दरअसल... क्या करते और चाहते हैं प्रशंसक?


-अजय ब्रह्मात्मज
    हाल में एक उभरते स्टार मिले। अपनी फिल्म के प्रचार के लिए वे मुंबई से बाहर गए थे। इन दिनों फैशन चल गया है। सभी मुंबई और दिल्ली से निकल कर इंदौर, नागपुर, लखनऊ, कानपुर, पटना और जयपुर जैसे शहरों में जा रहे हैं। ऐसे ही एक शहर से वे लौटे थे, उन्होंने अपना हाथ दिखाया। नाखूनों के निशान स्पष्ट थे। मानो किसी ने चिकोटी काटी हो। पूछने पर वे बताने लगे - यह तो कुछ भी नहीं है। अभी तो और भी फरमाइशें पूरी करनी पड़ती है। अभी किशोर और युवा उम्र की लड़कियां गोद में उठाने का आग्रह करती हैं। मेरे तो कंधे दर्द कर रहे हैं। याद नहीं कितनी लड़कियों को सहारा देकर बांहों में उठाया। यह सब होता है महज एक तस्वीर और क्षणिक सुख के लिए। सेलिब्रिटी के साथ होते ही आम नागरिक के रंज-ओ-गम काफूर हो जाते हैं। इस सुख और खुशी को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यह है और होता है।
    मोबाइल में कैमरा लगने के बाद तस्वीरों की चाहत बढ़ गई है। सेलिब्रिटी दिखते ही हम सभी पहले उनकी तस्वीर उतारते हैं। यह खयाल नहीं रहता कि वे वहां किस वजह से हैं? कहीं वह उनका प्रायवेट क्षण तो नहीं है। मुंबई में आए दिन रेस्तरां और थिएटर में फिल्म सेलिब्रिटी को ये परेशाानियां झेलनी पड़ती हैं। मुस्कराते हुए तस्वीर खिंचवानी पड़ती है। खयाल रखना पड़ता है कि कैमरा क्लिक हो तो वे नाखुश ना दिखें। हालांकि यह शोध का विषय हो सकता है कि ऐसी तस्वीरें प्रशंसक संभाल कर रखते हैं या नहीं? या फिर मोबाइल बदलने या खोने के साथ सब कुछ खो जाता है। पहले ऑटोग्राफ का चलन था। अब फोटोग्राफ का जमाना है।
    पहले भी मैंने इसका उल्लेख किया है। हम कहीं भी हो और अपने काम या गतिविधि में भले ही कितने मशरूफ न हों? सेलिब्रिटी को देखते ही हम बेसुध हो जाते हैं। अपना काम भूल जाते हैं। कुछ भी याद नहीं रहता। सिर्फ उस सेलिब्रिटी को निहारने में आनंद आता है। सेलिब्रिटी हम से मुखातिब भी नहीं होता, लेकिन उसे देख कर ही हिया जुड़ा जाता है। इस खुशी या क्षणिक आनंद को कैसे डिफाइन करेंग? हर सेलिब्रिटी अपनी मौजूदगी मात्र से दो पल के लिए हमारी जिंदगी में खुशियां उड़ेल देता है। इसके एवज में उसे कुछ नहीं मिलता। वह कुछ चाहता भी नहीं। हां, उसे भी खुशी मिलती है। उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। माधुरी दीक्षित ने कभी बताया था कि ‘तेजाब’ की रिलीज के बाद वह एयरपोर्ट से निकल रही थीं तो कुछ बच्चों ने उन्हें ‘मोहिनी-मोहिनी’ कह कर पुकारा था। वैसी खुशी दोबारा नहीं मिली। सचमुच कोई अपरिचित सामने आकर नाम या काम से पुकारे तो बेहद खुशी होती है।
    प्रशंसकों और सेलिब्रिटी के संबंध की कुछ समस्याएं भी हैं। कुछ प्रशंसक आक्रामक होते हैं। वे अपने प्रिय सितारों को तंग करने से भी नहीं हिचकते। बिपाशा बसु को छूने की कोशिश में छेड़खानी हो चुकी है। मैं खुद गवाह रहा हूं। एक बार रितिक रोशन के साथ अहमदाबाद गया था। हमलोग एक क्लब में थे। वहां किटी पार्टी की महिलाओं से मिलना था। मुलाकात के बाद अचानक रितिक रोशन ने महसूस किया कि उनके नितंब पर किसी का हाथ है। उसने चिकोटी काटी। रितिक का चेहरा लाल हो गया। गुस्से और शर्म में वे झटकते हुए आगे बढ़े तो भगदड़ मच गई। बाद में उन्होंने बताया कि उन प्रौढ़ महिलाओं में से किसी ने चिकोटी काटी थी।
    देव आनंद के समय चि_ी-पत्री तक ही सब कुछ सीमित था तो उन्हें खून से लिखे प्रेमपत्र मिलते थे। राजेश खन्ना के समय लड़कियां राजेश खन्ना के गुजरने के बाद धूल उठाकर मांग से लगाती थीं या उनकी कार को चूम-चूम कर लिपिस्टिक से लाल कर देती थीं। अब जमाना बदल गया है। दीवानगी में भी फर्क आया है। अब छूने और बांहों में आने का शौक बढ़ गया है। हर कलाकार और सेलिब्रिटी को ऐसी परेशानियों से गुजरना पड़ता है। वे ना  भी तो नहीं कर सकते। प्रशंसक ही तो उनके भाव और ताव बढ़ाते हैं। एक प्रशंसक को नाराज करने के मतलब सैकड़ों प्रशंसकों को अपने खिलाफ करना होता है। कोई भी सेलिब्रिटी यह रिस्क नहीं ले सकता।


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