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फ़िल्म समीक्षा : कु़र्बान

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धुंधले विचार और जोशीले प्रेम की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज रेंसिल डिसिल्वा की कुर्बान मुंबइया फिल्मों के बने-बनाए ढांचे में रहते हुए आतंकवाद के मुद्दे को छूती हुई निकलती है। गहराई में नहीं उतरती। यही वजह है कि रेंसिल आतंकवाद के निर्णायक दृश्यों और प्रसंगों में ठहरते नहीं हैं। बार-बार कुर्बान की प्रेमकहानी का ख्याल करते हुए हमारी फिल्मों के स्वीकृत फार्मूले की चपेट में आ जाते हैं। आरंभ के दस-पंद्रह मिनटों के बाद ही कहानी स्पष्ट हो जाती है। रेंसिल किरदारों को स्थापित करने में ज्यादा वक्त नहीं लेते। अवंतिका और एहसान के मिलते ही जामा मस्जिद के ऊपर उड़ते कबूतर और शुक्रन अल्लाह के स्वर से जाहिर हो जाता है कि हम मुस्लिम परिवेश में प्रवेश कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों ने मुस्लिम परिवेश को प्रतीकों, स्टारों और चिह्नों में विभाजित कर रखा है। इन दिनों मुसलमान किरदार दिखते ही लगने लगता है कि उनके बहाने आतंकवाद पर बात होगी। क्या मुस्लिम किरदारों को नौकरी की चिंता नहीं रहती? क्या वे रोमांटिक नहीं होते? क्या वे पड़ोसियों से परेशान नहीं रहते? क्या वे आम सामाजिक प्राणी नहीं होते? कथित रूप से सेक्युलर हिंदी फि

दरअसल : महत्वपूर्ण फिल्म है रोड टू संगम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों मुंबई में आयोजित मामी फिल्म फेस्टिवल में अमित राय की फिल्म रोड टू संगम को दर्शकों की पसंद का अवार्ड मिला। इन दिनों ज्यादातर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दर्शकों की रुचि और पसंद को तरजीह देने के लिए आडियंस च्वॉयस अवार्ड दिया जाता है। ऐसी फिल्में दर्शकों को सरप्राइज करती हैं। सब कुछ अयाचित रहता है। पहले से न तो उस फिल्म की हवा रहती है और न ही कैटेगरी विशेष में उसकी एंट्री रहती है। रोड टू संगम सीमित बजट में बनी जरूरी फिल्म है। इसके साथ दो अमित जुड़े हैं। फिल्म के निर्माता अमित छेड़ा हैं और फिल्म के निर्देशक अमित राय हैं। यह फिल्म अमित राय ने ही लिखी है। उन्होंने एक खबर को आधार बनाया और संवेदनशील कथा गढ़ी। गांधी जी के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियां अनेक कलशों में डालकर पूरे देश में भेजी गई थीं। एक अंतराल के बाद पता चला था कि गांधी जी की अस्थियां उड़ीसा के एक बैंक के लॉकर में रखी हुई हैं। कभी किसी ने उस पर दावा नहीं किया। अमित राय की फिल्म में उसी कलश की अस्थियों को इलाहाबाद के संगम में प्रवाहित करने की घटना है। गांधी जी की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियां इलाहा

