राष्ट्रीय एकता के पुरस्कार से सम्मानित हिंदी फिल्में

pinjar 4.jpg-अजय ब्रह्मात्मज

अभी न तो हम गुलाम हैं और न ही कोई आजादी की लड़ाई चल रही है। युद्ध और आक्रमण की स्थिति भी नहीं है। हालांकि पड़ोसी देशों से तनाव बना हुआ है और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से हम अछूते नहीं हैं। फिर भी आजादी के 64 सालों में देश ने काफी प्रगति की है। दुनिया के विकसित देशों में हमारी गिनती होने लगी है। इस माहौल में देश की संप्रभुता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम राष्ट्रीय एकता पर ध्यान दें। भारत सरकार की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समिति सन् 1966 से हर साल एक फिल्म को राष्ट्रीय एकता की सर्वोत्तम फिल्म का पुरस्कार देती है। अभी तक हिंदी में बनी पंद्रह फिल्मों को राष्ट्रीय एकता की सर्वोत्तम फिल्मों के रूप में चुना गया है। राष्ट्रीय एकता पुरस्कार आरंभ हुए को पहला पुरस्कार मनोज कुमार अभिनीत ‘शहीद’ को मिला।
1966 - शहीद
1967 - सुभाष चंद्र
1970 - सात हिंदुस्तानी
1974 - गरम हवा
1975 - परिणय
1984 - सूखा
1985 - आदमी और औरत
1988 - तमस
1994 - सरदार
1998 - बोर्डर
1999 - जख्म
2001 - पुकार
2004 - पिंजर
2005 - नेताजी सुभाष चंद्र बोस
2008 - धर्म
2010 - दिल्ली-6
अगर आपने ये फिल्में नहीं देखी हैं तो इन्हें जल्दी से जल्दी डीवीडी के जरिए देखने की कोशिश करें। इन सभी फिल्मों में राष्ट्रीय एकता का स्वर प्रमुख है। देश के समर्थ और संवेदनशील निर्देशकों ने विभिन्न सांप्रदायिक, सामुदायिक, प्रादेशिक, धार्मिक और अन्य सभी प्रकारों के विभेदों से ऊपर उठकर मनुष्यता और राष्ट्रप्रेम की बातें की हैं। सभी का लक्ष्य दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ उन्हें जागृत करने का भी रहा है। हम यहां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समिति द्वारा इन फिल्मों को दी गई प्रशस्ति प्रकाशित कर रहे हैं। ताकि इन फिल्मों के विशेषताओं को समझ कर आप इन्हें देखें और समझें।
शहीद, सुभाष चंद्र, सात हिंदुस्तानी, गरम हवा और परिणय के लिए अलग से प्रशस्ति नहीं लिखी गई है। संभव है 1975 के पहले फिल्मों के विवरण के साथ निर्माता-निर्देशक की जानकारी दे देना ही पर्याप्त होता हो।
1965-शहीद -निर्माता केवल पी कश्यप,निर्देशक एस राम शर्मा
1983 - सूखा -निर्देशक एम एस सथ्यू -मानवीय मूल्यों के चित्रण की ईमानदारी के लिए जो मनुष्य को जोड़ती है।

1984 - आदमी और औरत -निर्देशक तपन सिन्हा- विभिन्न संप्रदायों और समुदायों में मैत्री और प्रेम बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते समय सहज दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए।

1987 - तमस - निर्देशक गोविंद निहलानी-देश के विभाजन से पूर्व पंजाब के एक गांव में सांप्रदायिक विनाश के लिए जिम्मेदार दुखद घटनाओं को सच्चाई के साथ साहस पूर्वक चित्रित करने के लिए ।

1993 - सरदार -निर्देशक केतन मेहता - राष्ट्रवाद के उद्देश्यों को बताने के लिए अलग-अलग पड़ी सामग्री को संकलित कर के और उसे महाकाव्य की शैली में भारतीय राष्ट्रवाद की सुसंगत गाथा में ढाल कर संक्रमण काल में भारतीय इतिहास का परिदृश्य प्रस्तुत करने के लिए ।

1998 - जख्म - निर्देशक महेश भट्ट- समकालीन समय में व्याप्त सामाजिक धार्मिक संघर्ष, सांप्रदायिक तनाव, हिंसा और असौहार्द्र के निर्भीक चित्रण के लिए । फिल्म बहुत ही संवेदनशील ढंग से प्रेम और शांति का संदेश देती है।

2000 - पुकार -निर्देशक राजकुमार संतोषी- यह फिल्म आतंकवादियों की घुसपैठ और सेना की जवाबी कार्रवाई को लेकर है और इसमें दिखाया गया है कि सैन्य और असैनिक ताकतें किस प्रकार बाहरी दुश्मन का सामना करती है।

2003 - पिंजर - निर्देशक चंद्रपकाश द्विवेदी- ‘पिंजर’ की कहानी यह बताती है कि मानवीय संबंध एवं अनुभूतियां सामाजिक एवं धार्मिक विच्छेद को किस प्रकार पराजित करने में सक्षम हैं।

2004 - नेताजी सुभाष चंद्र बोस -निर्देशक श्याम बेनेगल- नेताजी आधुनिक भारत के अग्रणी व्यक्तित्व हैं। राष्ट्र के स्वतंत्रता के महान उद्देश्य के लिए वे एक आदर्शवादी से क्रांतिकारी बन गए। फिल्म इस काल का अत्यंत प्रभावी चित्रण करती है।

2007 - धर्म - निर्देशक भावना तलवार-यह संदेश सशक्त ढंग से उजागर करने के लिए मानवता का मूल्य धार्मिकता से अधिक है। एक रूढि़वादी और अंधविश्वासी पुजारी के जीवन में आए परिवत्र्तन को संदुरता के साथ चित्रित किया गया है।

2009 - दिल्ली-6 -निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा- कौमी बंटवारे के खिलाफ, नैतिक दृष्टिकोण तथा इसके निराकरण के मानवीय पहलुओं पर आधारित एक श्रेष्ठ फिल्म

Comments

Vinod Anupam said…
धन्यवाद,एक बार फिर इन फिल्मों की याद दिलाने के लिए
एक दिलचस्प पहलू अच्छा विषय

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