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तस्वीरों में ' गोल '

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निर्माता-रोनी स्क्रूवाला निर्देशक-विवेक अग्निहोत्री कलाकार-जॉन अब्राहम,बिपाशा बासु,दिब्येंदु भट्टाचार्य,अरशद वारसी

सल।म सलीम बाबा!

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नॉर्थ कोलकाता में रहते हैं सलीम बाबा. दस साल की उम्र से वे सिनेमाघरों के बाहर फेंके फिल्मों के निगेटिव जमा कर उन्हें चिपकाते हैं और फिर चंद मिनटों की फिल्म टुकड़ियों की तरह अपने अ।सपास के बच्चों को दिखाते हैं. यह उनका पेशा है. यही उनकी अ।जीविका है. ऐसे ही फिल्में दिखाकर वे पांच बच्चों के अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. चवन्नी को पता चला कि टिम स्टर्नबर्ग ने उन पर 14 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'सलीम बाबा' बनायी है. यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म ऑस्कर भेजी गयी थी. खुशी की बात है कि 'सलीम बाबा' अंतिम अ।ठ की सूची में अ। गयी है. अगर ज्यूरी को पसंद अ।ई तो यह नामांकित भी होगी. 'सलीम बाबा' का पूरा नाम सलीम मोहम्मद है. उन्हे अपने पिता से यह प्रोजेक्टर विरासत में मिला है. इसे हाथ से चलाया जाता है. सलीम बाबा की फिल्में देखने बच्चे जमा होते हैं. सिनेमाघरों में जाकर फिल्में देख पाने में असमर्थ बच्चे अपने चहेते स्टारों की चंद झलकियां या फिल्म टुकड़ियां देख कर ही मस्त हो जाते हैं. सलीम बाबा के पास जो हस्तचालित प्रोजेक्टर है, उस पर भी विदेशियों की नजर है. ऐसे प्रोजेक्टर दुनिया

शुक्रवार,१२ अक्टूबर, 2007

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लो आ गया सुहाना शुक्रवार.आज प्रियदर्शन की फिल्म भूल भुलैया और प्रदीप सरकार की लागा चुनरी में दाग रिलीज हो रही हैं.प्रियदर्शन की फिल्म पहले तमिल और मलयालम में बन चुकी है और चवन्नी को किसी ने बताया कि दोनों भाषाओं में यह सफल भी रही थी.देखना है कि हिंदी में क्या हश्र होता है.चवन्नी को तो अजय ब्रह्मात्मज की समीक्षा का इंतज़ार है.वैसे इस बार प्रियदर्शन ने अक्षय कुमार,परेश रावल और राजपाल जैसे पालतू कलाकारों के साथ ही शाइनी आहूजा और विद्य बालन को जोडा है. विद्य बालन इधर आ गयीं और उधर अपने पहले निर्देशक प्रदीप सरकार की फिल्म लगा चुनरी में दाग छोड दी.इस फिल्म में दादा ने उन्हें कोंकणा का रोल दिया था.लगा चुनरी में दाग बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी पारिवारिक फिल्म है.दो बहने हैं.बड़ी को परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती है ताकि छोटी पढ़ाई कर सके.बड़ी ज़िन्दगी की अँधेरी गुफाओं में समां जाती है और फिर जब एक बार छोटी को उसकी सच्चाई कि जानकारी मिलती है तो उसे अपना वजूद सालने लगता है. दादा प्रदीप सरकार से उम्मीद है कि वे एक पारिवारिक फिल्म दिखायेंगे. इस हफ्ते शाहरुख़ खान ओम शांति ओम की टीम के साथ रैंप पर उ

रैंप पर क्यों चलते हैं सितारे ?