फिल्‍म समीक्षा : तुम मिले

पुनर्मिलन का पुराना फार्मूला -अजय ब्रह्मात्‍मज पहले प्राकृतिक हादसों की पृष्ठभूमि पर काफी फिल्में बनती थीं। बाढ़, सूखा, भूकंप और दुर्घटनाओं में परिवार उजड़ जाते थे, किरदार बिछुड़ जाते थे और फिर उनके पुनर्मिलन में पूरी फिल्म निकल जाती थी। परिवारों के बिछुड़ने और मिलने का कामयाब फार्मूला दशकों तक चला। कुणाल देशमुख ने पुनर्मिलन के उसी फार्मूले को 26-7 की बाढ़ की पृष्ठभूमि में रखा है। मुंबई आ रही फ्लाइट के बिजनेस क्लास में अपनी सीट पर बैठते ही अक्षय को छह साल पहले बिछड़ चुकी प्रेमिका की गंध चौंकाती है। वह इधर-उधर झांकता है तो पास की सीट पर बैठी संजना दिखाई पड़ती है। दोनों मुंबई में उतरते हैं और फिर 26 जुलाई 2005 की बारिश में अपने ठिकानों के लिए निकलते हैं। बारिश तेज होती है। अक्षय पूर्व प्रेमिका संजना के लिए फिक्रमंद होता है और उसे खोजने निकलता है। छह साल पहले की मोहब्बत के हसीन, गमगीन और नमकीन पल उसे याद आते हैं। कैसे दोनों साथ रहे। कुछ रोमांटिक पलों को जिया। पैसे और करिअर के मुद्दों पर लड़े और फिर अलग हो गए। खयालों में यादों का समंदर उफान मारता है और हकीकत में शहर लबालब हो रहा है।

भारत का पर्याय बन चुकी हैं ऐश्वर्या राय

-हरि सिंह ऐश्वर्या राय के बारे में कुछ भी नया लिख पाना मुश्किल है। जितने लिंक्स,उतनी जानकारियां। लिहाजा हमने कुछ नया और खास करने के लिए उनके बिजनेस मैनेजर हरि सिंह से बात की। वे उनके साथ मिस व‌र्ल्ड चुने जाने के पहले से हैं। हरि सिंह बता रहे हैं ऐश के बारे में॥ मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने कब उनके साथ काम करना आरंभ किया। फिर भी उनके मिस व‌र्ल्ड चुने जाने के पहले की बात है। उन्होंने मॉडलिंग शुरू कर दी थी। मिस इंडिया का फॉर्म भर चुकी थीं। आरंभिक मुलाकातों में ही मुझे लगा था कि ऐश्वर्या राय में कुछ खास है। मुझे उनकी दैवीय प्रतिभा का तभी एहसास हो गया था। आज पूरी दुनिया जिसे देख और सराह रही है, उसके लक्षण मुझे तभी दिखे थे। मॉडलिंग और फिल्मी दुनिया में शामिल होने के लिए बेताब हर लड़की में सघन आत्मविश्वास होता है, लेकिन हमलोग समझ जाते हैं कि उस आत्मविश्वास में कितना बल है। सबसे जरूरी है परिवार का सहयोग और संबल। अगर आरंभ से अभिभावक का उचित मार्गदर्शन मिले और उनका अपनी बेटी पर भरोसा हो, तो कामयाबी की डगर आसान हो जाती है। ऐश के साथ यही हुआ। उन्हें अपने परिवार का पूरा समर्थन मिला। मां-बाप ने उ

दरअसल: फिल्म की रिलीज और रोमांस की खबरें

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-अजय ब्रह्मात्मज इन दिनों हर फिल्म की रिलीज के पंद्रह-बीस दिन पहले फिल्म के मुख्य कलाकारों के रोमांस की खबरें अखबारों में छपने और चैनलों में दिखने लगती हैं। पिछले दिनों रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ की अजब प्रेम की गजब कहानी आई। रिलीज के पहले खबरें दिखने लगीं कि रणबीर-कैट्रीना की केमिस्ट्री गजब की है। वास्तव में दोनों के बीच रोमांस चल रहा है, इसलिए उनके प्रेमी खिन्न हैं। दोनों के संबंध अपने-अपने पे्रमियों से खत्म हो चुके हैं। अखबार और चैनलों पर यही खबर थी। अगर फिल्मों और उसके प्रचार के इतिहास से लोग वाकिफ हों या थोड़े भी सचेत ढंग से इन खबरों पर नजर रखते हों, तो उन्हें याद होगा कि यह सिलसिला पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के समय से चला आ रहा है। एक प्रचारक ने नियोजित तरीके से हर फिल्म की हीरोइन के साथ राजेश खन्ना के प्यार की किस्से बनाए। कभी फिल्म की युगल तस्वीरें तो कभी किसी पार्टी की अंतरंग तस्वीरों से उसने इन खबरों को पुख्ता किया। राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्मों को ऐसे प्रचार से फायदा हुआ। बाद में इस तरकीब को दूसरों ने अपनाया और कमोबेश उनकी फिल्मों को भी लाभ हुआ। मीडिया विस्फोट और समाचार चै

