दो तस्‍वीरें : सनी लियोन


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भारतीय फिल्मकारों के पास समाज में विकृति पैदा करने वाले बमों के सिवा अब और बचा ही क्या है? यह बात दीगर है कि प्रगतिवादी और प्रयोगधर्मी होने में बुराई नहीं है, मगर प्रयोग और प्रगति के नाम पर नंगा नाच करना कहां तक तर्कसंगत है? क्या इन फिल्मकारों के दिमाग में समाज को विखंडित करने के सिवा और कोई दूसरी चीज नहीं दिखाई देती। यह बात सही है कि फिल्मकार दर्शकों के सामने जो परोसता है, ज्यादातर उसे देखते हैं। कुछ लोगों की मजबूरी है, तो कुछ का शौक, मगर लोगों की मजबूरी और शौक को नंगेपन में तब्दील करना कितना जायज? क्या इन लोगों के पास परिवार के साथ बैठकर देखने वाली फिल्म बनाने के मसाले की कमी हो गई है? अगर हां, तो फिर यह किसी नई कहानी पर काम क्यों नहीं करते? यदि नहीं, तो फिर यह पुरानी फिल्मों पर नये का पानी चढ़ाकर दर्शकों के सामने क्यों परोस रहे हैं? यह एक बहुत बड़ा सवाल है और इस सवाल का जवाब इन्हीं फिल्मकारों को देना होगा। आज अभिनेता, निदेशक से सेलिब्रेटी बने लोगों पर युवा वर्ग सोशल नेटवर्किंग साइट के सहारे टिप्पणी करता है, तो उन्हें बुरा लगता है। लेकिन इसमें बुराई ही क्या है? इस प्रकार का दुस्साहस करने की सीख किसने दी है? ये फिल्मकारों ने, देश-समाज के लोगों ने या फिर किसी और ने? महेश भट्ट ने जिस्म-2 में पोर्न स्टार के बदन की नुमाईश करवाकर फिल्म के माध्यम से देश-दुनिया में नंगेपन को बेच तो सकते हैं, लेकिन वह समाज की बेहतर धारा नहीं बहा सकते। उनके इस कृत्य से उनका घर बर्बाद हो या न हो, लेकिन कई घरों की संतानें जरूर बिगड़ रही हैं।
Unknown said…
ओशो ने एक बार कहा था और मेरा भी कुछ अनुभव येसा ही है.....मै जब भी किसी साधू से मिलता हू तो वो बस घुमाफिरा के एक ही बात करता
है(सम्भोग) और जब मै किसी से मिलता हू तो हैरान होता हू क्योकि वे बात करती है ईस्वर की...आत्मा की...परमात्मा की... वैश्या भी उसी समाज का हिस्सा है वैसे जैसे एक बड़े घर में कही कोने में
तालाबंद कोई कमरा जिसमे जाने आने का रास्ता कोई चोर खिडकी है......फिल्म में sunny leoan को क्यों लिया गया या फिल्म में किस विषय को उठाया गया है ये मुझे नही पता पर ये एक तरह से ठीक
है की कमरे का ताला खोला जाये कमरे का जुडाव घर से हो ताकि कुछ समय बाद आने वाली पीढियो के लिए ये सवाल ही ना बचे की उस कमरे में ताला क्यों लगा है...मतलब आखिरकार वैश्या का जन्म हुआ
कैसे ??? मैंने एक लेख कुछ दिनों पहले पढ़ा की सबसे पहली बार भारतीय सिनेमा में kiss scene तबू ने किया था तब उस फिल्म को अश्लील का दर्जा दिया गया था और आज क्या हालत है की ये एक
सामान्य सी बात बन गयी है हमारे सिनेमा और आम जगत के लिए.....समाज को आप जीतना छूट देंगे वो उतना ही सुन्दर और अच्छा बनेगा ना की खराब मै तो निर्माता और निर्देशक की हिम्मत की प्रसंसा
करूँगा की उन्होंने इतना साहसी कदम उठाया
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जब तक महेश भट्ट जैसे डिरेक्टर ऐसी प्रतिभाओं को मौका देने में लगे रहेंगे तब तक हिंदी फिल्म जगत का उद्धार होता रहेगा | इतनी शालीन अदाकारा को परदे पर लाना गौरव की बात जो है | इन्हें हिंदी चलचित्रों का हिस्सा बनाने पर और देश की जनता को ऐसी अदाकाराओं को सराहने का मौका देने के लिए मैं महेश भट्ट का आभारी हूँ के उनका जो भी और जितना भी योगदान है देश की संस्कृति को भ्रष्ट करने में वो शायद ही किसी और का होगा | धन्य हैं भट्ट जी और उनकी सोच भी | जो व्यक्ति अपनी सुपुत्री से कह सकता हो के अगर तुम मेरी बेटी न होती तो मैं तुमसे शादी कर लेता ऐसे महान मह्नुभवों से आप और क्या अपेक्षा रखते हैं |

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