हैं। डबल धमाल ने पिछले महीनों में वहां अच्छा बिजनेस किया है। अब ईद पर रिलीज हो रही बॉडीगार्ड का इंतजार है।

बांग्लादेश का प्रसंग थोड़ा अलग रहा। 1965 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता की भावना ने जोर मारा। भारत की मदद से देश आजाद हुआ, लेकिन 1972 में स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री के दबाव में भारत समेत दक्षिण एशिया को सभी देशों की फिल्मों के आयात पर नए देश बांग्लादेश में पाबंदी लगा दी गई। तर्क यह था कि बांग्लादेश की फिल्मों के विकास और बाजार के लिए यह जरूरी है। कालांतर में बांग्लादेश की फिल्म इंडस्ट्री का हाल भी लगभग पाकिस्तान जैसा ही हुआ। सिनेमाघरों के मालिकों के दबाव और अपील के बाद पिछले साल 26 जनवरी को यह पाबंदी हटी, लेकिन कुछ लोगों ने फिर से आपत्ति की।

लिहाजा फिर से जून में छह महीने के लिए पाबंदी लगा दी गई। अब एक अंतराल के बाद पाबंदी हटी है और 12 फिल्में आयात की गई हैं। इनमें बांग्ला भाषा में बनी जोर, बदला और संग्राम हैं। हिंदी फिल्मों की लिस्ट में शोले, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, दिल तो पागल है, कुछ कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम, धूम-2, डॉन (नई), वांटेड और 3 इडियट्स शामिल हैं। फिल्मों की लिस्ट से लग सकता है कि खास किस्म की फिल्में ही आयात की गई हैं। ये सभी हिंदी की मुख्यधारा की मसाला फिल्में हैं और इन फिल्मों ने देश-विदेश में अच्छा व्यवसाय किया है। निश्चय ही सिनेमाघरों के मालिक इन फिल्मों के व्यवसाय से प्रभावित होंगे।

कुछ भी हो। अपने-आप में यह शुभ खबर है। बांग्लादेश में भारतीय फिल्मों का बाजार बनेगा और बढ़ेगा। इन फिल्मों के प्रदर्शन और व्यवसाय से प्रेरित होकर स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री में भी सुगबुगाहट आएगी। मुमकिन है कि बांग्लादेश की फिल्म इंडस्ट्री देर-सबेर जागे और फिल्म निर्माण की दिशा में आगे बढ़े। वहां कुछ फिल्मकार पहले से ही इंटरनेशनल स्तर की फिल्में बना रहे हैं। अब फिल्मों के स्थानीय बाजार पर भी ध्यान दिया जाएगा।

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इस बेशकीमती जानकारी के लिये धन्यवाद

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