हिंदीहित में निर्माता-निर्देशकों से सार्वजनिक अपील

क्‍या आप ने दबंग का पोस्‍टर हिंदी में देखा है ? जिस पर DABANGG नहीं दबंग लिखा हो। 
चलिए किसी और फिल्‍म का नाम याद करें और यह भी याद करें कि पोस्‍टर पर फिल्‍म का नाम देवनागरी में लिखा था या रोमन में ?              
धीरे-धीरे निर्माता-निर्देशकों ने फिल्‍मों के नाम देवनागरी में लिखना बंद कर दिया है। कभी हिंदी,उर्दू और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में नाम आते थे। अभी अंग्रेजी का बोलबाला है। कास्‍ट एंड क्रू के नाम की पट्टी भी अंग्रेजी में चला दी जाती है। फर्स्‍ट लुक पोस्‍टर और विज्ञापनों में भी फिल्‍मों के नाम अंग्रेजी में ही चल रहे हैं। हिंदी फिल्‍मों के नाम सिर्फ रोमन में लिखने का संक्रामक चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। मान लिया गया है कि इतनी अंग्रेजी सभी जानते हैं कि रोमन में फिल्‍मों के नाम पढ़ और समझ सकें। किसी को परवाह नहीं है। ऐसा कोई नियम-अधिनियम भी नहीं है कि हिंदी फिल्‍मों के नाम देवनागरी में ही लिखे जाएं। 
         मुझे एक प्रसंग याद आता है। राकेश रोशन की कृष रिलीज होने वाली थी। उनके कुछ वितरक मिलने और समझने आए थे। उन्‍हें फिल्‍म के पोस्‍टर दिए गए। अग्रिम विज्ञापन और प्रचार का यह कारगर तरीका है। थिएटरों में आने वाली फिल्‍मों के पोस्‍टर लगा दिए जाते हैं। एक वितरक ने कहा कि ये पोस्‍टर बेकार हैं। फिल्‍म का नाम हिंदी में नहीं लिखा है। राकेश रोशनका जवा था,'यह रितिक की फिल्‍म है। केवल उसकी तस्‍वीर भी रहेगी तो दर्शक समझ जाएंगे कि कृष ही है। हिंदी प्रदेश का वितरक सहमत नहीं हुआ। उसने करारा जवाब दिया,'आप हिंदी में पोस्‍टर छपवा दें तो अच्‍छा। वर्ना हम इसे पर हाथ से हिंदी में लिख देंगे।' मैंने खुद मनाली में देखा कि सनी देओल की एक फिल्‍म के पोस्‍टर पर नील से फिल्‍म और सनी देओल का नाम अंग्रेजी के ऊपर हिंदी में लिख दिया गया था। निर्माता बंधुओं समझ लें कि हिंदी फिल्‍में केवल मुंबई और दिल्‍ली की हद में नहीं चलतीं। बेहतर है किहिंदी प्रदेशों के लिए कम से कम देवनागरी में लिखे नामों के पोस्‍टर बनाए जाएं। अभी इसी हफ्ते बिहार की यात्रा में देखा कि 'स्‍पेशल 26','जॉली एलएलबी','आत्‍मा' और 'रंगरेज' के लिथो पोस्‍टर देवनागरी में छपे थे। कोई तस्‍वीर नहीं। सिर्फ फिल्‍म का नाम और कलाकारों की सूची। आप के ज्‍यादातर दर्शक अभी तक हिंदी ही समझते हैं। 
   
