डिजिटल मनोरंजन की बढ़ रही रफ्तार

मार्च के आखिरी सप्ताह में आयोजित फिक्की फ्रेम्स में दुनिया भर से आए मीडिया महारथियों के जमावड़े में यह तथ्य स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया कि हर देश की तरह भारत को भी सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे आने के लिए डिजिटलीकरण की अड़चनों को दूर करना होगा। मोबाइल क्रांति ने डिजिटलीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है, लेकिन मीडिया और मनोरंजन के पुराने खिलाड़ी आज भी एक बाधा के रूप में खड़े हैं। वे हरसंभव कोशिश करते हैं कि डिजिटलीकरण की रफ्तार धीमी की जाए।

हर क्षेत्र में डिजिटल क्रांति

सच्चाई यह है कि फिल्म, टी.वी., म्यूजिक और संचार के अन्य सभी माध्यमों में डिजिटल उपयोग के लाभ को देखते हुए अनचाहे ही सही, सभी इसे अपना रहे हैं। जीवन के हर क्षेत्र में डिजिटल क्रांति आ चुकी है। डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में किसी भी पाठ, ध्वनि, छवि और आवाज को डिजिटल कोड में बदला जाता है और उसे नियंत्रित तरीके से संचारित किया जाता है। मोबाइल फोन इसका अनुपम उदाहरण है, जिसके माध्यम से हम पाठ, ध्वनि और चित्र संबंधी सारी सूचनाएं किसी भी समय कहीं भी हासिल कर सकते हैं।

सस्ती हुई प्रिंट की लागत

फिल्मों के क्षेत्र में भी डिजिटल प्रिंट तैयार होने लगे हैं। अभी सामान्य फिल्म प्रिंट की लागत कम से कम 60,000 रुपए आती है, जबकि डिजिटल प्रिंट की लागत 7,000 से 10,000 रुपए के बीच होती है। सो, इन दिनों फिल्मों का डिजिटल प्रक्षेपण होने लगा है। अब आवश्यक नहीं है कि पहले की तरह हर फिल्म के प्रिंट ढोकर सिनेमाघरों में पहुचाएं जाएं। देश में 3,100 सिनेमाघर इस तकनीक से लैस हो गए हैं। उनमें यूएफओ और दूसरी एजेंसियों के जरिए सुरक्षित और सस्ते तरीके से फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं। वीसीडी और डीवीडी भी फिल्मों के डिजिटल रूप हैं। अब तो पेन ड्राइव में फिल्में लोड कर उन्हें जेब में लेकर घूमा जा सकता है।

गाँव-गरीब तक डीटीएच

हाल-फिलहाल टीवी के क्षेत्र में डिजिटल प्रसार तेजी से हुआ है। टीवी सैटेलाइट प्रसारण केबल से डीटीएच की ओर मुड़ रहा है। इसमें पिछले साल ही 75 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज की गई है। शहरों में निम्न आय के इलाकों में डीटीएच कनेक्शन में बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण इलाकों में भी डीटीएच छतरियां नजर आने लगी हैं। देखने में आ रहा है कि 3,000 रुपए प्रति महीने से कम आयवाले घरों तक में डीटीएच कनेक्शन लिए जा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि 2015 तक सात करोड़ घरों में डीटीएच कनेक्शन आ जाएंगे।

जितना चाहो, उतना पाओ

संगीत के क्षेत्र में सीधे डिजिटल प्रभाव देखा जा रहा है। दो साल पहले तक म्यूजिक कंपनियां ऑडियो कैसेट और सीडी बेचकर 81 प्रतिशत धंधा करती थीं। पिछले साल यह प्रतिशत घटकर 31 प्रतिशत रह गया। पंडितों का अनुमान है कि 2015 तक केवल 5 प्रतिशत की ही कमाई पारंपरिक तरीके से होगी। श्रोता अब पूरी फिल्म के गाने नहीं सुनते। उन्हें जो एक-दो गाने पसंद आते हैं, उसको वे एक प्रीमियम राशि देकर सीधे डाउनलोड कर लेते हैं। पिछले दिनों मुन्नी और शीला के डाउनलोड से एक म्यूजिक कंपनी की गाढ़ी कमाई हुई।

जब जागेगा सोया शेर

..यही वजह है कि सरकार से लेकर निजी संस्थाएं तक डिजिटल प्रसार पर ध्यान दे रही हैं। फिक्की फ्रेम्स में आए न्यूज कारपोरेशन के जेम्स मर्डोक ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत सूचना क्रांति के इस दौर में सोए शेर की तरह है, जो डिजिटल क्रांति से जागेगा तो तेज कदमों से विकसित देशों की श्रेणी में आ जाएगा!

Comments

Abhishek Shukla said…
बेहतरीन पोस्ट. धन्यवाद.

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