निखिल द्विवेदी: उभरा एक नया सितारा


-अजय ब्रह्मात्मज
देश भर के बच्चे, किशोर और युवक फिल्में देख कर प्रभावित होते हैं। वे उनके नायकों की छवि मन में बसा लेते हैं कि मैं फलां स्टार की तरह बन जाऊं। जहां एक ओर आज देश के लाखों युवक शाहरुख खान बनना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर 20-25 साल पहले सभी के ख्वाबों में अमिताभ बच्न थे। उन्हीं दिनों इलाहाबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार के लड़के निखिल द्विवेदी ने भी सपना पाला। सपना था अमिताभ बच्चन बनने का। उसने कभी किसी से अपने सपने की बात इसलिए नहीं की, क्योंकि उसे यह मालूम था कि जिस परिवार और पृष्ठभूमि में उसकी परवरिश हो रही है, वहां अमिताभ बच्चन तो क्या, फिल्मों में जाने की बात करना भी अक्षम्य अपराध माना जाएगा! ऐसी ख्वाहिशों को कुचल दिया जाता है और माना जाता है कि लड़का भटक गया है। वैसे, आज भी स्थिति नहीं बदली है। आखिर कितने अभिनेता हिंदी प्रदेशों से आ पाए? क्या हिंदी प्रदेश के युवक किसी प्रकार से पिछड़े या अयोग्य हैं? नहीं, सच यही है कि फिल्म पेशे को अभी तक हिंदी प्रदेशों में सामाजिक मान्यता नहीं मिली है।
दिल में अपना सपना संजोए निखिल द्विवेदी पिता गोविंद द्विवेदी के साथ मुंबई आ गए। मुंबई महानगर में एक बस्ती है मुलुंड, जहां निखिल का कैशोर्य बीता। पिता की मर्जी के मुताबिक उन्होंने एमबीए की पढ़ाई की। बाद में एक बड़ी कंपनी में बिजनेस एग्जिक्यूटिव बने, लेकिन मन से फिल्म की बात नहीं गई। देश के लाखों युवकों से अलग निखिल ने अपने सपने को हमेशा हरा रखा और वे उसे दुनिया की नजरों से छिप कर सींचते भी रहे। इलाहाबाद में जो सपना अंकुराया था, वह वर्षो बाद मुंबई में फला-फूला। निखिल ने अपने पांव पर खड़े होने के बाद फिल्मों की तरफ रुख किया। लोगों से मुलाकातें हुई और एक नेटवर्किंग आरंभ हुई। इसे निखिल का आत्मविश्वास ही कहेंगे कि जब ई निवास ने उन्हें एक फिल्म में छोटी-सी भूमिका सौंपी, तो उन्होंने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं हीरो का रोल करूंगा। सही मौके और बड़ी भूमिका के लिए निखिल प्रयत्नशील रहे। वक्त आया और ई निवास ने ही बुलाकर उन्हें माई नेम इज एंथनी गोंजाल्विस में हीरो का रोल दिया। हालांकि फिल्म मिलने के बाद भी संकट कम नहीं हुए। एक बार लगा कि फिल्म नहीं बन पाएगी। फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी अच्छी थी कि एक बड़ा स्टार इस फिल्म को करना चाहता था। इतना ही नहीं, एक बड़े बैनर ने ई निवास को सलाह दी कि निखिल को निकाल दो। सच तो यह है कि वह बैनर बड़ी रकम देकर स्क्रिप्ट भी खरीदने को तैयार था, लेकिन फिर भी निर्देशक ई निवास और उनके लेखक निखिल के साथ डटे रहे। दरअसल, उन्हें निखिल पर भरोसा था। निखिल ने आखिरकार साबित किया कि वे भरोसे के योग्य हैं। संयोग ऐसा बना कि शाहरुख खान भी निखिल के प्रशंसक बन गए। उन्होंने अपने बैनर को हिदायत दी कि निश्चित बजट में निखिल की फिल्म पूरी होनी चाहिए। अब माई नेम इज.. रिलीज के लिए तैयार है। इसके पोस्टर में दिखने वाला युवक बड़ी उम्मीद से दर्शकों को निहार रहा है। उसकी आंखों में सपने के साकार होने की चमक है। उसकी सफलता लाखों युवकों के लिए प्रेरणा बनेगी।

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