   किसी भाषायी जिद से ज्‍यादा यह आलस्‍य और सहूलियत का मामला है। चwaकि कहीं से भी पुरअसर आपत्ति नहीं होती,इसलिए निर्माताओं,प्रोडक्‍शन हाउस,निर्देशक आदि ने मान लिया है कि हिंदी में पोस्‍टर न आए तो भी चलता है। मुझे बहुत कोफ्त होती है। इन दिनों हिंदी अखबारो,चैनलों और वेब साइटों पर भी धड़ल्‍ले से अंग्रेजी में लिखे पोस्‍टर समाचार,रिव्‍यू और लेख के साथ छपते हैं। मालूम नहीं इन्‍हें देख कर कितनों की भवें तनती होंगी ?हिंदी प्रदेशों में शहरों की दीवारें हिंदी फिल्‍मों के अंग्रेजी पोस्‍टर से अटी रहती हैं। क्‍या निर्माता-निर्देशक किसी भाषायी आंदोलन या दबाव का इंतजार कर रहे हैं ? क्‍या विरोध में अंग्रेजी के पोस्‍टर फटने के बाद ही हिंदी में पोस्‍टर छपने शुरू होंगे। मीडिया को फर्स्‍ट लुक देते समय हिंदी के पोस्‍टर क्‍यों नहीं दिए जाते ? मुझे हिंदी चैनलों,अखबारों और वेबसाइट के फिल्‍म पद्धकारों से भी शिकायत है। वे हिंदी में क्रिएटिव क्‍यों नहीं मांगते ? मैंने एक-दो दफा मांगा तो मानो गोदाम से निकाल कर हिंदी के पोस्‍टर की साफ्ट कॉपी भेजी गई। कहा भी गया कि आप हिंदी-हिदी करते रहते हैं। देखिए सभी लोग पब्लिश कर रहे हैं कि नहीं ?
    निर्माता,निर्देशक और फिल्‍म प्रचार से जुढ़े सभी व्‍यक्तियों से आग्रह है कि वे जल्‍दी से जल्‍दी हिंदी में पोस्‍टर बनाने की प्राथमिकता पर विचार करें। हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के संपादक,हिंदी फिल्‍म पत्रकारों,वेबसाइट के संपादकों से निवेदन है कि वे किसी भी फिल्‍म का अंग्रेजी पोस्‍टर इस्‍तेमाल न करें। हमें निर्माता-निर्देशकों,प्रचारकों और अप्ल्‍य संबंधित व्‍यक्तियों को एहसास दिलाना होगा कि अगर हिंदी में पोस्‍टर न छने तो उस फिल्‍म के प्रचार में बाधा आएगी। पोस्‍टर नहीं छपेंगे तो आखिरकार दर्शक कम होंगे। 
           मैं फिलहाल इस चर्चा में नहीं जाना चाहता कि हिंदी में पोस्‍टर न छाप कर भाषा,संस्‍कृति और समाज के साथ कैसा भ्रष्‍ट आचरण किया जा रहा है। अगर अभी से आवाज नहीं उठाई गई तो कल फिल्‍म पोस्‍टरों से हमशा के लिए हिंदी गायब हो जाएगी। प्रकिया शुरू हो चुकी है। उसे पलटने और बदलने के लिए हिंदी पोस्‍टरों की मांग करनी होगी।


Comments

आपने सही समय पर अपील जारी की है मैं काफी दिन से सोच रहा हूँ कि केन्द्रीय प्रमाणन बोर्ड और सूचना प्रसारण मंत्रालय से आरटीआई लगाकर पूछूं कि सभी प्रकार के टीवी कार्यक्रमों एवं सभी प्रकार की फिल्मों के पोस्टर, नाम,कलाकार सूची, फिल्म के आरंभ और अंत में आने वाले शीर्षक आदि लिखने के बारे में सरकार ने क्या नियम बनाए हैं? उसका स्वरुप कैसा हो, भाषा कौन सी इस्तेमाल की जाए?

वैसे कानून होना चाहिए कि जिस भाषा का टीवी कार्यक्रम अथवा फिल्म होगी उसके पोस्टर, नाम,कलाकार सूची, फिल्म के आरंभ और अंत में आने वाले शीर्षक आदि को उसी भाषा और लिपि में प्राथमिकता के आधार पर (अंग्रेजी के पहले)लिखना, छापना अनिवार्य होगा.
chavannichap said…
अगर आरटीआई लगाएं तो जरूर बताएं।
Kumar Harsh said…
विज्ञापन की भाषा कभी भी हिंदी नहीं थी.
तो पोस्टर की क्यों हो?
आप के दैनिक जागरण में भी काफी विज्ञापन अंग्रेजी में ही होते है.



खैर मै टीवी और पायरेटेड डीवीडी पर फिल्मे देखने वाला इन्सान हूँ.... सो आप की बात मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती.

पर सुरुआत में लिखी गयी आप की पंक्तियों के बारे में कुछ बताता हूँ- मै पिछले साल "हरदोई" में रह रहा था. एक फिल्म रिलीज हुई थी, नाम था "इशकजादे".....फिल्म हरदोई में ही फिल्माई गयी थी..... तो मै भी देखने गया था हरदोई के उस एक मात्र सिनेमाघर में.
हम को बस उस फिल्म में अपने शहर "हरदोई" को देखना था.
कई लोग "इशकजादे" को "इश्कजादे" या "इस्कजादे" कह रहे थे क्योकि "इशक" के बजाये "इश्क/इस्क" शब्द लोगो को सही लग रहा था. पर मेरे अनुभव के अनुसार उर्दू में आधा अक्षर नहीं लिखा जा सकता तो "इशकजादे" ही सही नाम था.
अखबारों में फिल्म की चर्चा थी(हरदोई की स्थानीय खबरों वाले पन्ने पर) पर फिल्म का नाम "इशकजादे" के बजाये "इश्कजादे" या "इस्कजादे" ही लिखा जा रहा था जबकि पुरे शहर के हर नुक्कड़ पर देवनागरी में "इशकजादे" लिखे हुए पोस्टर चिपके हुए थे.


और हरदोई में शायद हर फ़िल्मी पोस्टर देवनागरी में ही होता है.
आप मुंबई में है.. अंग्रेजी फ़िल्मी पत्रकारों के बीच... हिंदी भाषीय लोगो(यू पी) वालो से दूर...

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