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सिटीलाइट्स के बारे में हंसल मेहता

कमी नहीं है काम की-अभिषेक बच्‍चन

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-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों अभिषेक बच्चन फराह खान की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ और उमेश शुक्ला की ‘आल इज वेल’ की शूटिंग कर रहे हैं। इन दोनों फिल्मों की शूटिंग समाप्ति तक कबड्डी का सीजन आ जाएगा। कबड्डी लीग की एक टीम उनके पास है। जुलाई में आरंभ होने वाले इस लीग के मैचों में पूरा समय देने की उनकी कोशिश रहेगी। इस साल के अंत में अमित शर्मा के साथ उनकी अगली फिल्म आरंभ होगी। लगातार व्यस्त अभिषेक बच्चन के बारे में कहीं खबर आई कि उनके पास फिल्में नहीं हैं, इसलिए वे कबड्डी पर ध्यान दे रहे हैं।     थोड़े नाराज स्वर में वे स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कहते हैं, ‘अभी कुछ महीने पहले ही ‘धूम 3’ रिलीज हुई थी। कैसे कोई कह सकता है कि मेरी फिल्मों को रिलीज हुए काफी समय हो गए। इस साल के अंत तक ‘हैप्पी न्यू ईयर’ और ‘आल इज वेल’ भी रिलीज आ जाएगी। ये फिल्में कम हैं क्या? मुझे लगता है कि मैं कुछ पत्रकारों के निगाहों में खटकता हूं। वे निराधार फब्तियां कसते रहते हैं।’  शाहरुख खान के होम प्रोडक्शन और फराह खान के निर्देशन में बन रही ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, ‘वह फराह खान की शैली की फिल्म है। फुल

हंसल-राजकुमार की पुरस्कृत जोड़ी की ‘सिटीलाइट्स’

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘शाहिद’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हंसल मेहता और राजकुमार राव की निर्देशक-अभिनेता जोड़ी एक नई फिल्म ‘सिट लाइट्स’ के साथ आ रही है। ‘सिटीलाइट्स’ महानगरों में आजीविका की तलाश में आए छोटे शहरों के विवश लोगों की प्रतिनिधि कहानी है। हंसल मेहता की ‘सिटी लाइट्स’ का नायक राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से मुंबई आता है। भट्ट बंधुओं की कंपनी विशेष फिल्म्स के लिए बनी इस फिल्म के निर्माण में फॉक्स स्टार ने सहयोग किया है।     संयोग ही है कि हंसल मेहता और राजकुमार राव एक साथ आए। पहले इस फिल्म के निर्देशन के लिए अजय बहल का चुनाव किया गया था। निर्माता मुकेश भट्ट से तालमेल नहीं बिठा पाने के कारण अजय बहल फिल्म से अलग हो गए थे। महेश भट्ट ने खुद ‘शाहिद’ देखी थी। उन्हें लगा कि हंसल मेहता ‘सिटी लाइट्स’ की थीम के साथ न्याय कर सकेंगे। यह फिलीपिंस की फिल्म ‘मैट्रो मनीला’ की आधिकारिक रिमेक है। हिंदी में इसके किरदार स्थानीयता की वजह से बदल गए हैं। फिल्म के लिए राजकुमार राव का चुनाव पहले हो चुका था। वे फिल्म में बने रहे। हंसल मेहता के आने के बाद निर्देशक-अभिनेता की जोड़ी को जल्दी

