देव डी की पारो पंजाब की है और माही भी

-अजय ब्रह्मात्मज

देवदास की पार्वती देव डी में परमिंदर बन गयी है। वह बंगाल के गांव से निकलकर पंजाब में आ गयी है। पंजाब आने के साथ ही उसमें हरे-भरे और खुशहाल प्रदेश की मस्ती आ गयी है। उसके व्यक्तित्व में ज्यादा बदलाव नहीं आया है, लेकिन समय बदल जाने के कारण परमिंदर अब ट्रैक्टर भी चलाने लगी।
संयोग से अभिनय में आ गयी माही ने अब एक्टिंग को ही अपना करियर बना लिया है। देव डी के पहले उन्होंने दो पंजाबी फिल्में कर ली हैं। उनकी ताजा पंजाबी फिल्म चक दे फट्टे अच्छा बिजनेस कर रही है।
एक्टिंग के खयाल से मुंबई पहुंची माही अपने दोस्त दिब्येन्दु भट्टाचार्य के बेटे शौर्य के जन्मदिन की पार्टी में बेपरवाह डांस कर रही थीं? संयोग से उनकी अल्हड़ मस्ती अनुराग कश्यप ने देखी और तत्काल अपनी फिल्म के लिए पसंद कर लिया। उन्हें अपनी पारो मिल गयी थी। माही को एकबारगी यकीन नहीं हुआ। वह कहती हैं, मैं तब तक अनुराग के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। मैंने अपने दोस्तों से जानकारी ली। सभी ने कहा कि यह बेहतरीन लांचिंग है। ना मत कर देना।
माही ने सुचित्रा सेन वाली देवदास पहले देखी थी। दिलीप कुमार की फिल्में उन्हें पसंद हैं, इसलिए देख ली थी? तब कहां पता था कि भविष्य में पारो का रोल निभाना पड़ सकता है। फिल्म शुरू होने के बाद ऐश्वर्या राय की देवदास भी देख ली। माही कहती हैं, अनुराग की फिल्म की पारो उन फिल्मों से अलग है। वे थोड़ी सहमी और माता-पिता के अनुशासन में रहती थीं। यह पारो जिद्दी है। इस सदी की लड़की है पारो। उनकी तरह यह पारो भी अपने देव को प्यार करती है। उसके प्रेम में पैशन है, लेकिन मर-मिटने वाली बात नहीं है। वह खुद को समझा लेती है कि जिंदगी में एक रास्ता बंद हो गया तो दूसरा रास्ता भी है। पहले घबराहट महसूस होती है कि पता नहीं कर पाऊंगी या नहीं कर पाऊंगी? इस फिल्म में पहले दिन ही मैंने लगभग बारह घंटे शूटिंग की। हर तरह के एक्सप्रेशन दिए। अनुराग ने दिन भर कुछ नहीं बोला। बस शूट करते रहे। पैकअप के बाद उन्होंने कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया। डायरेक्टर के मुंह से ये पांच शब्द सुनकर तसल्ली हुई और कंफीडेंस बढ़ गया। लगा कि अब मैं कर सकती हूं।
डांस और एक्टिंग के शौक के बारे में बात चलने पर माही कहती हैं, मेरी मां को एक पंजाबी फिल्म ऑफर हुई थी। तब वह फिल्मों में नहीं आ सकी थीं। मां की इच्छा थी कि मैं कुछ करूं। मां ने मुझे बचपन से ही डांस की ट्रेनिंग दिलवायी। रही बात एक्टिंग की तो एमए में एडमिशन के वक्त दोस्तों की सलाह पर मैंने अंग्रेजी और सोशियोलॉजी के साथ थिएटर का भी फार्म भर दिया था। संयोग से थिएटर में पहले एडमिशन मिल गया। हफ्ते-दस दिन क्लास भी हो गयी तो मुझे लगा कि यह अच्छी पढ़ाई है। मेरा मन लग गया। चंडीगढ़ में पढ़ाई कर रही थी तभी फिल्म के ऑफर मिलने लगे थे। मैंने मनमोहन सिंह की पंजाबी फिल्म की थी। उन दिनों ही हवाएं में एक छोटा रोल किया था।
माही अपने प्रोफेसर मोहन महर्षि की कृतज्ञ हैं। उनका नाम आदर के साथ लेते हुए कहती हैं, मोहन महर्षि ने मुझे अहसास कराया कि तू कर सकती है। उन्होंने खूब प्रोत्साहित किया। मेरे दोस्तों ने हमेशा बढ़ावा दिया। फिल्म शुरू होने पर अनुराग ने भरोसा किया और मुझ में विश्वास दिखाया। मैं थोड़ी नर्वस एक्टर हूं, लेकिन कैमरे के सामने ठीक हो जाती हूं।
इस फिल्म के नायक अभय देओल हैं। अभय के साथ ही माही के दृश्य हैं। दोनों ने लंबा वक्त साथ बिताया। अभय के बारे में माही ऊंचे खयाल रखती हैं। वह बेहिचक बताती हैं, जब अनुराग ने अभय को मेरे बारे में बताया और मिलवाया था तो अभय ने तुरंत सहमति दे दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि बाहर से आई लड़कियों की कामयाबी देखकर वे खुश होते हैं। उन्होंने मुझे पूरा समर्थन और सहयोग दिया। अभय अलहदा एक्टर और अच्छे इंसान हैं।
अपने निर्देशक अनुराग कश्यप के बारे में माही हंसते हुए बताती हैं, सच कहूं तो मैं यहां आयी थी तो अपने सर्किल में अनुराग-अनुराग सुना करती थी। मैं तो डायरेक्टर के तौर पर यश चोपड़ा और सुभाष घई को जानती थी। मुझे दिब्येन्दु ने ही उनके बारे में विस्तार से बताया। अपने अनुभव से कह सकती हूं कि वे बिल्कुल बच्चों की तरह रिएक्ट करते हैं। वैसे ही निश्छल हैं। खुश होने पर उसे जाहिर करते हैं। थोड़े मूडी हैं।
पारो का किरदार निभा कर इस कड़ी में आने की बात कहने पर माही झेंपने लगती हैं। अपनी घबराहट और खुशी छिपा नहीं पातीं। वह कहती हैं, वे सब बहुत खूबसूरत हैं। मैं तो उनके मुकाबले कुछ भी नहीं हूं। बस यही एहसास मुझे जोश देता है कि उनके निभाए किरदार को निभाने का मौका मुझे मिला। मैं दर्शकों से यही कहूंगी कि वे मेरी फिल्म के रेफरेंस में ही मुझे देखें।

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