कई मुद्दों का हल्ला बोल


-अजय ब्रह्मात्मज
छोटे शहर का युवक अशफाक (अजय देवगन) एक्टर बनने की ख्वाहिश रखता है। मेहनत और जरूरी युक्तियों से वह सुपर स्टार समीर खान बन जाता है। स्टार बनने के साथ उस में कई अवगुण आ जाते हैं। वह माता-पिता और गुरु तक को पलटकर ऐसा जवाब देता है कि वो रूठ कर चले जाते हैं। फिर बीवी स्नेहा (विद्या बालन) की बारी आती है। वह भी उससे विमुख हो जाती है। हर तरफ से भावनात्मक रूप से ठुकराए जाने के बाद समीर का जमीर जागता है। वह एक हत्या का चश्मदीद रहा है। वह हिम्मत करता है और अपराधियों को बेनकाब करता है, लेकिन पावर, पब्लिक और पैसे के बूते अपराधी बरी हो जाते हैं। अंतत: समीर खान सड़क पर उतरता है और सिद्धू के सहयोग से नुक्कड़ नाटक के जरिए हल्ला बोलता है। उस पर हमला होता है। सिद्धू की ललकार से मीडिया और पब्लिक भी हल्ला बोल में शामिल हो जाती है। आखिरकार अपराधियों को सजा मिलती है।

राज कुमार संतोषी ने जेसिका लाल कांड, सफदर हाशमी प्रसंग और फिल्मी सितारों में प्रचलित कुरीतियों को एक साथ जोड़ा है। वह एक ही कहानी में कई मुद्दे पिरोते हैं। इस वजह से फिल्म का फोकस बार-बार बदलता रहता है। हल्ला बोल का मुख्य विषय दूसरों पर हो रहे अत्याचार के समर्थन में खड़े होने का आह्वान है। फिल्म में सिद्धू का एक संवाद है जानवर भी अपनी तकलीफ से चीखता है, दूसरों की तकलीफ से चीखने पर ही हम इंसान कहला सकते हैं। इसी भाव की बर्तोल्त ब्रेख्त की एक कविता है, जिसे हल्ला बोल का आधार बनाया गया है।

राज कुमार संतोषी की हल्ला बोल कथ्य के स्तर पर प्रभावित और उत्तेजित करती है, लेकिन शिल्प पुराना है। पुराने शिल्प में नाटकीयता, संयोग और बनावटी संवाद से दर्शकों की तालियां बटोरी जाती हैं। इस फिल्म को देखते समय भी तालियां बजेंगी। अजय देवगन ऐसी भूमिकाओं में सिद्धहस्त हैं। पंकज कपूर ने फिर से साबित किया है कि वह वर्तमान दौर के महत्वपूर्ण अभिनेता हैं। विद्या बालन ने छोटी सी भूमिका में भावभीनी संजीदगी दिखाई है। निगेटिव किरदार में दर्शन जरीवाला जंचे हैं।
कुछ सवाल हैं, जैसे कि चंबल में डकैत रहे सिद्धू को पंजाबी क्यों बताया गया है? सुपर स्टार होते ही समीर खान का व्यक्तित्व निगेटिव क्यों कर दिया गया है? परेशान किरदारों को पूजा स्थलों की शरण में जाते हुए दिखाने का फार्मूला पुराना नहीं हो गया है क्या? एक स्तर पर यह फिल्म दामिनी का नया संस्करण भी लगती है। हिंदी साहित्यप्रेमी दर्शक खुश हो सकते हैं कि उनके प्रिय गजलकार दुष्यंत कुमार के चंद अशआर फिल्म के महत्वपूर्ण दृश्य में इस्तेमाल किए गए हैं।

Comments

शानदार फिल्‍म है हल्‍ला बोल
ग़ज़ब की फिल्म हैं हल्ला बोल....मैं इसे थिएटर में नहीं देख पाया...लेकिन एक चैनल पर देखने के बाद मैं इस फिल्म का कायल हो गया..हालांकि फिल्म की स्क्रिप्ट और डॉयलॉग्स कहीं कहीं ढीलें हो जाते है मग़र अपने विषय और मौजूदा हालात पर उठती आवाज़ की वजह से ये फिल्म ख़ास बन पड़ी है....पंकज कपूर लाजवाब है....अजय हमेशा की तरह शानदार....सबसे अच्छी बात ये लगी कि बॉलीवुड में कोई ऐसा भी निर्देशक है जो दुष्यंत कुमार जैसे शायर को पढ़ता है....संतोषी भले ही बॉक्स ऑफिस पर नाकाम हो लेकिन उन्होने अच्छी और ईमानदार कोशिश की है...वेबधाई के पात्र है...

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