मैं स्वयं पापा की फैन हूं - सौंदर्या आर अश्विन

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-अजय ब्रह्मात्मज     रजनीकांत की नई फिल्म ‘कोचडयान’ की निर्देशक उनकी बेटी सौंदर्या आर अश्विन हैं। शुरू से ही सौंदर्या की अभिरुचि कॉमिक्स, ग्राफिक्स और एनीमेशन में रही। बचपन में अमर िचत्र कथा उनकी प्रिय सीरिज रही। बेटी की रुचि का ध्यान रखते हुए रजनीकांत ने सौंदर्या को प्रोत्साहित किया। नतीजा सामने है। रजनीकांत की प्रायोगिक महात्वाकांक्षी फिल्म ‘कोचडयान’ का उन्होंने निर्देशन किया। परफारमेंस कैप्चरिंग टेकनीक में बनी यह भारत की पहली फिल्म है। सौंदर्या के इस प्रयास की अमिताभ बच्चन ने भी तारीफ की है। पिछले दिनों सौंदर्या मुंबई में थीं। ‘कोचडयान’ हिंदी और भोजपुरी में भी रिलीज होगी। - ‘कोचडयान’ का अर्थ क्या है? 0 को का मतलब राजा और चडयान मतलब लंबे बाल। ‘कोचडयान’ का अर्थ हुआ लंबे बाल वालों का राजा। ‘कोचडयान’ भगवान शिव का अनुयायी है। वह शिव के विध्वंसक रूप में यकीन रखता है। फिल्म में वह तांडव नृत्य भी करता है। - फिल्म की थीम क्या है? क्या ‘कोचडयान’ मिथकीय चरित्र है? 0 नहीं, यह पूरी तरह से काल्पनिक कहानी है। यह ‘राणा’ का प्रीक्वल है। कोडयान राणा का पिता है। कोचडयान सिद्ध राजा,नर्तक और योद्धा

दरअसल : युवा निर्देशक का आत्मदंश

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-अजय ब्रह्मात्मज     पिछले हफ्ते एक युवा निर्देशक से मुलाकात हुई। देसी तेवर के साथ आए इस निर्देशक की पहली फिल्म की दस्तक सभी ने सुनी थी। अपने शहर की राजनीति और दुविधाओं को उन्होंने फिल्म का रूप दिया था। फिल्म सराही गई थी। अनेक युवा अभिनेताओं को उस फिल्म से पहचान मिली थी। बाद में उस निर्देशक ने लोकप्रिय सितारों और घरानों के बच्चों के साथ फिल्में बनाईं। वे सब आधी-अधूरी ही रहीं। न फिल्में रिलीज हुई और न उनकी पहचान गाढ़ी हुई। फिल्में बनें और पूरी न हों यो पूरी होकर रिलीज न हों तो निर्देशक के बारे में सीधे या दबी जबान से सभी यही कहते हैं, ‘कुछ तो प्राब्लम है? कौन रिस्क ले।’     यह वक्त होता है अपनी इच्छाशक्ति बनाए रखने का। जब चारों तरफ से हौसले पस्त करने की साजिशें चल रही हों तो सुबह के इंतजार में अंधेरी रात से गुजरना पड़ता है। निर्देशक ने हिम्मत नहीं हारी। वे छोटे-मोटे प्रयास करते रहे। उन्होंने एक पुरानी चर्चित फिल्म को हल्का सा ट््िवस्ट दिया। नए अंदाज में पेश किया। वह फिल्म चली और खूब चली। इतनी चली कि उनका दफ्तर गुलजार हो गया। स्ट्रगलर और स्टार का तांता लग गया। पता चला कि हर स्टार उनक

फिल्‍म समीक्षा : क्‍या दिल्‍ली क्‍या लाहौर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  ओथे भी अपने, येथे भी अपने गुलजार की पंक्तियों और आवाज में आरंभ होती क्या दिल्ली क्या लाहौर विभाजन की पृष्ठभूमि रच देती है। सरहद की लकीर को स्वीकार करने के साथ कबड्डी खेलने का आह्वान करते शब्द वास्तव में विभाजन के बावजूद भाईचारे की जरूरत पर जोर देती है। हिंदी फिल्मों में विभाजन की पीड़ा,समस्या और त्रासदी पर गिनी-चुनी फिल्में ही बनी हैं। इस लिहाज से विजय राज का यह प्रयास उल्लेखनीय और सराहनीय है। फिल्म का कैनवास छोटा है। महज दो किरदारों के माध्यम से निर्देशक ने विभाजन के दंश को उकेरने की सफल कोशिश की है। रहमत अली ने जिंदगी के 32 साल दिल्ली में बिताए हैं। विभाजन के बाद वह लाहौर चला जाता है? वहां वह फौज में भर्ती हो जाता है। दूसरी तरफ समर्थ प्रताप शास्त्री 35 साल की आरंभिक जिंदगी बिताने के बाद दिल्ली चला आता है। उसे भारतीय सेना में बावर्ची की नौकरी मिल जाती है। समर्थ का ठिकाना दिल्ली का रिफ्यूजी कैंप है तो रहमत को लाहौर के मुहाजिर खाना में शरण मिली है। संयोग ऐसा बनता है कि दोनों सीमा पर एक-दूसरे से टकराते हैं। दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हैं,क्योंकि दोन