हिंदी टाकीज द्वितीय : आय लव यू, आय लव यू नॉट, आय लव यू, आय लव यू नॉट......-स्‍वप्निल कान्‍त दीक्षित

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हिंदी टाकीज द्वितीय-1 हिंदी टाकीज की 50 कडि़यों का सफर पूरा हो चुका है। द्विजीय सीरिज की शुरूआत हो रही है। उम्‍मीद है कि आप का सहयोग और योगदान मिलता रहेगा। द्वितीय सीरिज की पहली कड़ी स्‍वप्‍न‍िल ने लिखी । आप इनकी टाटा जागृति यात्रा अभियान में शामिल हो सकते हैं। स्वप्निल कान्त दीक्षित टाटा जागृति यात्रा के एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। आई. आई. टी. खडगपुर से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण (जी हाँ, उत्तीर्ण) करने के बाद दो साल कोर्पोरेट सेक्टर में कार्यरत रहने के बाद देश के युवाओं को उद्यमशीलता के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पिछले दो साल से टाटा जागृति यात्रा आयोजित करते आ रहे हैं। उनका बचपन लखनऊ, हरदोई, बरेली, जैसे शहरों और खुदागंज (उप्र) बहादुरपुर (उप्र), घोडाखाल (उत्तराखण्ड) इत्यादि गाँवों में बीता है। ये थियेटर, स्थापथ्य कला, सांख्यिकि, संगीत और लेखन-पठन में रुचि रखते हैं। बँगला नं ४, बरेली कैण्ट, १९८५ से ले कर १९८९ के बीच के किसी साल की सर्दी की शाम ५ बजे बँगले के एक अहाते में निवाड से बुनी खटिया पर, और आसपास जुटाये गये मूढों पर करीब दस लोग बैठे हैं - नानी, नानी के भाई विनोद नाना

दरअसल :फेस्टिवल सर्किट में नहीं आते हिंदी प्रदेश

-अजय ब्रह्मात्‍मज कुछ समय पहले इंदौर में एक फिल्म फेस्टिवल हुआ था। वैसे ही गोरखपुर और लखनऊ में भी फेस्टिवल के आयोजन होते हैं। भोपाल से भी खबर आई थी। अभी दिसंबर में हरियाणा के यमुनानगर में फेस्टिवल होगा। ये सारे फेस्टिवल स्थानीय स्तर पर सीमित बजट और उससे भी सीमित फिल्मों को लेकर आयोजित किए जाते हैं। स्थानीय दर्शक, फिल्म प्रेमी और मीडिया के छात्रों के उत्साह का आकलन ऐसे फेस्टिवल में जाकर ही किया जा सकता है। फिर भी हिंदी प्रदेशों के फेस्टिवल राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रहे फेस्टिवल सर्किट में शामिल नहीं किए जाते। अक्टूबर में दिल्ली में ओसियान फेस्टिवल हुआ। गुलजार, विशाल भारद्वाज, इम्तियाज अली और अनुराग कश्यप की फिल्मों के विशेष उल्लेख के साथ उनकी सराहना की गई। साथ में विदेशों से लाई गई फिल्में भी दिखाई गई। निश्चित ही दिल्ली के फिल्म प्रेमियों को लाभ हुआ होगा। अक्टूबर के अंतिम हफ्ते में मुंबई में मामी फिल्म फेस्टिवल हुआ। एक बड़ी कंपनी ने इसे प्रायोजित किया। पुरस्कारों की रकम बढ़ा दी गई। ऐसा माना जा रहा है कि अगर उक्त कंपनी का संरक्षण मिलता रहा, तो अपनी पुरस्कार राशि की वजह से मामी फेस्टिवल