माफ करें, चवन्नी नहीं समझ पाता कि किसी फिल्म की रिलीज के पहले उस फिल्म के सितारों के रैंप पर चलने से क्या फायदा होता है? क्या फिल्म के दर्शक बढ़ जाते है अगर ऐसा होता तो 'सलाम-ए-इश्क' का सल।म दर्शकों ने कुबूल किया होता. अभी हाल में शाहरुख खान रैंप पर दिखे. वे अकेले नहीं थे. उनकी पूरी यूनिट अ।ई थी और फिर से माफ करें ... अपने हाव, भाव और फोटो के लिए दिए गए अंदाज से साफ लगा कि वे अ।ठवें दशक के कलाकारों के मैनरिज्म का मजाक उड़ा रहे हैं. फराह खान और शाहरुख खान को लगता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का अ।ठवां दशक ही बॉलीवुड है. उनकी यह समझ विदेश की यात्राओं और विदेशियों की सोच से बनी है. अगर हिंदी फिल्मों के अ।म दर्शक से बॉलीवुड का मतलब पूछें तो शायद वह बता ही नहीं पाए. चवन्नी को बॉलीवुड शब्द पसंद नहीं है. इससे एक तरफ हीन भावना और दूसरी तरफ हेय भावना प्रकट होती है. शाहरुख खान और फराह खान 'ओम शांति ओम' को बेचने के तमाम हथकंडे अपना रहे हैं. इसमें कोई बुराई नहीं है. फेरीवाला भी अ।वाज देता है तभी हम समझ पाते हैं कि वह गली में अ। गया है. मछली बाजार है फिल्म इंडस्ट्री ... न

चालू हो गया आमिर खान का वेब साईट

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चवन्नी ने कल आप को एक दुख भरी खबर के साथ ही सुखद सूचना दी थी.उस सूचना के अनुसार आज ठीक १२ बज कर १ मिनट पर आमिर खान ने अपना वेब साईट आरम्भ कर दिया.यह वेब साईट अन्य फिल्म स्टारों की तरह केवल दिखाने या लुभाने के लिए नहीं है.आप अगर पंजीकरण कर लेते है तो आप आमिर खान से बात कर सकते हैं.आमिर ने वादा किय है कि वे बार-बार यहाँ आएंगे और सभी से बातचीत करेंगे.आमिर बहस के लिए भी तैयार हैं. चवन्नी के कुछ पाठकों को लग सकता है कि ऐसा क्या है कि चवन्नी हमेशा आमिर की ही बातें करता है.चवन्नी को लगता है कि अगर कोई स्तर अपने प्रशंसकों से बहस और बातचीत के लिए तैयार है तो उसकी जानकारी हिंदी के प्रशंसकों और पाठकों को भी मिलनी चाहिऐ.अब आप ही कहो कि आप ऐसा मौका गंवाना चाहेंगे. आमिर खान के वेक साईट पर फिलहाल चैट और ब्लॉग के लिंक शुरू किये गए हैं.आज रात में ९ से १० के बीच आमिर चैट रूम में रहेंगे.सोच क्या रहे हैं ,लौग कीजिये अपना सवाल रखिये .अपनी जिज्ञाशाएं शांत कीजिये। आमिर खान के वेक साईट का पता है... http://www.aamirkhan.com/