फिल्‍म समीक्षा : पुरानी जींस

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  हिंदी फिल्मों में प्रेम कहानी की तरह ही दोस्ती की कहानी भी बार-बार रिपीट की जाती है। इस दोस्ती के बीच बाज दफा एक लड़की भी रहती है। दो दोस्त एक ही लड़की को चाहते हैं। लड़की समय पर अपना प्रेम जाहिर नहीं कर पाती और उसकी वजह से दोस्तों में गलतफहमियां पैदा होती हैं और फिर ...पुरानी जींस ऐसी ही एक पुरानी कहानी है,जिसमें नए कलाकार लिए गए हैं। साथ में एक दोस्त के परिवार की कहानी भी जोड़ दी गई है ताकि कुछ ड्रामा क्रिएट हो। अफसोस लेखक और निर्देशक तनुश्री चटर्जी बसु इस पुरानी कहानी को नया अंदाज देने में असफल रही हैं। फिल्म के लिए कसौली की पृष्ठभूमि चुनी गई है। इस खूबसूरत शहर में पांच दोस्त हैं,जो कसौली काउब्वॉय के नाम से मशहूर हैं। सैम उनमें सबसे धनी और स्मार्ट है। सारे दोस्त उसका कहा मानते हैं। हिंदी फिल्मों में दोस्ती के आधार में पैसों की वजह से यह नायकत्व आसानी से मिल जाता है। चूंकि सिड भी कवि है, इसलिए उसे भी बराबर का महत्व मिला है। बा•ी तीन दोस्त से अधिक पिछलग्गु लगते हैं। बहरहाल शहर में नई लड़की नयनतारा आती है। दिलफेंक सैम उसे देखते ही फिदा हो जाता है, ल

शोमैन सुभाष घई ला रहे हैं ‘कांची’

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-अजय ब्रह्मात्मज     पांच सालों के बाद सुभाष घई ‘कांची’ निर्देशित कर रहे हैं। पिछली फिल्म ‘युवराज’ की असफलता के साथ फिल्म स्कूल ह्विस्लिंग वुडस इंटरनेशनल के विवाद में आने से क्षुब्ध सुभाष घई को फिर से निर्देशक की कुर्सी पर बैठने में वक्त लगा। कमर्शियल मसाला सिनेमा के लब्ध प्रतिष्ठ निर्देशक सुभाष घई को शोमैन भी कहा जाता है। राज कपूर के बाद यह खिताब उन्हें ही मिला है। ‘कालीचरण’  से लेकर ‘युवराज’  तक की निर्देशकीय यात्रा में सुभाष घई ने दर्शकों का विविध मनोरंजन किया है। ‘किसना’ और ‘युवराज’ असफल रहने पर उनके आलोचकों ने कहना शुरू कर दिया था कि ‘परदेस’ के बाद सुभाष घई भटके और फिर चूक गए। निश्चित ही समय बदल चुका है। सुभाष घई को मनोरंजक तेवर दिखाने के मौके नहीं मिल पा रहे हैं। उन्होंने 2008 में ही ‘ब्लैक एंड ह्वाइट’ जैसी छोटी और संवेदनशील फिल्म निर्देशित की थी। अब वह ‘कांची’ लेकर आ रहे हैं।     सुभाष घई की फिल्मों के नाम में फिल्म का कथ्य छिपा रहता है। इस मायने में वे पारंपरिक और शास्त्रीय अप्रोच ही रखते हैं। ‘कांची’ टायटल के बार में बताते समय वे उसके विरोधाभासी नेचर पर जोर देते है