फिल्‍म समीक्षा : अजब प्रेम की गजब कहानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज यह फिल्म प्रेम यानी रणबीर कपूर की है। वह जेनी का पे्रमी है। जेनी उसे बहुत पसंद करती है। आखिरकार उसे महसूस होता है कि उसका असली प्रेमी तो प्रेम ही है। वह उसके साथ घर बसाती है। फिल्म को देखते हुए साफ तौर पर लगता है कि राजकुमार संतोषी ने रणबीर और कैटरीना के चुनाव के बाद फिल्म की कथा बुनी है, क्योंकि हर दृश्य की शुरुआत और समाप्ति दोनों में से किसी एक कलाकार से ही होती है। इसे निर्देशक की सीमा कह सकते हैं या हिंदी फिल्मों के बदलते परिदृश्य में स्टारों का केंद्रीय महत्व मान सकते हैं। फिल्म का उद्देश्य हंसाना है, इसलिए शुरू से आखिर तक ऐसे दृश्यों की परिकल्पना की गई है जो दर्शकों को गुदगुदा सके। यह एक सामान्य कामेडी फिल्म है, और यह कहा जा सकता है कि राजकुमार संतोषी की ही एक अन्य फिल्म अंदाज अपना अपना से इसकी कामेडी कमजोर है। यह फिल्म मुख्य तौर पर रणबीर कपूर पर निर्भर है हालांकि वह दर्शकों को निराश भी नहीं करते। प्रेम के किरदार में उनके अभिनय का आत्मविश्वास निखार पर दिखाई देता है। वह हर अंदाज में प्यारे लगते हैं, क्योंकि उन्होंने पूरे मनोयोग और विश्वास से अपने किरदार को

फ़िल्म समीक्षा : jail

मधुर भंडारकर की फिल्मों की अलग तरह की खास शैली है। वह अपनी फिल्मों में सामाजिक जीवन में घटित हो रही घटनाओं में से ही किसी विषय को चुनते हैं। उसमें अपने नायक को स्थापित करने के साथ वे उसके इर्द-गिर्द किरदारों को गढ़ते हैं। इसके बाद उस क्षेत्र विशेष की सुनी-समझी सूचनाओं के आधार पर कहानी बुनते हैं। इस लिहाज से उनकी फिल्मों में जीवन के यथार्थ को बेहद नजदीकी से महसूस किया जा सकता है। चांदनी बार से लेकर फैशन तक मधुर भंडारकर ने इस विशेष शैली में सफलता हासिल की है। जेल भी उसी शैली की फिल्म है जिसमें उन्होंने नए आयामों को छुआ है। फिल्म की शुरुआत के चंद सामान्य दृश्यों के बाद फिल्म का नायक पराग दीक्षित जेल पहुंच जाता है। फिर अंतिम कुछ दृश्यों में वह जेल के बाहर दिखता है। शक के आधार पर पुलिस कस्टडी में बंद पराग दीक्षित को दो सालों के बाद सजा मिलती है। सजा मिलने के बाद आजादी की उसकी उम्मीद टूट जाती है और वह बाहर निकलने के लिए शार्टकट अपनाता है। वह जेल से निकलने की कोशिश करता है, लेकिन वार्डर नवाब की नसीहत और भरोसे के दबाव में वह फिर से जेल लौट आता है। आखिरकार एक अच्छा वकील उसे सजा से बरी करवाता

