Posts

दरअसल:छोटी सफलता को बड़ी कामयाबी न समझें

Image
-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों सीमित बजट की कुछ फिल्मों को अच्छी सराहना मिली। संयोग से वे महानगरों के मल्टीप्लेक्स थिएटरों में सप्ताहांत के तीन दिनों से ज्यादा टिकीं और उनका कुल व्यवसाय लागत से ज्यादा रहा। तीन-चार फिल्मों की इस सफलता को अब नया ट्रेंड बताने वाले पंडित बड़ी भविष्यवाणियां कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि अब छोटी फिल्मों का जमाना आ गया है। इन भविष्य वक्ताओं में एक निर्माता भी हैं। चूंकि वे कवि, पेंटर और पत्रकार भी हैं, इसलिए अपनी धारणा को तार्किक बना देते हैं। उन्होंने इस लेख में अपनी जिन फिल्मों के नाम गिनाए हैं, उनकी न तो सराहना हुई थी और न ही उन्हें कामयाब माना गया। आमिर से लेकर ए वेडनेसडे की सराहना और कामयाबी के बीच हल्ला और अगली और पगली जैसी असफल फिल्में भी आई हैं। हां, चूंकि इन फिल्मों की लागत कम थी, इसलिए नुकसान ज्यादा नहीं हुआ। आमिर, मुंबई मेरी जान और ए वेडनेसडे जैसी फिल्मों का उदाहरण देते समय हमें यह भी देखने की जरूरत है कि इनके निर्माता कौन हैं? लोग गौर करें कि बड़ी फिल्मों के निर्माताओं और निर्माण कंपनियों ने ही छोटी फिल्मों के लिए एक शाखा खोल ली है। वे कुछ फिल्में इ

फ़िल्म समीक्षा:गोलमाल रिट‌र्न्स

Image
पिछली फिल्म की कामयाबी को रिपीट करने के लोभ से कम ही डायरेक्टर व प्रोड्यूसर बच पाते हैं। रोहित शेट्टी और अष्ट विनायक इस कोशिश में पिछली कामयाबी को बॉक्स ऑफिस पर भले ही दोहरा लें लेकिन फिल्म के तौर पर गोलमाल रिट‌र्न्स पहली गोलमाल से कमजोर है। ऐसी फिल्मों की कोई कहानी नहीं होती। एक शक्की बीवी है और उसका शक दूर करने के लिए पति एक झूठ बोलता है। उस झूठ को लेकर प्रसंग जुड़ते हैं और कहानी आगे बढ़ती है। कहानी बढ़ने के साथ किरदार जुड़ते हैं और फिर फिल्म में लतीफे शामिल किए जाते हैं। कुछ दर्शकों को बेसिर-पैर की ऐसी फिल्म अच्छी लग सकती है लेकिन हिंदी की अच्छी कॉमेडी देखने वाले दर्शकों को गोलमाल रिट‌र्न्स खास नहीं लगेगी। अजय देवगन संवादों के माध्यम से अपना ही मजाक उड़ाते हैं। तुषार कपूर गूंगे की भूमिका में दक्ष होते जा रहे हैं। मालूम नहीं एक कलाकार के तौर पर यह उनकी खूबी मानी जाएगी या कमी? फिल्म में अरशद वारसी की एनर्जी प्रभावित करती है। श्रेयस तलपड़े हर फिल्म में यह जरूर बता देते हैं कि वे अच्छे मिमिक्री आर्टिस्ट हैं। उन्हें इस लोभ से बचने की जरूरत है। गानों के फिल्मांकन में रोहित ने अवश्य भव्यता

