दरअसल: अभिनेत्रियों का राजनीति में आना

-अजय ब्रह्मात्मज
लोकसभा चुनाव में अभी देर है, फिर भी सभी पार्टियों में उम्मीदवारों को लेकर बैठकें चल रही हैं। जीत और सीट निश्चित और सुरक्षित करने के लिए ऐसे उम्मीदवारों को तैयार किया जा रहा है, जो अधिकाधिक मतदाताओं की पसंद बन सकें।
भोपाल का उदाहरण लें। बीच में खबर आई कि यहां से नगमा चुनाव लड़ सकती हैं। अभी पार्टी निश्चित नहीं है। नगमा के करीबी कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां उन्हें टिकट देने को राजी हैं। संभव है, यह मात्र शगूफा हो। दूसरी तरफ भोपाल से जया भादुड़ी को टिकट देने की बात भी चल रही है। वे सपा की उम्मीदवार होंगी। उन्हें भोपाल की बेटी के रूप में पेश किया जा सकता है। अगर नगमा और जया भादुड़ी की तुलना करें, तो जया ज्यादा मजबूत उम्मीदवार दिख रही हैं।
अभिनेत्रियों को राजनीति में जगह दी जाती रही है। इसकी शुरुआत नरगिस से हो गई थी। वैसे देविका रानी भी राजनीतिक गलियारे में नजर आती थीं और जवाहरलाल नेहरू की प्रिय थीं, लेकिन उन्होंने राजनीति में खास रुचि नहीं ली। नरगिस ने अवश्य संसद की मानद सदस्यता स्वीकार की थी। वे भी नेहरू परिवार की करीबी थीं। नेहरू उन्हें बहुत पसंद करते थे। नरगिस संसद में भले ही पहुंच गई, लेकिन एक राजनीतिज्ञ या सजग सदस्य के रूप में उन्हें नहीं याद किया जाता। उन्होंने संसद की बहसों में अधिक हिस्सा नहीं लिया। कहते हैं, एक बार सत्यजित राय के खिलाफ उन्होंने यह बोल दिया था कि उन्होंने अपनी फिल्मों में भारत की गरीबी दिखाकर इंटरनेशनल ख्याति हासिल की है।
जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में सक्रिय रहीं। एम.जी. रामचंद्रन के निर्देश पर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचीं। दक्षिण भारत के फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों का राजनीतिक महत्व और योगदान रहा है। हिंदी फिल्मों के कलाकारों की तुलना में उनकी राजनीतिक और सामाजिक स्वीकृति भी अधिक रही है। दक्षिण भारत से हिंदी फिल्मों में आई वैजयंतीमाला भी संसद में पहुंचीं, लेकिन कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं कर सकीं। ऐसा लगता है कि संसद में उनकी उपयोगिता केवल शोभा बढ़ाने तक ही सीमित रही।
पिछले दस सालों में भाजपा और सपा ने अभिनेत्रियों को अवश्य संसद में भेजा है। आज भी ये दोनों पार्टियां ही फिल्म कलाकारों के राजनीतिक उपयोग में आगे हैं। सपा के उम्मीदवार के रूप में रामपुर से चुनाव जीत कर संसद में पहुंचीं जयाप्रदा के राजनीतिक महत्व पर सवाल उठते रहे हैं। हां, जया बच्चन अपनी मुखरता के कारण गाहे-बगाहे चर्चा में जरूर रही हैं। बच्चन परिवार के सदस्य बताते हैं कि जया बच्चन संसद की कार्यवाहियों के प्रति सजग और सचेत रहती हैं। हेमा मालिनी भाजपा की सांसद हैं। संसद के हर सत्र में और कुछ हो या न हो, उनकी तस्वीर जरूर अखबारों में छप जाती है। इन तस्वीरों में वे दो-तीन सांसदों के बीच ड्रीम गर्ल वाली मुस्कान फेंकती नजर आती हैं। पार्टी के अंदर हेमा का राजनीतिक कद बहुत बड़ा नहीं है। भाजपा ने रामायण सीरियल की लोकप्रियता के बाद सीता बनी दीपिका चिखलिया को भी अपनी पार्टी की सदस्यता दी थी। इधर क्योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी की भूमिका से मशहूर हुई स्मृति ईरानी भी भाजपा से चुनाव लड़ चुकी हैं। मुमकिन है कि इस बार भी वे कहीं से संसद की उम्मीदवार बनें!
फिल्मों से राजनीति में आए कलाकारों की बात करें, तो शत्रुघ्न सिन्हा और राज बब्बर जागरूक रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टियों के लिए बहुत कुछ किया। शत्रुघ्न सिन्हा की तो मंशा ही रही है कि वे बिहार के मुख्यमंत्री बनें, लेकिन धुरंधर राजनीतिज्ञों ने उन्हें इस लायक नहीं समझा। राज बब्बर सपा से निकलने के बाद राजनीतिक दृष्टि से थोड़े कमजोर हुए हैं। विनोद खन्ना और धर्मेन्द्र नाम के ही सांसद हैं। अभी तक केवल सुनील दत्त ने राजनीति में अपनी पहचान छोड़ी और अपने काम से दूसरों को प्रभावित भी किया। इस लिहाज से राजनीति में गई अभिनेत्रियां संयोग या दुर्भाग्य से अधिक योगदान नहीं कर सकी हैं। राजनीतिक पार्टियां उनका इस्तेमाल तो करती हैं, लेकिन उन्हें जिम्मेदारी देने से बचती भी हैं। ऐसा क्यों है..?

Comments

जहां तक मैं याद कर पा रहा हूं, शायद शबाना आजमी भी सांसद रह चुकी हैं-शायद राज्‍य सभा में।
उन्‍होंने अपनी राजनीतिक भूमिका, अन्‍य शेष अभिनेत्रियों की अपेक्षा अधिक मुखरता तथा अधिक प्रभावी स्‍तर पर निभाई।
शायद अभिनेता अभिनेत्रियां अपनी लोकप्रियता के कारण राजनीति में आना तो चाहते हैं ... पर उससे संबंधित जिम्‍मेदारी निभाना नहीं चाहते ।
राजनीति से तो किसी का भला होने वाला नहीं! थोडा एंटरटेनमेंट ही सही। आखिर कब तलक ये भार बेचारे लालूजी अकेले सम्भालते रहेंगे?
सही है ...लोगों का मनोरंजन ही करना आता है नेताओं को ...और कुछ तो होता नहीं

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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