फ़िल्म समीक्षा : जेल

***1/2 उदास सच की तल्खी -अजय ब्रह्मात्मज मधुर भंडारकर की फिल्मों की अलग तरह की खास शैली है। वह अपनी फिल्मों में सामाजिक जीवन में घटित हो रही घटनाओं में से ही किसी विषय को चुनते हैं। उसमें अपने नायक को स्थापित करने के साथ वे उसके इर्द-गिर्द किरदारों को गढ़ते हैं। इसके बाद उस क्षेत्र विशेष की सुनी-समझी सूचनाओं के आधार पर कहानी बुनते हैं। इस लिहाज से उनकी फिल्मों में जीवन के यथार्थ को बेहद नजदीकी से महसूस किया जा सकता है। चांदनी बार से लेकर फैशन तक मधुर भंडारकर ने इस विशेष शैली में सफलता हासिल की है। जेल भी उसी शैली की फिल्म है जिसमें उन्होंने नए आयामों को छुआ है। फिल्म की शुरुआत के चंद सामान्य दृश्यों के बाद फिल्म का नायक पराग दीक्षित जेल पहुंच जाता है। फिर अंतिम कुछ दृश्यों में वह जेल के बाहर दिखता है। शक के आधार पर पुलिस कस्टडी में बंद पराग दीक्षित को दो सालों के बाद सजा मिलती है। सजा मिलने के बाद आजादी की उसकी उम्मीद टूट जाती है और वह बाहर निकलने के लिए शार्टकट अपनाता है। वह जेल से निकलने की कोशिश करता है, लेकिन वार्डर नवाब की नसीहत और भरोसे के दबाव में वह फिर से जेल लौट आता है। आखिरक

फिल्‍म समीक्षा: लंदन ड्रीम्‍स

ईर्ष्‍या और दोस्‍ती के बीच -अजय ब्रह्मात्‍मज विपुल शाह ने पंजाब और लंदन को एक बार फिर जोड़ा है। इस बार भी पंजाब का एक सीधा-सादा मुंडा लंदन पहुंचता है और वहां सभी का चहेता बन जाता है। अनजाने में वह अपने दोस्त के लिए ही बाधा बन जाता है। ईष्र्या जन्म लेती है और फिर एक दोस्त अपनी आकांक्षाओं के लिए दूसरे का दुश्मन बन जाता है। अर्जुन और मन्नू बचपन के दोस्त हैं। अर्जुन मेहनती और लगनशील है। वह संगीत की दुनिया में अपना नाम रोशन करना चाहता है। परिवार में हुए एक हादसे की वजह से कोई नहीं चाहता कि अर्जुन संगीत का अभ्यास करे। दूसरी तरफ मन्नू हुनरमंद है। उसमें जन्मजात प्रतिभा है। बड़ा होने पर अर्जुन लंदन पहुंच जाता है और मन्नू पंजाब में ही रह जाता है। वह स्थानीय राजा-रानी बैंड में म्यूजिसियन बन गया है। उधर अर्जुन लंदन में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। उसने अपने बैंड का नाम लंदन ड्रीम्स रखा है। लंबे समय बाद दोनों दोस्त मिलते हैं। मन्नू भी लंदन पहुंचता है। वह अपने बेपरवाह अंदाज से सभी का प्रिय बन जाता है। यहां तक कि वह दोस्त की प्रेमिका का भी दिल जीत लेता है। यहीं से अर्जुन के मन में कसक पैदा होती है। वह