बंद हुआ आमिर खान का ब्लॉग

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चवन्नी बडे दुख के साथ आप को बता रह है कि आमिर खान ने अपने ब्लॉग को बंद करने का फैसला ले लिया है.उनहोंने अपने आख़िरी ख़त में लिखा है कि उन्हें भी इस बात के बेहद तकलीफ है,क्यों कि ब्लॉग के जरिये कई नए दोस्त बने थे और कुछ नयी बातें सामने आयी थीं.आमिर ने लिखा है कि एक तो उनके पास समय नही है और फिर ब्लॉग का बैंडविड्थ भी नही मिल पायेगा.हम सभी जानते हैं कि काम के पक्के आमिर खान एक बार में एक ही काम करते हैं और पूरे मनोयोग से करते हैं.जैसे अगर वह आप से मिल राहे हैं तो उनका पूरा ध्यान सिर्फ आप पर रहता है. इस दुख भरी खबर से चवन्नी भी काफी दुःखी हुआ था...आमिर थोड़े मजाकिया मिजाज के आदमी हैं.उनहोंने ब्लॉग पर लिखे अपने आख़िरी ख़त में एक लम्बा स्पेस देने के बाद बताया है कि अब उनका ब्लॉग नयी जगह पर जा रह है और उसका नया पता होगा.यहाँ पर और भी कई खूबियां रहेंगी.आमिर अपना वेब साईट लेकर आ राहे हैं.उस वेब साईट का चैट रूम चौबीस घंटे खुला रहेगा.वहाँ आमिर कभी बता कर तो कभ बिना बताये आएंगे और सभी से बातें करेंगे.अगर कोई दिलचस्प बात कर रह होगा तो वे उसके साथ चैट रूम में अलग से बात करेंगे। http://www.aamirkhan.

जोधा अकबर की पहली झलक

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चवन्नी को याद नही कि कभी किसी निर्माता या निर्देशक ने अपनी फिल्म के ट्रेलर बेखने के लिए मीडिया को औपचारिक निमंत्रण दिया हो.आशुतोष गोवारिकर ने १० तारीख को ट्रेलर देखने का निमंत्रण भेजा है.जोधा अकबर में ऐश्वर्या राय जोधा की भूमिका निभा रही हैं और अकबर बने हैं हृतिक रोशन .यह फिल्म पहले १२ अक्तूबर को रिलीज होने वाली थी.अब यह अगले साल आएगी.१० तारीख को पहली झलक देखने के बाद चवन्नी आप को ट्रेलर के बारे में बतायेगा.

शुक्रवार, 5 अक्तूबर, 2007

चवन्नी की सलाह मानें तो इस हफ्ते किसी नयी फिल्म को देखने का जोखिम न उठाएं. 'इट्स ब्रेकिंग न्यूज', 'गो', 'छोड़ो न यार'और '50 लाख' फिल्में रिलीज हुई है. इनमें से '50 लाख' चवन्नी ने नहीं देखी है, इसलिए उसके बारे में कुछ भी कहना गलत होगा. बाकी तीन औसत से कमजोर फिल्में हैं. रामू कैंप की 'गो' का तो गाना ही है . बैंड बजा दे. लगता है राम गोपाल वर्मा अपना और अपनी टीम का बैंड बजा कर ही रहेंगे. चवन्नी निराश है, लेकिन हताश नहीं है. चवन्नी को उम्मीद है कि रामू 'सरकार राज' से लौटेंगे. 'इट्स ब्रेकिंग न्यूज' तो अ।पके धैर्य को ब्रेक करने वाली फिल्म है. कोयल पुरी को अभिनय की अच्छी और पूरी ट्रेनिंग लेनी चाहिए और अपना हिंदी उच्चारण भी दुरूस्त करना चाहिए. 'छोड़ो न यार' का शीर्षक ही बता देता है कि उसे दर्शकों से क्या उम्मीद है. इस हफ्ते सुनील दत्त और नरगिस के जीवन पर लिखी नम्रता एवं प्रिया दत्त की लिखी किताब विमोचित हुई. बांद्रा के एक पंचसितारा होटल में अ।योजित इस कार्यक्रम में दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, महेश भट्ट, संजय खान, सायरा बानो

