फ़िल्म समीक्षा:कमबख्त इश्क




-अजय ब्रह्मात्मज

कोई शक नहीं कि निर्माता साजिद नाडियाडवाला पैसे खर्च करते हैं। वह अपने शौक और जुनून के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। कमबख्त इश्क की शूटिंग हालीवुड के स्टूडियो में करनी हो या फिल्म में हालीवुड के एक्टर रखने हों, वह रत्ती भर भी नहीं हिचकते। अब यह अलग बात है कि उनके लेखक और निर्देशक हिंदी फिल्म के चालू फार्मूले में हालीवुड-बालीवुड की संगति नहीं बिठा पाते। यही वजह है कि फिल्म सारी भव्यता, नवीनता और खर्च के बावजूद चूं-चूं का मुरब्बा साबित होती है। सब्बीर खान के निर्देशन में बनी कमबख्त इश्क ऊंची दुकान, फीका पकवान का ताजा उदाहरण है।
फिल्म में अक्षय कुमार और करीना कपूर की जोड़ी है। दोनों हाट हैं और दोनों के चहेते प्रशंसकों की कमी नहीं है। प्रशंसक सिनेमाघरों में आते हैं और अपने पसंदीदा सितारों को कमजोर और अनगढ़ किरदारों में देख कर निराश लौटते हैं तो अपनी शर्मिदगी में किसी और को फिल्म के बारे में कुछ नहीं बताते। नतीजतन ऐसी फिल्में आरंभिक उत्साह तो जगाती हैं, लेकिन उसे जारी नहीं रख पातीं।
कमबख्त इश्क अक्षय कुमार और करीना कपूर की पुरानी फिल्म टशन से कंपीटिशन करती नजर आती है। निर्माता-निर्देशकों को समझ लेना चाहिए कि दर्शक ऐसी फिल्में स्वीकार नहीं करते। फिल्म की बुनियाद में पुरुष जाति और स्त्री जाति के प्रति परस्पर नफरत और हिकारत है। विराज (अक्षय कुमार) और सिमरिता (करीना कपूर) विपरीत लिंग के प्रति कोई सम्मान नहीं रखते। अपने जीवन के अनुभव और विश्वास से वे एक-दूसरे को हेय दृष्टि से देखते हैं। उनके बीच इतनी नफरत है कि वह धीरे-धीरे मुहब्बत में तब्दील हो जाती है। मुहब्बत का कोई लाजिक नहीं होता। इस फिल्म में स्थितियों, घटनाओं और प्रसंगों के साथ भावनाओं का भी कोई तर्क नहीं है। टुकड़ों में सोची गई यह फिल्म अंतिम प्रभाव में निहायत कमजोर साबित होती है।
अक्षय कुमार को विदूषक की भूमिका में हम कई फिल्मों में देख चुके हैं। निर्देशक उन्हें नई भावस्थिति नहीं देते। चूंकि पापुलर एक्टर को अपने सेफ जोन में खेलना अच्छा लगता है, इसलिए अक्षय कुमार भी नहीं समझ पाते कि उनकी एक जैसी भूमिकाओं और अदाओं से दर्शक ऊबने लगे हैं। करीना कपूर भी कुछ गानों और दृश्यों में सेक्सी दिखने के अलावा कोई प्रभाव नहीं छोड़ पातीं । फिल्म के नायक-नायिका के साथ बाकी किरदार भी आधे-अधूरे तरीके से गढ़े गए हैं।
हिंदी फिल्मों में 25-30 प्रतिशत संवाद अब अंग्रेजी में होने लगे हैं। गालियों और फूहड़ दृश्यों के उपयोग और सृजन में लेखक और निर्देशक अपनी भोंडी कल्पना का उपयोग करने लगे हैं। कमबख्त इश्क उसी की बानगी है। दोहराव और नकल फिल्म के संगीत में भी है। गाने कमबख्त इश्क के चल रहे होते हैं और कानों में किसी और फिल्म का पापुलर गीत सुनाई देता रहता है। संगीतकार अनु मलिक कहां से कहां पहुंच गए हैं?
रेटिंग : *1/2

Comments

तो टाईम्स वाले नाहक ही फिल्म को Worth watching और पैसा वसूल कहकर review दे रहे हैं। मुझे तो पहले ही टाईम्स के रिव्यू पर शक रहता है( मौसम विभाग वालों पर जिस तरह). मौसम विभाग वाले भी जब कहते हैं अच्छी बारिश होगी तो पता चलता है आसमान मे बादल रूपी रूई के फाहे उड रहे हैं :)

आप के रिव्यू को देख कर लगता है एक और चांदनी चौक टू चाईना बनी है शायद :)
उबियाये गए भइया अछय के नौटंकी देख देख के..:(
वीनस केसरी
chaliye dekhne ko socha tha par apka review padhkar irada badal gaya hai.
Akshay ab thode badlao ki jarrorat hai bhai
anjanikumar said…
Ajay ji Nadiyadwala ko shayad ye ab samajh lena chhiye ki jitan paisa kharch wo star par karte hai, apni making per kharch karte hai agar wo ache writer per kharch karen to shayad behatar film bana sakte hai.
dusri baat ye west se itne prabhavit hai ki unko Indian subject pasand hi nahi aata. chale ga yaha ka theth desi chiz hi. badha udaharan hai Hera pheri.

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