फिल्‍म समीक्षा: अलादीन

फैंटैसी से सजी है अलादीन -अजय ब्रह्मात्‍मज अलादीन और उसके जादुई चिराग का जिन्न हिंदी फिल्मों में आए तो हिंदी फिल्मों की सबसे बड़ी समस्या प्यार में उलझ गए। लड़के और लड़की का मिलन हिंदी फिल्मों की ऐसी समस्या है, जो हजारों फिल्मों के बाद भी जस की तस बनी हुई है। हर फिल्म में यह समस्या नए सिरे से शुरू होती है। अलादीन को जिन्न मिलता है, लेकिन अलादीन की तीन इच्छाएं प्रेम तक ही सीमित हैं- जैसमीन, जैसमीन और जैसमीन। अलादीन को जैसमीन से मिलाने में ही जिन्न का वक्त निकलता है। बीच में थोड़ी देर के लिए खलनायक रिंग मास्टर आता है। सुजॉय घोष ने अलादीन और उसके जिन्न को लेकर आधुनिक फैंटेसी गढ़ी है। इस फैंटैसी में स्पेशल इफेक्ट का सुंदर और उचित उपयोग किया गया है। काल्पनिक शहर ख्वाहिश और उसका विश्वविद्यालय भव्य हैं। इस शहर में ऐसा लगता है कि मुख्य रूप से स्टूडेंट ही रहते हैं, क्योंकि शहर की गलियों में दूसरे चरित्र नहीं दिखाई पड़ते। हां, डांस सीन हो, पार्टी हो या नाच-गाना हो तो अचानक सैकड़ों जन आ जाते हैं। फैंटेसी फिल्म है, इसलिए कुछ भी संभव है। ऊपर से हिंदी फिल्म की फैंटेसी है तो लेखक-निर्देशको हर तरह की छ

दरअसल :हरश्चिंद्रांची फैक्‍ट्री और आस्‍कर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हरिश्चंद्रांची फैक्ट्री और ऑस्कर परेश मोकाशी की मराठी फिल्म हरिश्चंद्रांची फैक्ट्री इस साल भारत की तरफ से ऑस्कर में विदेशी भाषा की श्रेष्ठ फिल्म की कैटगरी में भेजी गई है। हर साल एक फिल्म भेजी जाती है और हम चार महीने तक टकटकी लगाए रहते हैं कि शायद इस बार भारत को अवार्ड मिल जाए।हाल-फिलहाल में केवल आशुतोष गोवारीकर की लगान नामांकन सूची तक पहुंच पाई थी। तब से हर बार लगता है कि इस साल पुरस्कार मिलेगा। एंट्री को लेकर विवाद भी हुए। ऊपरी तौर पर ऑस्कर की परवाह नहीं करने वाले लोग भी इस चिंता और जानकारी में उलझे रहते हैं कि ऑस्कर में क्या हो रहा है? मानें या न मानें, ऑस्कर फिल्मों को दिया जाने वाला दुनिया का श्रेष्ठ पुरस्कार हो गया है। ऑस्कर में भारत की मौजूदगी ना के बराबर है। पिछले साल स्लमडॉग मिलेनियर की वजह से कुछ पुरस्कार भारतीय प्रतिभाओं के हाथ लगे, लेकिन वह फिल्म भारतीय नहीं थी। मजा और गर्व तो तब हो, ज

खान-तिकड़ी का जलवा शबाब पर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज आमिर, शाहरुख और सलमान ने अपनी पिछली फिल्मों से साबित कर दिया है कि वे लोकप्रियता के सिंहासन पर टिके रहेंगे। खान-तिकड़ी की फिल्मों की समानता और कामयाबी पर एक नजर. हम सभी उन्हें खान-तिकड़ी के नाम से जानते हैं। पिछले 15-20 सालों से वे हिंदी फिल्मों में सक्रिय हैं और उन्होंने कामयाबी और लोकप्रियता की नई मिसाल कायम की है। संयोग ही है कि तीनों का जन्म 1965 में हुआ। खान-तिकड़ी में आमिर खान सबसे बड़े हैं। उनका जन्म 14 मार्च को हुआ। शाहरुख खान 2 नवंबर को पैदा हुए और सलमान खान 27 दिसंबर को..तीनों ने आगे-पीछे फिल्मों में शुरुआत की। इनमें आमिर और सलमान फिल्म परिवारों से हैं। शाहरुख दिल्ली से आए। उन्होंने टीवी सीरियल से शुरुआत की। आज तीनों ही फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों के हीरो की औसत उम्र 18-25 लेकर चलें तो तीनों लगभग बीस साल बड़े हैं, लेकिन तीनों ही किसी यंग एक्टर से उन्नीस नहीं दिख रहे हैं। उनकी कामयाबी की वजह खोजने चलें, तो सबसे पहले उनकी फिल्मों की सफलता और स्वीकृति पर नजर जाती है। चालीस से अधिक उम्र के तीनों खानों ने मिल कर फिल्म इंडस