फ़िल्म समीक्षा:फैशन

Image
प्रियंका की फिल्म है फैशन -अजय ब्रह्मात्मज हाई सोसायटी के बारे में जानने की ललक सभी को रहती है। यही कारण है कि इस सोसायटी की खबरें चाव से पढ़ी और देखी जाती हैं। फैशन जगत की चकाचौंध के पीछे की रहस्यमय दुनिया खबरों में छिटपुट तरीके से उजागर होती रही है। मधुर भंडारकर ने उन सभी खबरों को समेटते हुए यह फिल्म बनाई है। चूंकि फैशन फीचर फिल्म है इसलिए कुछ किरदारों के इर्द-गिई उन घटनाओं को बुन दिया गया है। फैशन मधुर भंडारकर की बेहतरीन फिल्म है। सिनेमाई भाषा और तकनीक के लिहाज से उनका कौशल परिष्कृत हुआ है। फिल्म फैशन जगत की साजिशों, बंदिशों और हादसों को छूती भर है। मधुर कहीं भी रुक कर उन साजिशों, बंदिशों और हादसों की पृष्ठभूमि की पड़ताल नहीं करते। हिंदी फिल्मकार पापुलर फिल्मों में गहराई में उतरने से बचते हैं और कहीं न कहीं ठोस बाते कहने से घबराते हैं। उन्हें डर रहता है कि दर्शक भाग जाएगा। यही वजह है कि मधुर की फिल्म विशेष होने के बावजूद साधारण ही रह जाती है। हां, प्रतिनिधि के तौर पर चुनी गई तीन माडलों की कहानी दिल को छूती है। मेघना माथुर, सोनाली राजपाल और जेनेट के नाम भले ही अलग हों लेकिन उनकी पृष

लोगों को 'एक विवाह ऐसा भी' वास्तविक लगेगी-कौशिक घटक

Image
राजश्री की फिल्म एक विवाह ऐसा भी के निर्देशक हैं कौशिक घटक। उन्होंने अनुराग बसु के सहायक के रूप में निर्देशन यात्रा आरंभ की। उनकी तरह ही कौशिक ने भी पहले टीवी सीरियलों का निर्देशन किया। उन्हें जब एक विवाह ऐसा भी के निर्देशन की जिम्मेदारी दी गई, तब वे राजश्री के ही एक सीरियल का निर्देशन कर रहे थे। बातचीत कौशिक घटक से.. सबसे पहले यह बताएं कि फिल्म के नाम में ऐसा भी लगाने की क्या वजह है? क्या आप किसी नए प्रकार के विवाह की बात कर रहे हैं? देश में हर समुदाय और समाज में विवाह की अपनी-अपनी पद्धतियां होती हैं। हम इसमें एक खास किस्म के रिश्ते की बात कर रहे हैं, जो बाद में विवाह में बदलता है। न मिलने की कसमें, न साथ का वादा, न कोई बंधन.., बंधन तो है ही नहीं! हम इस प्रकार के एक विवाह की बात कर रहे हैं। इसमें लिव इन रिलेशनशिप भी नहीं है। यह लड़का-लड़की की एक कहानी है, जिनकी जिंदगी में ऐसा कुछ होता है कि वे साथ नहीं हो पाते। एक-दूसरे को छूना तो दूर, उनकी नजरें तक नहीं मिलती हैं। शारीरिक संबंध का तो सवाल ही नहीं उठता! इस रिश्ते में वे बारह सालों तक रहते हैं। उस रिश्ते की गहराई को व्यक्त करने के लिए

हिन्दी टाकीज:स से सिनेमा-निधि सक्सेना

Image
हिन्दी टाकीज-१४ इस बार निधि सक्सेना की यादें...निधि जयपुर की हैं। फिल्में देखने का उन्हें जुनून है... बनाने का भी। तमाम एनजीओ के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाती हैं। खासकर कुदरत (पानी, जंगल, परिंदों, मिट्टी) पर. दूरदर्शन के लिए भी काम कर चुकी हैं।पढ़ने की आदत जबर्दस्त है और घूमने की भी . स्कल्पचर बनाने के हुनर पर खुद यकीन है और पेंटिंग्स बनाने के कौशल पर बाकियों को. उनका एक सीधा-सादा सा ब्लॉग भी है http://ismodhse.blogspot.com निधि को गाने सुनना भी अच्छा लगता है. नए-पुराने हर तरह के. उन्होंने निराले अंदाज़ में अपने अनुभव रखे हैं। स से सिनेमा क़र्ज़ अदा करूं पहले इस लेख के बहाने मैं बचपन का एक क़र्ज़ अदा कर दूँ। सबसे पहले मेरा धन्यवाद एन। चंद्रा को। अगर वो न होते तो जो भी एक-डेढ़ डिग्री मेरे पास है, अच्छे बुरे अंकों के साथ, वो कभी ना होती। तेजाब वो पहली फ़िल्म हैं, जो मैंने देखी। इससे पहले टीवी या और कुछ देखा हो, ऐसा याद नहीं पड़ता। तेजाब को मेरी देखी पहली फ़िल्म होने के लिए धन्यवाद नहीं, बल्कि उस गाने के कारण धन्यवाद। जिसमे गुलाबी माधुरी थिरकते हुए गाती है...एक दो तीन चार.... स्कूल मैंने जाना श