मैं अनपेक्षित भंगिमाओं का अभिनेता हूं-राजकुमार राव

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-अजय ब्रह्मात्मज     हाल ही में सफल हुई  ‘क्वीन’ में राजकुमार राव ने विजय की भूमिका में दर्शकों की घृणा हासिल की। उस किरदार की यही खासियत थी। विजय ऐन शादी के मौके पर रानी को रिजेक्ट कर देता है। इस रिजेक्शन से बिसूरने के पश्चात रानी अकेली हनीमून पर निकलती है। वहां से लौटने के बाद वह रानी से क्वीन बन चुकी होती है। राजकुमार राव इन दिनों नासिक में  ‘डॉली की डोली’ की शूटिंग कर रहे हैं। शूटिंग के लिए निकलने से ठीक पहले उन्होंने झंकार से खास बातचीत की। -  ‘क्वीन’ की कामयाबी के बाद का समय कैसा चल रहा है? 0 पार्टियां चल रही हैं। कभी कंगना की बर्थडे पार्टी तो कभी  ‘क्वीन’ की सक्सेस पार्टी। दोस्तों की छोटी-मोटी पार्टियां बीच-बीच में चलती रहती है। हम सभी बहुत खुश हैं। फिल्म दर्शकों को पसंद आई। फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया। ऐसी सफलता से  ‘क्वीन’ जैसी फिल्मों में सभी का विश्वास बढ़ता है। - इस कामयाबी को आप कितना एंज्वॉय कर सके? 0 मेरे लिए हर कामयाबी क्षणिक होती है। बहुत खुश हूं। इससे जयादा नहीं सोचता हूं। अभी  ‘डॉली की डोली’ पर फोकस आ गया है। -  ‘क्वीन’ के विजय को आप कैसे देखते हैं? 0 मेरे

कंगना रनोट का पुरस्कारों से परहेज

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    नए कलाकार पुरस्कार पाने और पुरस्कार समारोहों में जाने के लिए लालायित रहते हैं। यह नेटवर्किंग और रिकॉगनिशन का मौका होता है। ‘क्वीन’ से कामयाब हुई कंगना रनोट ने अभी से कहना आरंभ कर दिया है कि वे पुरस्कार समारोहों में शामिल नहीं होना चाहतीं और न ही पुरस्कारों के लिए लालायित हैं। इंडस्ट्री में चर्चा है कि अगले साल वह अवश्य ही ‘क्वीन’ के लिए सभी पुरस्कारों में नामांकित होगी और उन्हें कुछ पुरस्कार भी मिलेंगे। पुरस्कारों के प्रति इस विरक्ति के बारे में पूछने पर कंगना का जवाब चौंकाने वाला रहा। उन्होंने पुरस्कार संबंधित गतिविधियों के व्यावहारिक पक्ष को उजागर किया। उन्होंने थोड़ा हिचकते हुए पहले कहा कि सभी पुरस्कार उपयुक्त व्यक्तियों को दिए जाते हैं, लेकिन जब बेस्ट स्माइल और बेस्ट साड़ी के पुरस्कार बंटने लगें तो सभी को खुश रखने की इस कोशिश पर संदेह होता है। दूसरे इन दिनों कम से कम 15-16 पुरस्कार समारोह होते हैं। इन समारोहों में शामिल होने के लिए पहले ढाई घंटे तो मेकअप-गेटअप करो और फिर पांच घंटे पुरस्कार समारोह में बैठो। यह एक तरह से समय और पैसे की बरबादी है। पुरस्कार समारोहों में जाने के ल