दरअसल: फिल्म की खसियत बने लुक और स्टाइल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में रिलीज हुई एसिड फैक्ट्री के मुख्य किरदारों की जबरदस्त स्टाइलिंग की गई थी। डैनी डेंजोग्पा, डिनो मोरिया, दीया मिर्जा, फरदीन खान, मनोज बाजपेयी, इरफान खान और आफताब शिवदासानी के लुक और स्टाइल पर मेहनत की गई थी। आपने अगर फिल्म देखी हो, तो गौर किया होगा कि कैमरा उनके कपड़ों, जूतों, बालों और एक्सेसरीज पर बार-बार रुक रहा था। निर्देशक और कैमरामैन उन्हें रेखांकित करना चाह रहे थे। एसिड फैक्ट्री रिलीज होने के पहले से फिल्म के स्टार रैंप पर दिख रहे थे। डेढ़ साल पहले बैंकॉक में आयोजित आईफा अवार्ड समारोह में पहली बार फिल्म के कुछ किरदार रैंप पर चले थे। तब निर्देशक सुपर्ण वर्मा और निर्माता संजय गुप्ता की चाल में भी दर्प दिखा था। लेकिन, फिल्म का क्या हुआ? सारी स्टाइलिंग और उसके रेखांकन एवं प्रचार के बावजूद एसिड फैक्ट्री औंधे मुंह गिरी है, क्योंकि किरदारों पर ध्यान नहीं दिया गया। लुक और स्टाइल पर इन दिनों ज्यादा जोर दिया जाने लगा है और उन्हें प्रचारित भी किया जाता है। फिल्म की खासियत के तौर पर उन्हें गिनाया जाता है। इन दिनों फिल्म के लेखकों और अन्य तकनीशियनों से ज

हिंदी टाकीज: मायके से फिल्‍में देख कर ही लौटती हूं-मीना श्रीवास्‍तव

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हिंदी टाकीज-50 चवन्‍नी ने हिंदी टाकीज की यात्रा आरंभ की थी तो सोचा था कि लगे हाथ 50 कडि़यां पूरी हो जाएंगी। ऐसा नहीं हो सका। थोड़ा वक्‍त लगा,लेकिन आज 50 वें पड़ाव पर आ गए। यह सिलसिला चलता रहेगा। दोस्‍तों की सलाह से योजना बन रही है कि हिंदी टाकीज के संस्‍मरणों को पुस्‍तक का रूप दिया जाए। आप क्‍या सलाह देते हैं 50 वीं कड़ी में हैं मीना श्रीवास्‍तव। उनका यह संस्‍मरण कुछ नयी तस्‍वीरें दिखाता है। उनका परिचय है... मीना ग्राम माधवपुर, ज़िला मोतिहारी, बिहार के एक संभ्रांत परिवार की अनुज पुत्री हैं - शादी होने तक गाँव-घर में प्यार से 'मेमसाहब' नाम से पुकारी जाने जाने वाली मीना, गाँव की पहली महिला स्नातक भी थी। विवाह, वो भी एक लेखक से, और वो भी पसंदीदा पत्रिका सारिका मे छपने वाले अपने चहेते लेखक से, होने के उपरांत पटना आना हुआ - पर क्योंकि मामला मेमसाहब का था, भारत सरकार ने उनके विवाह के उपलक्ष्य में गाँधी सेतु बनवा डाला और मीना जी गाँधी सेतु पार कर के जो पटना आईं, तो अबतक बस वहीं हैं - २५ साल की पारी। जोक्स अपार्ट, मीनाजी बहुप्रतिभासंपन्न विदुषी और हिन्दी साहित्य की सजग