बिंदास बिपाशा बसु

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बिपाशा बसु से चवन्नी की चंद मुलाकातें हैं. सब से पहले एतबार के सेट पर मुलाकात हुई थी और खूब लंबी बात हुई थी.बिपाशा की कही बातें चवन्नी अभी तक नहीं भूल सका है.अरे भूल गया पहली मुलाकात तो बांद्रा के एक फ्लैट में हुई थी,जहां वह पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी.फिल्मों में आए अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था.बांद्रा में महबूब स्टूडियो की पीछे की गलियों में एक छोटे फ्लैट में उसने डेरा डाला था.तब उसकी अजनबी पूरी हो गयी थी.करीना कपूर ने कुछ उल्टा-सीधा बोल दिया था. अपनी करीना न ...चवन्नी को दिल की साफ लगती है.उसे जो समझ में आता है...बोल देती है.उसकी बातें जाहिर है उसकी समझ से तय होती हैं.कपूर खानदान की टूटे परिवार की लड़की की सोच की कल्पना चवन्नी कर सकता है.एक बातचीत में उसने चवन्नी को बताया था कि वह रोल पाने के लिए किसी डायरेक्टर के घर जाकर खाना नहीं बनाती या शॉपिंग पर नहीं जाती.अरे...रे..रे.. चवन्नी क्या बताने लगा.वैसे रोल हथियाने और पाने के लिए लड़कियां क्या -क्या करती हैं...इस पर कभी अलग से चवन्नी लिखेगा. तो बात हो रही थी बिपाशा की.बिपाशा छोटी उम्र में ही दुनियादार हो गयी.वह खुद मुंबई आयी और उसने

ऑस्कर के लिए मारामारी

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ऑस्कर के लिए परेशान हैं सभी.चवन्नी की समझ में नहीं आ रहा है कि विदेशी पुरस्कार के लिए एेसी मारामारी क्यों चल रहीं है?याद करें तो ऑस्कर पुरस्कारों की विदेशी भाषा श्रेणी की नामांकन सूची में लगान के पहुंचने के बाद सभी भारतीय फिल्मकारों को लगने लगा है कि उनकी फिल्म इस प्रतियोगिता के लिण अवश्य भेजी जानी चाहिए.अस साल एकलव्य भेजी जा रही है या यों कहें कि भेजी जा चुकी है,लेकिन धर्म की निर्देशक भावना तलवार को लगता है िक एकलव्य के निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने अपने प्रभाव से अपनी फिल्म को चुनवा लिया.फिल्म इंडस्ट्री तो क्या हर क्षेत्र में इस तरीके के मैनीपुलेशन चलते हैं. आइए,आाप को किस्सा सुनाते हैं.ऑस्कर के नियमों के मुताबिक हर देश से एक फिल्म िवदेशी भाषा श्रेणी के पुरस्कार के लिए भेजी जा सकती हैणयमं तो हर साल एक फिल्म जाती है,लेकिन लगान के नामांकन सूची में पहुंचने के बाद फिल्म इंडस्ट्री और आम लोग इस पुरस्कार के प्रति जागरूक हुए.भारत से फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ही ऑस्कर के लिए भेजी जाने वाली फिल्म का चुनाव करती है.इस कार्य के लिए एक ज्यूरी बनायी जाती है.इस ज्यूरी में फिलहाल मुंबई के ज्या

फिल्म कैसे बनती है - ख्वाजा अहमद अब्बास

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हर बार जब तुम अच्छी फिल्म देखने के लिए टिकट खरीदते हो तो तुम अच्छी फिल्मों के निर्माण में सहायक होते हो और जब बुरी फिल्म का टिकट खरीदते हो तो बुरी फिल्मों को बढ़ावा देते हो - ख्वाजा अहमद अब्बास ख्वाजा अहमद अब्बास ने यह बात अ।ज से तीस साल पहले 'फिल्म कैसे बनती है' में लिखी. बच्चों को फिल्म निर्माण की जानकारी देने के उद्देश्य से लिखी गयी यह किताब नेशनल बुक ट्रस्ट ने छापी थी. अभी तक इसके बारह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. पिछली बार दिल्ली प्रवास में चवन्नी ने यह पुस्तक हासिल की. सिर्फ 12 रूपए मूल्य की यह पुस्तक सभी सिनेप्रेमियों को पढ़नी चाहिए. और हां, चवन्नी महसूस करता है कि इसे रिफ्रेश या अद्यतन करने की जरूत है. इस बीच सिनेमा का तकनीकी विकास बहुत तेजी से हुअ। है. विकास के इन तत्वों को जोड़कर पुस्तक को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है. इस पुस्तक के अध्याय हैं - 1. पर्दे का जादू 2. चलचित्र जो चलते नहीं 3. एक समय की बात है 4. अलादीन और उसका जादुई चिराग 5. सागर तट पर पिकनिक 6. छद्म गायक 7. फिल्म का संपादन 8. लाखों के लिए संगीत 9. दुल्हन का श्रृंगार 10. सिनेमा का गणित 11. फिल्म कैसे देखे

