चोली में फुटबाल

माफ़ करें अगर ऐसे गानों और गब्बर सिंह जैसी फिल्मों से भोजपुरी सिनेमा आगे बढ़ रहा है तो बहुत गड़बड़ है.कहीं भोजपुरी सिनेमा किसी गड्ढे में गिरकर तो आगे नहीं बढ़ रहा है.भोजपुरी फिल्मों में अश्लील गीतों और उसी के मुताबिक अश्लील मुद्राओं पर बहुत जोर रहता है।क्या सचमुच दर्शक यही चाहते हैं?

चवन्नी की समझ में एक बात आ रही है कि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक मुख्य रुप से पुरुष हैं.उनकी अतृप्त यौन आकांक्षाओं को उकसा कर पैसे बटोरे जा रहे हैं.यह अच्छी बात नहीं है.भोजपुरी इलाक़े के बुद्धिजीवियों को हस्तक्षेप करना चाहिए.वक़्त आ गया है कि हम भोजपुरी सिनेमा की मर्यादा तय करें और उसे इतना शिष्ट बनायें कि परिवार की बहु-बेटियाँ भी उसे देख सकें।

शीर्षक में आये शब्द गब्बर सिंह नाम की फिल्म के हैं.इसमें चोली में बाल,फुटबाल और वोलीबाल जैसे शब्दों का तुक भिडा़या गया है.इस गाने में फिल्म के दोनो नायक और लिलिपुट जैसे वरिष्ठ कलाकार अश्लील तरीके से नृत्य करते नज़र आये हैं.कृपया इस तरफ ध्यान दें और अपनी आपत्ति दर्ज करें।

भोजपुरी सिनेमा को गंगा,बियाह,गवना,बलमा,सैयां आदि से बाहर आने का समय आ गया है.बाबु मनोज तिवारी और बाबु रवि किशन भी इस दिशा में पहल कर सकते हैं.

Comments

आप जिन बाबू रवि किशनों और मनोज तिवारियों की बात कर रहे हैं उनका पेट तो यही भोजपुरी फिल्में भर रही हैं. जहाँ नाक से गाने वालों को इतनी तवज्जो मिलती हो कि उसे भोजपुरी महानायक या सुपरस्टार का तमगा दिया जा रहा हो तो वहाँ भगवान् ही मालिक है.
said…
देखिये निर्देशक वैसी ही फ़िल्म बनाएगा जो पब्लिक देखती है, निर्माता भी ऐसी ही फ़िल्म मैं पैसा लगायेगा. फ़िर इसमे बुद्धिजीवी क्या कर लेंगे? वैसे हो सकता है की खाली समय में वह भी यह फिल्में देखते हों! यह मार्केट है बाबुजी बाप बड़ा न भइया - सबसा बड़ा रुपैया !
अब देखिये न आपने भी तो इस पोस्ट का टाइटल क्या भड़कीला बनाया है - सब "बुद्धिजीवी" लोग इधर खींचे चले आते हैं ! ;)
सौरभ
जो जिसे भाये
उसे वही दिखाओ
अपने पैसे बनाओ
अपना सपना
मनी मनी
सबका सपना
मनी मनी

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