फ़िल्म समीक्षा:हीरोज

Image
विषय और भाव से भटकी फिल्म फौज के चार जवानों और उनके परिवार के सदस्यों की भावनाओं के जरिए समीर कर्णिक ने आज के संदर्भ में देशभक्ति और देश सेवा की याद दिलाई है। इसके लिए उन्होंने कुछ पापुलर स्टार चुने और वे स्टार ही फिल्म के विषय पर भारी पड़ गए। समीर सितारों की लोकप्रियता भुनाने के चक्कर में मूल भाव से भटक गए। दुर्भाग्य की बात है कि हीरोज समेत अपनी तीनों फिल्मों में समीर से समान भूलें हुई हैं। मोटर साइकिल और हजार किलो मीटर के सफर से माना जा रहा था कि हीरोज चेग्वेरा के जीवन को लेकर बनी मोटरसाइकिल डायरी से प्रभावित होगी। लेकिन, समीर ने बिल्कुल अलग फिल्म बनाई है। विचार नया और अद्भुत है लेकिन उसके फिल्मांकन में उन्होंने सलमान खान और सनी देओल पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दे दिया है। अगर वे स्टार के बजाए किरदार पर ध्यान केंद्रित कर चलते तो फिल्म ज्यादा प्रभावकारी होती और अपने विषय व भाव के साथ न्याय कर पाती। सलमान का प्रसंग बेवजह लंबा खींचा गया है। सनी देओल के मुक्के और बहादुरी को दिखाने के लिए भी सीन ठूंसे गए हैं। नतीजा यह हुआ कि हीरोज न तो मसाला फिल्म बन पाई और न ही अपना संदेश ढंग से रख पाई। समीर

दरअसल:क्यों धीरे चलें बच्चन?

Image
-अजय ब्रह्मात्मज बहुत पहले की बात न करें। पिछले छह महीनों की दिनचर्या ही देख लें, तो अमिताभ बच्चन की व्यस्तता और सक्रियता का अनुमान हो जाएगा। सबूत के लिए उनके ब्लॉग पर जाएं। वहां दिखेगा कि पिछले छह महीनों में ही उन्होंने इस पृथ्वी पर पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की कई यात्राएं कीं। कई देशों में गए और अनेक कार्यक्रमों में भी शामिल हुए। अपने परिजन और अन्य स्टारों के साथ अनफारगेटेबल टुअॅर पूरा किया। नई फिल्मों के लिए बैठकें कीं। प्रतिकूल परिस्थितियों और मौसम में फिल्मों की शूटिंग की। 66-67 की उम्र में उनकी यह सक्रियता अचंभित करती है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देव आनंद को सदाबहार अभिनेता कहा जाता है। ऐसे में अमिताभ बच्चन को सदासक्रिय अभिनेता कहना गलत नहीं होगा। सारी सुविधाओं और साधन के बावजूद अमिताभ बच्चन नहीं चाहते कि उनकी वजह से किसी और को परेशानी या तकलीफ हो। यही वजह रही होगी कि इस बार जन्मदिन से पहले वाली रात को पेट दर्द होने पर भी वे बर्दाश्त करते रहे। शायद उन्होंने सोचा हो कि दर्द खुद ही कम हो जाएगा और उनके जन्मदिन के अवसर पर एकत्रित हुए परिचितों और शुभचिंतकों की खुशी में खलल न