शुक्रवार,२१ सितंबर

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माफ़ करें -चवन्नी ने आप से वादा किया था कि हर शुक्रवार को आप से बात करेगा]लेकिन अगले ही हफ्ते उसे मुम्बई से बाहर निकलना पड़ा.कुछ ऐसी व्यस्तता रही कि चाह कर भी चवन्नी कुछ लिख नही सका.एक माफ़ी तो मिल ही सकती है।इस हफ्ते कई बड़ी बातें हुईं.सांवरिया और ओम शांति ओम फिल्मों के मुजिक रिलीज हुए.बड़ा जलसा रहा .सांवरिया में दोनों कपूर परिवार मौजूद था तो ओम शांति ओम में शाहरुख़ खान का जलवा था.अजीब बात है कि दोनों फ़िल्में एक ही दिन रिलीज हो रही है.चवन्नी के पाठकों में से ज़्यादातर पहले दिन सांवरिया देखने की योजना बाना राहे हैं। आज ३ फ़िल्में रिलीज हुई हैं.मनोरमा सिक्स फीट अंडर,ढोल और लायंस ऑफ पंजाब रिलीज हुई हैं.इनमें से नवदीप सिंह की की मनोरमा उल्लेखनीय आर दर्शनीय फिल्म है.समाज के काले और अंधेरे सच को नवदीप ने वास्तविकता के साथ चित्रित किया है.ढोल जैसी दर्जनों फिल्में आप देखा चुके हैं,इसलिए चवन्नी की राय है कि मनोरमा ही देखने जाएं.लायंस ऑफ पंजाब चवन्नी के पाठकों की फिल्म नहीं है.वैसे भी वह अंग्रेजी में बनी है.इधर मल्टीप्लेक्स आने से अंग्रेजी सिनेमा कं दर्शक बढ़े हैं.चवन्नी वैसे दर्शकाें की परवाह

मुसलमान हीरो

पहले 'चक दे इंडिया' और फिर 'धोखा'... अ।गे-पीछे अ।ई इन दोनों फिल्मों के नायक मुसलमान हैं. और ये दोनों ही नायक हिंदी फिल्मों में सामान्य तौर पर अ।ए मुसलमान किरदारों या नायकों की तरह नहीं हैं. पहली बार हम उन्हें अ।सप।स के वास्तविक मुसलमान दोस्तों की तरह देखते हैं. याद करें तो हिंदी फिल्मों में मुसलमान किरदारों को त्याग की मूर्ति के रूप में दिखाने की परंपरा रही है. नायक का यह नेकदिल मुसलमान दोस्त दर्शकों का प्यारा रहा है, लेकिन निर्माता-निर्देशकों के लिए वह एक फार्मूला रहा है. फिर मणि रत्नम की 'रोजा' अ।ई. हालांकि काश्मीर की पृष्ठभमि में उन्होंने अ।तंकवादी मुसलमानों का चित्रण किया था, लेकिन 'रोजा'के बाद की फिल्मों में मुसलमान किरदार मुख्य रूप से पठानी सूट पहने हाथों में एके-47 लिए नजर अ।ने लगे. 'गर्म हवा', 'सरफरोश', 'पिंजर' अ।दि ऐसी फिल्में हैं, जिन में मुसलमान किरदारों को रियल परिप्रेक्ष्य में दिखाया गया. उन्हेंइन फिल्मों में किसी खास चश्मे से देखने या सांचे में ढ़ालने के बजाए वास्तविक रूप में चित्रित किया गया. हिंदी फिल

हारे (सितारे) को हरिनाम

कोई कहीं भी आए.जाए... चवन्नी को क्या फर्क पड़ता है? इन दिनों संजय दत्त हर प्रकार के देवतओं के मंदिरों का दरवाजा खटखटा रहे हैं. उन्हें अमर्त्य देवताओं की सुध हथियार मामले में फंसने और जेल जाने के बाद आई. आजकल तो आए दिन वे किसी न किसी मंदिर के चौखटे पर दिखाई पड़ते हैं और हमारा मीडिया उनकी धार्मिक और धर्मभीरू छवि पेश कर खुश होता है. हाथ में बध्धी, माथे पर टीका और गले में धार्मिक चुनरी डाले संजय दत्त से सभी को सहानुभूति होती है. उन पर दया अ।ती है. चवन्नी को लगता है कि संजय दत्त इन धार्मिक यात्राओं से अपने मकसद में कामयाब हो रहे हैं. अगोचर देवता तो न जाने कब कृपा करेंगे? संसार के गोचर प्राणियों की धारणा है कि बेचारा संजू बाबा नाहक फंस गया. उसने जो अवैध हथियार रखने का अपराध किया है, उसकी सजा ज्यादा लंबी होती जा रही है. चवन्नी ने गौर किया है कि कानून की गिरफ्त में अ।ने के बाद संजू बाबा ने अपनी हिंदू पहचान को मजबूत किया है. उन्होंने मुसलमान दोस्तों से एक दूरी बनाई और सार्वजनिक स्थलों पर नजर आते समय हिंदू श्रद्धालु के रूप में ही दिखे. बहुत लोगों को लग सकता है कि यह कौन सी बड़ी बात हो गई

शुक्रवार ७ सितंबर

चवन्नी ने तय किया है कि आज से हर शुक्रवार को वह मुम्बई की फिल्म इंडस्ट्री में चल रही चर्चाओं और बदलती हवा के रुख़ की जानकारी आप को देगा.कल देर रात चवन्नी 'धमाल' के प्रीमियर से लौटा.मुम्बई के अंधेरी उपनगर के पश्चिमी इलाक़े में कई मल्टीप्लेक्स आ गए हैं.वहीँ फिल्मों के प्रीमियर हुआ करते हैं.वैसे प्रीमियर तो अब नाम भर ही रह गया है.ना वो पहले जैसा ताम-झाम बच गया है और ना लाव -लश्कर राग गया है.प्रीमियर पैसे बचाने का साधन बन गया है।खैर,कल रात 'धमाल' के प्रीमियर में संजय दत्त आये थे.एक तरह से कहें तो उनके जमानत पर छूटने की खुशी में ही इस प्रीमियर का आयोजन हुआ था.अगर आप को याद हो तो उनकी गिरफ्तारी के समय कई कार्यक्रम रद्द कर दिए गए थे.संजय दत्त आये थे.उन्होने काली बंडी पहन रखी थी.आप ने देखा होगा कि वह झूम कर चलते हैं.कल रात उनकी चाल में पुराना जोश नही था.कानून,जेल और सजा से लोग टूट जाते हैं.संजय के साथ जो हुआ और हो रह है उस पर फिर कभी.'धमाल' चवन्नी के ख़्याल से पहली हिंदी फिल्म है,जिस में कोई हीरोइन नही है.इसके पोस्टर पर भी मर्द ही मर्द हैं.है ना अजूबी बात.लेकिन इसका मतल

धन्य हैं देव साहेब!