हिन्दी टाकीज:सिनेमा देखने चलना है - श्याम दिवाकर

हिन्दी टाकीज-१३ इस बार श्याम दिवाकर ने हिन्दी टाकीज की अगली कड़ी लिखी है.चवन्नी के विशेष आग्रह को उन्होंने स्वीकार किया और बिल्कुल अलग अंदाज़ में यह संस्मरणात्मक लेख लिखा.श्याम दिवाकर पेशे से हिन्दी के प्रोफ़ेसर और स्वभाव से कवि हैं.'इस सदी का प्रेमपत्र' नाम से उनका काव्य संग्रह आ चुका है.उन्होंने छिटपुट कहानियाँ लिखी हैं और यदा-कदा समीक्षात्मक लेख लिखते हैं.उन्होंने ख़ुद जितना लिखा है,उस से ज्यादा लोगों को लिखने के लिए प्रेरित किया है.बिहार के जमालपुर निवासी श्याम दिवाकर फिलहाल आरडीएनडीजे कॉलेज ,मुंगेर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष हैं। 'सिनेमा' शब्द से मेरा पहला परिचय संभवत: 1958-59 के आसपास हुआ। अक्टूबर का महीना था। मां ने कहा - आज स्कूल नहीं जाना है। स्कूल जाने के लिए कमोबेश रोज डांट खाने वाले के लिए इससे बड़ी खुशी दूसरी हो ही नहींसकती थी। मैं अभी इस आश्चर्य से उबर भी नहीं पाया था कि घर से निकलने की मनाही करते हुए दीदी ने नहा-धोकर तैयार हो जाने का फरमान जारी कर दिया। पता चला आज घर के अधिकांश लोग सिनेमा देखने जाएंगे। मैं बिहार के मुंगेर जनपद के हवेली खडग़पुर तहसील का नि

गजनी में गजब ढाएंगे आमिर खान

Image
-अजय ब्रह्मात्मज पिछले साल 'तारे जमीन पर' में दर्शकों ने आमिर खान को निकुंभ सर की सीधी-सादी भूमिका में देखा था। अब 'गजनी' में वे हैरतअंगेज एक्शन करते नजर आएंगे। गजनी के लिए उनके माथे पर कटे का निशान तो सभी ने देख रखा है। लेकिन, उनकी बाडी के बारे में किसी को पता नहीं था। 'गजनी' में आमिर उभरे 'बाइसेप्स' और 'शोल्डर्स' के साथ दर्शकों के सामने होंगे। दैनिक जागरण से खास बातचीत में आमिर ने नए लुक और 'गजनी' के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, 'मैं लंबे अंतराल के बाद एक्शन फिल्म कर रहा हूं। फिल्म के निर्देशक मुरुगदास ने मुझे सलाह दी थी कि एक्शन हीरो होने के नाते मैं अपनी बाडी बनाऊं। ऐसी बाडी बनाने में डेढ़-दो साल लगते हैं।' आमिर ने कहा, 'मैंने तारे जमीन पर के पोस्ट प्रोडक्शन के समय से ही अपने शरीर पर काम शुरू कर दिया था। उन दिनों रोजाना तीन-चार घंटे की एक्सरसाइज के बाद मैं थक कर चूर हो जाता था। लेकिन, फिल्म के लिए यह करना जरूरी था।' आमिर ने कहा, 'फिर मुझे दुनिया की नजरों से भी इस बाडी को छिपा कर रखना था। मैं उन दिनों

इंसानी वजूद का अर्थ तलाशती है ट्रेजडी-महेश भट्ट

Image
ट्रेजडी इन दिनों फैशन में नहीं है। आप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में किसी को दिल तोडने वाली और आत्मा को झिंझोड देने वाली दुख भरी कहानी सुनाएं तो वह हालिया बरसों में दर्शकों की बदल चुकी रुचि के संबंध में भाषण दे देगा। एक चैनल के सीनियर मार्केटिंग हेड पिछले दिनों मेरी नई फिल्म जन्नत की रिलीज की रणनीति तय करने आए। उन्होंने समझाया, हमारे दर्शकों में बडी संख्या युवकों की है और उनकी रुचि मस्ती में रहती है। कृपया उन्हें उदासी न परोसें। उनसे उम्मीद न करें कि वे ऐसी कहानियों को लपक लेंगे। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन दिनों मीडिया में हर कोई केवल फील गुड प्रोडक्ट के उत्पादन में लगा है। 2007 में पार्टनर, हे बेबी और वेलकम जैसी निरर्थक फिल्मों की कमाई ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड दिए। मुझे तो ट्रेजडी पर लिखने का यह भी एक बडा कारण लगता है। ट्रेजडी की परिभाषा मैंने 24 साल के अपने बेटे राहुल से सुबह वर्कआउट के समय पूछा, ट्रेजडी के बारे में सोचने पर तुम्हारे जहन में क्या खयाल आता है? मरने के लंबे आंसू भरे दृश्य, कानफाडू पा‌र्श्व संगीत और कभी-कभी घटिया एक्टिग. कुछ देर सोचकर उसने जवाब दिया। उ