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देव साहेब धन्य हैं.उनका निमंत्रण पत्र आया है.एसएमएस और ईमेल के ज़माने में उनहोंने हाथ से लिखा पत्र भेजा है.हाँ ,तकनीकी सुविधा का फायदा उठा कर उनहोंने यह पत्र स्कैन करवा कर भेजा है.आप इस पत्र को यहाँ पढ़ सकते हैं.चवन्नी ७ की शाम को बतायेगा कि उनहोंने चाय पर क्यों बुलाया था.उनकी सादगी देखिए,लिख रहे हैं अपने साथ चाय पीने का सौभाग्य दीजिए.

क्यों वंचित रहे चवन्नी ?

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पिछले दिनों अजय ब्रह्मात्मज ने दैनिक जागरण के मनोरंजन परिशिष्ट 'तरंग' के अपने कॉलम 'दरअसल' में चवन्नी सरीखे दर्शकों की चिंता व्यक्त की. आजकल मल्टीप्लेक्स संस्कृति की खूब बात की जा रही है, लेकिन इस मल्टीप्लेक्स संस्कृति ने नए किस्म का मनुवाद विकसित किया है. मल्टीप्लेक्स संस्कृति के इस मनुवाद के बारे में सलीम आरिफ ने एक मुलाकात में बड़ी अच्छी तरह समझाया. क्या कहा,आप उन्हें नहीं जानते? सलीम आरिफ ने गुलजार के नाटकों का सुंदर मंचन किया है. रंगमंच के मशहूर निर्देशक हैं और कॉस्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर खास स्थान रखते हैं. बहरहाल, मल्टीप्लेक्स संस्कृति की लहर ने महानगरों के कुछ इलाकों में सिंगल स्क्रीन थिएटर को खत्म कर दिया है. इन इलाकों के चवन्नी छाप दर्शकों की समस्या बढ़ गई है. पहले 20 से 50 रूपए में वे ताजा फिल्में देख लिया करते थे. अब थिएटर ही नहीं रहे तो कहां जाएं ? नयी फिल्में मल्टीप्लेक्स में रिलीज होती हैं और उनमें घुसने के लिए 100 से अधिक रूपए चाहिए. अब चवन्नी की बिरादरी का दर्शक जाएं तो कहां जाएं ? चवन्नी चैप जिस इलाके में रहता है. उस इलाके में 6 किलोमीटर के दायरे में

चवन्नी का किस्सा

अच्छा है अं।प पढ रहे हैं.बस यही गुजारिश है कि मेरे नाम को चवन्नी छाप उच्चारित न करें. मैं चवन्नी चैप हूं. चवन्नी छाप समूहवाचक संज्ञा है. कभी दरशकों के ख।स समूह को चवन्नी छ।प कह। ज।त। थ।.अ।ज के करण जौहर जैसे निरदेशक चवन्नी छाप को नहीं जानते. हां , विधु विनोद चोपड। ज।नते हैं,लेकिन अब वे चवन्नी छ।प दरशकों के लिए फिल्में नहीं बनाते.सिरफ विधु विनोद चोपड। ही क्यों...इन दिनों किसी भी निरदेशक को चवन्नी छ।प दरशकों की परवाह नहीं है.वैसे भी ब।ज।र में जब चवन्नी ही नहीं चलती ताे चवन्नी छ।प दरशकों की चिंता कोई क्यों करे ...मुंबई में केवल बेस्ट के बसों में चवन्नी चलती है.कंडक्टर मुंबई के बस यात्रियों को चवन्नी वापस करते हैं और बस यात्री फिर से कंडक्टर को किराए के रूप में चवन्नी थम। देते हैं. आज के हमारे परिचित पाठक चवन्नी मे बारे में ठीक से नहीं जानते.चलिए हम अपने अतीत के बारे में बता दें.चवन्नी का चलन तब ज्यादा थ।,जब रुपए में सोलह अ।ने हुअ। करते थे और चार पैसों का एक अ।न। होता थ।.तब रुपए में केवल चौंसठ पैसे ही होते थे.देश अ।ज।द हुआ तो बाजार की सुविधा और एकरूपता के लिए रुपए के सौ पैसे किए गए तो